आख़िर क्या कारण है, जो बिखर रहे हैं संयुक्त परिवार

Neetu SinghNeetu Singh   17 May 2017 10:01 AM GMT

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आख़िर क्या कारण है, जो बिखर रहे हैं संयुक्त परिवारबढ़ते आधुनिकीकरण के चलते अब संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवारों ने ले ली है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। बढ़ते आधुनिकीकरण के चलते अब संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवारों ने ले ली है, वजह चाहे रोजगार के चलते शहर जाना हो या फिर अपना करियर बनाना के लिए किसी और शहर पलायन करना हो। बच्चों की बेहतर शिक्षा की वजह से भी कई बार सयुंक्त परिवार एकल परिवार की जगह ले लेते हैं।

“हमारे पति इतना नहीं कमाते हैं कि हम सास-ससुर को भी साथ रख सकें, बेटी एलकेजी में पढ़ रही है। इसलिए सास–ससुर के साथ हम रह नहीं सकते हैं, पति को खाना कौन बनाएगा और फिर बेटी अच्छे स्कूल में पढ़ नहीं पाएगी।’’ ये कहना है लखनऊ जिले के गोमतीनगर में रहने वाली रंजू शर्मा (30 वर्ष) का। रंजू शर्मा पहली महिला नहीं हैं, जिनके सामने ये समस्या है।

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कई बार मुझे अपनी सासू मां की जरूरत लगती है कि वो मेरी बेटी को लोरी सुनाएं जो वो मुझसे जिद करती है और मुझे आती नहीं है। अगर मैं बीमार पड़ जाऊं तो भी सब कुछ मुझे ही करना पड़ता है। अगर सास साथ रहें तो दोनों को फायदा होगा पर क्या करें मजबूरी है।
रंजू शर्मा, गृहणी,गोमती नगर, लखनऊ

इनकी ही तरह हजारों महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं। इन महिलाओं को जहां एक तरफ पति और बच्चों की जिम्मेदारी संभालने के लिए घर से दूर रहना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ घर परिवार से दूरी बढ़ती जाती है, जिससे सयुंक्त परिवार समय के साथ एकल परिवार बनते जा रहे हैं।

कानपुर देहात जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर राजपुर ब्लॉक के इटखुदा गाँव की रहने वाली विदुर रामश्री कटियार (70 वर्ष) का कहना है, “हमारा लड़का-बहू दिल्ली में रहते हैं, छोटे लड़के की अभी शादी नहीं हुई है, बुढ़ापे की वजह से अब हमसे कुछ किए नहीं होता है, पैर में गठिया है, जिसकी वजह से चल नहीं पाते हैं पर मजबूरी में सब करना पड़ता है।’’

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