पैदल फ़ौज: खुद आशा बहुओं का प्रसव कौन कराए?

Swati ShuklaSwati Shukla   18 Jan 2017 2:43 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
पैदल फ़ौज: खुद आशा बहुओं का प्रसव कौन कराए?दूसरों का सुरक्षित प्रसव कराने की जिम्मेदारी उठाने वाली आशाओं को खुद के प्रसव में संभालने वाला कोई नहीं।

लखनऊ। नौ माह की गर्भवती आशा बहू शशी देवी गाँव की ही एक महिला को प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल ले गई और उसका सुरक्षित प्रसव कराया। इसी दौरान शशी के पेट में दर्द होने लगा और वहीं पर उसकी डिलीवरी हो गई लेकिन उसको संभालने वाला कोई भी अपना वहां नहीं था।

गाँव के लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं आराम से मुहैया कराने के लिए सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की थी। बाराबंकी से 14 किलोमीटर दूर देवा ब्लॉक के रहने वाली शशी देवी (28 वर्ष) बताती है, “ मैं नौ माह की गर्भवती थी, तभी पास के गाँव से एक आदमी का फोन आया है कि मेरी बीवी के पेट में दर्द हो रहा है, जल्दी आओ अगर इसको कुछ हो गया तो तुम इसकी जिम्मेदार होगी। मैं अपने घर का सारा काम छोड़कर उसकी डिलीवरी करवाने अस्पताल चली गई। दोपहर को जब उसकी डिलीवरी हो गई।”

आशा बहुओं के लिए विभाग केयरलीव के बारे में विचार कर रहा है। हम उनकी मेहनत को देखते हुए उनको सम्मानित करते हैं। अच्छा काम करने पर उनका मानदेय बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हें चुनाव से भी दूर रखा गया है।
आलोक कुमार, मिशन निदेशक, एनआरएचएम

उसने बताया, “थोड़ी ही देर में मेरे पेट में तेज से दर्द होने लगा। तीन बार तेजी से दर्द होने पर मैं जमीन पर बैठ गई। उसके तुरन्त बाद मेरी डिलीवरी हो गई, उस समय मेरे साथ कोई नहीं था। हम लोग ऐसी कठिन परिस्थितियों में काम करते है। गाँव की बहुत सी महिलाओं की सहायता मैंने की पर मेरे साथ कोई नहीं था। कई घण्टे बाद मेरे पति आए थे। आशा बहू बनने के बाद 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। हमें कभी-कभी राह चलते राहगीरों से मदद लेने पड़ती है।”

शशी देवी, आशा बहू, बाराबंकी।

उत्तर प्रदेश में 14 लाख 55 हजार 57 सौ आशाबहू कार्यकत्री हैं। एक हजार की संख्या पर एक आशाबहू की नियुक्ति होती है लेकिन ऐसे बहुत से गाँव हैं जहां पर दो हजार लोगों पर एक आशा बहू है। बक्शी के तलाब ब्लॉक बीकेटी गाँव बघौली के रहने वाली गागोत्री देवी (40 साल) बताती है, “महीना भर काम करने के बाद जरूरी नहीं कि पैसा मिले, पिछले तीन महीने से कोई पैसा नहीं मिला। जब डिलीवरी व नसबन्दी होगी तब पैसा मिलेगा। वह पैसा तीन चार महीने में आता है। सरकार हमारे काम लगातार बढ़ा रही है।”

दिनोंदिन बढ़ रही जिम्मेदारी

बाराबंकी से 11 किलोमीटर दूर बंकी ब्लॉक दानियालपुर की रहने वाली आशा बहू सुमित्रा देवी बताती है, “आशा बहू के काम और जिम्मेदारी दिन पर दिन बढ़ रही है।”

आशा बहुओं को नहीं मिलता मातृत्व अवकाश

गर्भवतियों के सुरक्षित प्रसव के लिए आशा बहुएं दिन रात एक कर देती हैं पर उनको ही मातृत्व अवकाश नहीं मिलता। महोबा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एस.के. वाष्र्णेय ने बताया, “आशा बहुएं मानदेय पर कार्य करती हैं, इसलिए इन्हें मातृत्व एवं चाइल्ड केयर लीव नहीं मिलती है। सिर्फ काम का पैसा दिया जाता है। ये पैसा काम करने के बाद मिलता है। काम न करने पर नौकरी से निकाल दिया जाता है।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.