लकवा एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर का कोई भी भाग सुन्न हाे सकता है, जानिए क्या हैं इसके कारण

Shrinkhala Pandey | Oct 06, 2017, 17:04 IST
Health
लखनऊ। कई बार अच्छा खासा इंसान जो चलता फिरता है एक अटैक उसका शरीर सुन्न कर देता है। ऐसा होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं और बढ़ती उम्र में इसके होने की आशंका और अधिक बढ़ जाती है। लकवा होने के पीछे के क्या कारण हो सकते हैं इसके बारे में बता रहे हैं लखनऊ के न्यूरोलॉजिस्ट एके सिंह---

लकवा कैसे होता है

करीब 85 प्रतिशत लोगों में दिमाग की खून की नली अवरुद्ध होने पर व करीब 15 प्रतिशत में दिमाग में खून की नस फटने से लकवा होता है।

दिमाग के एक हिस्से में जब खून का प्रवाह रुक जाता है तो दिमाग के उस हिस्से में क्षति पहुंचती है, जिससे लकवा होता है।

दिमाग में रक्त पहुंचाने वाली खून की नली के अंदरूनी भाग में कोलेस्ट्रॉल जमने से मार्ग सकरा होकर अवरुद्ध हो जाता है या उसमें खून का थक्का हृदय से या गले की धमनी से निकलकर रक्त प्रवाह द्वारा पहुंचकर उसे अवरुद्ध कर सकता है।

जिन व्यक्तियों को उच्च रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) की बीमारी होती है। उनमें अचानक रक्तचाप बढ़ने से दिमाग की नस फट जाने से लकवा हो जाता है। कुछ मरीजों में दिमाग की नस की दीवार कमजोर होती है जिससे वह गुब्बारे की तरह फूल जाती है। एक निश्चित आकार में आने के बाद इस गुब्बारे (एन्यूरिज्म) के फटने से भी लकवा हो जाता है।

लक्षण :

  • अचानक याददाश्त में कमजोरी आना,
  • बोलने में दिक्कत आना,
  • हाथ या पांव में कमजोरी,
  • आंखों से कम दिखना,
  • व्यवहार में परिवर्तन, चेहरे का टेड़ा होना इत्यादि।

किसी को लकवा आया है तो ये जांच करा लें

  • चेहरा- क्या मरीज ठीक तरह से हंस सकता है, क्या उसका एक तरफ का चेहरा या आंख लटक गई है?
  • भुजाएं- क्या मरीज अपनी दोनों भुजाएं हवा में उठा सकता है?
  • बोली- क्या मरीज स्पष्ट बोल सकता है व आपके बोले हुए शब्दों को समझ सकता है?
अगर मरीज में ये लक्षण हैं तो इसके 85 प्रतिशत अवसर हैं कि उसे लकवा हुआ है। इसलिए उसे तुरंत मेडिकल सहायता उपलब्ध कराएं व न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाएं।

क्या बचाव संभव है

करीब 80 प्रतिशत मामलों में लकवों से बचा जा सकता है। 50 प्रतिशत से ज्यादा लकवे अनियंत्रित रक्तचाप या उच्च रक्तचाप के कारण होते हैं। इसलिए उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) का उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही धूम्रपान का त्याग, सैर करने जाना, नियमित व्यायाम व एट्रियल फिब्रिलेशन, जिसमें हृदय की गति अनियंत्रित हो जाती है उसका उपचार भी जरूरी है।काफी मरीजों में लकवा आने के कुछ हफ्तों के अंदर ही थोड़ा सुधार देखने को मिलता है। मरीजों में लकवे के एक या डेढ़ साल के अंदर काफी सुधार आ जाता है। केवल कुछ मरीजों में ज्यादा समय लगता है।



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