गर्भपात कराने में आशा बहू और एएनएम भी शामिल

Swati ShuklaSwati Shukla   17 March 2017 1:58 PM GMT

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गर्भपात कराने में आशा बहू और एएनएम भी शामिलगर्भपात कराने में आशा बहू और एएनएम भी सहयोग कर रही हैं।

स्वाती शुक्ला ,स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। कानून होने के बावजूद भी गर्भपात पर पूरी तरह से रोक लगना अब तक मुमकिन नहीं हो सका है। बड़ी बात यह है कि गर्भपात कराने में आशा बहू और एएनएम भी सहयोग कर रही हैं।

मामला कानपुर के एक परिवार का है। गर्भवती महिला का लिंग परीक्षण कराने पर जब यह पता लगा कि उसके पेट में लड़की है तो जबदस्ती उसका गर्भपात करवा दिया गया। इसके बाद महिला की हालत गंभीर होती चली गई और अंत में उसकी मौत हो गई। इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मौत का कारण गर्भपात कराने की वजह से खून नहीं रुकने के कारण हुई है।

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जब इस मामले की जानकारी कानपुर जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा को दी गई तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संघीय कानून बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत पूर्व लिंग निर्धारण पर रोक लगा दी गई है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट 1996 के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पांबदी है।

अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले के खिलाफ डाक्टर, लैब कर्मी को तीन से पांच साल की सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है। इंडियास्पेंड जुलाई 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, यह कहा गया है कि भारत में जन्मे चार में से एक लड़की उत्तर प्रदेश में जन्म लेती है। प्रदेश के गिरते लिंग अनुपात का गंभीर प्रभाव भारत के कुल बाल लिंग अनुपात पर पड़ता है। उत्तर प्रदेश पर यह रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि राज्यों में अधिकार अधिनियम ठीक से लागू नहीं होते हैं।

अधिनियम के तहत केवल 350 लोगों को दोषी ठहराया गया है। वहीं, सोनभ्रद के सीएमओ बीके मिश्रा ने बताया, शहरों में गर्भपात के मामले बहुत कम होते हैं, लेकिन गाँवों में जागरुकता की कमी के कारण महिलाएं गर्भपात कराती हैं। जबकि गर्भपात कराना कानून अपराध है। सरकारी अस्पताल में लिंग परीक्षण नहीं होता। न ही साधन हैं, जिससे ये परीक्षण हो सके। वहीं, महिला समाख्या आरसी सुशीला देवी बताती हैं, ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। यहां पर आशा बहू और एएनएम भी गर्भपात कराने में सहयोग करती हैं। उनके पास गर्भपात कराने के लिए दवाएं भी होती हैं। सुशीला आगे बताती है, आशा, एएनएम भी उसी समाज का हिस्सा होती है इसलिए उनकी सोच और विचारघारा भी यहीं होती है।

क्या कहते हैं अधिकारी

प्राएसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा बताती हैं, ये कानून बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें सुधार की बहुत जरुरत है। इसके लिए यह भी कहा गया है कि सभी अस्पतालों में छापेमारी की जाएगी। एक ही डॉक्टर ने चार से पांच जगहों पर अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी की मशीनें लगा रखी हैं। जिनके माध्यम से लिंग परीक्षण आसानी से करा लेते हैं। लिंग परीक्षण कराने के लिए जितनी भूमिका परिवार वालों की है, उससे कहीं ज्यादा डॅाक्टरों की है। नियम को बस दीवारों पर लिख दिया गया है, लेकिन पूरी तरह से लागू करने के लिए और सख्ती की जरूरत है।

तब सुप्रीम कोर्ट ने भी किया था इंकार

हाल में मुंबई की 23 हफ्ते की गर्भवती महिला को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी थी। क्योंकि उस महिला के पेट मे पल रहे बच्चे की दोनों किडनियां नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि गर्भपात तभी करवाया जा सकता है, जब गर्भ में पल रहे भ्रूण में किसी तरह की विकृतियां या समस्या हो। मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक, 20 हफ्ते से ज्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है।

दोनों तरफ से मिलता है पैसा

बाराबंकी जिला के देवा ब्लॅाक की रहने वाली आशा नाम न बताने की शर्त पर बताती है, ‘हमारे ही जिले में कुछ ऐसी आशा हैं, जो महिलाओं के गर्भपात कराने में मदद करती हैं। ज्यादा पैसे के चक्कर में गर्भपात कराने के लिए गैर सरकारी अस्पताल में ले जाती हैं। इन आशाओं को दो तरीके से पैसे कमाने का मौका मिल जाता है। एक तो परिवार से गर्भपात कराने का, दूसरा अस्पताल में महिला को लाने का।

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