मिड डे मील में मां के प्यार का अहसास

मिर्जापुर के विकास खंड सीखड़ में स्थित प्राथमिक विद्यालय, हासीपुर में माता समूह की जिम्मेदार महिलाएं मिड-डे-मील की करती हैं जांच

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   20 Aug 2018 8:19 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मिड डे मील में मां के प्यार का अहसास

चुनार (मिर्जापुर)। हर शुक्रवार की तरह सुनीता को घर का काम निपटाने की जल्दी है। बेटी के स्कूल जाना है। सुनीता जल्दी-जल्दी सारा काम समेटती हैं और उजाला के स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगती हैं। सुनीता कहती हैं, शुक्रवार मेरे लिए बेहद खास दिन है। पहले तो बस, दिन भर घर का काम करते थे और महीने में कभी-कभार उजाला के पापा के साथ बाजार चले जाया करते थे। इसके अलावा घर से निकलना नहीं होता था। लेकिन अब हफ्ते का यह एक दिन मेरी जिंदगी में मकसद के साथ-साथ जिम्मेदारी का अहसास लेकर आया है। हर शुक्रवार उजाला के स्कूल जाते हैं। वहीं दिन का खाना खाते हैं। साथ ही बच्चों के लिए जो खाना बनता है उसकी जांच करते हैं।'

मिर्जापुर के विकास खंड सीखड़ में स्थित प्राथमिक विद्यालय, हासीपुर में बच्चों के भोजन की जांच-पड़ताल का जिम्मा माताओं का है। प्राथमिक विद्यालयों में विद्यालय की गुणवत्ता के लिए जिस तरह 'प्रबंधन समिति' का गठन हुआ है, ठीक उसी तरह हर विद्यालय में छह माताओं की सहभागिता वाला 'माता-समूह' भी गठित किया गया है। माता-समूह में विद्यालय में पढ़ने वाले 6 बच्चों की माताएं होती हैं, जिन्हें अपने क्रम के अनुसार, हर सोमवार से शनिवार स्कूल आना होता है और खाने का निरीक्षण करना होता है।

यह भी पढ़ें : नयापुरवा में चली शिक्षा की पुरवाई

दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली सबा हर गुरुवार अपनी माँ के साथ स्कूल जाती है। सबा पूरे हफ्ते गुरुवार का इंतज़ार करती है । सबा की माँ सना कहती हैं, "जब स्कूल जाना शुरू किया तब इस बात का अहसास हुआ कि सरकार हमारे लिए कितना कुछ कर रही है। हमारे लिए तो बच्चों को अच्छी शिक्षा और रोज़ अलग-अलग तरह का खाना देना सपने जैसा था लेकिन अब हमारे बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ सेहतमंद भोजन कर रहे हैं।"

इसी विद्यालय के चौथी कक्षा में पढ़ने वाला यूनुस बताता है कि जब से विद्यालय में माताओं ने आना शुरू किया है, हर रोज़ मिड-डे-मील के मेन्यू में बदलाव होता जब से विद्यालय में माताओं ने आना शुरू किया है, हर रोज़ मिड-डे-मील के मेन्यू में बदलाव होता है। यूनुस चार साल से यहीं पढ़ रहा है। उसकी माँ शबाना बताती हैं, "मेरा बेटा बेहद खुश है। वह मुझे बताता है की आपके आने से खाना बेहतर हुआ है और बदल-बदल के दिया जाने लगा है।"

रीता देवी तो स्कूल जाने की तैयारी रविवार से ही करना शुरू कर देती हैं। बेटी पूजा के कपड़ों के साथ अपनी साड़ी भी साफ करके रख देती हैं, ताकि सोमवार को दोनों समय पर स्कूल पहुंच जाएं। वह कहती हैं, हमारा नंबर सोमवार को आता है तो हम दोनों माँ-बेटी रविवार को ही तैयारी कर लेते हैं। बेटी के साथ उसके स्कूल जाना एक अलग अहसास देता है।

"हमारे प्रबंधन समिति की तरह माता समूह भी सक्रियता से विद्यालय आती हैं। बहुत ही कम दिन ऐसा होता है वे न आ पाएं। बच्चे भी इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि अपनी माँओं को समय से विद्यालय लेकर आएं, "निशा, प्रधानाध्यापिका.

यह भी पढ़ें : शाम की क्लास से सुबह स्कूल में रौनक


वीडियो देखें:

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.