बेसुरी हुई पीलीभीत के बांसुरी उद्योग की सुरीली तान 

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बेसुरी हुई पीलीभीत के बांसुरी उद्योग की सुरीली तान नोटबंदी और पीलीभीत रेलखंड के कारण बांसुरी के व्यापार में समस्या खड़ी हो गई है।

अनिल चौधरी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

पीलीभीत। छह महीने पहले तक बांसुरी की तान पर पूरा पीलीभीत झूमता-इतराता था। इसके सुर कान्हा की नगरी मथुरा-वृंदावन ही नहीं अमेरिका, पाकिस्तान, फ्रांस और लंदन जैसी जगहों पर भी गूंजते थे। लेकिन, बीते छह महीने में हालात बदल गए।

यहां की बनी बांसुरी पर गुमान करने वाले लोग इस शहर के पुश्तैनी बांसुरी उद्योग पर छाए मायूसी के बादल से परेशान हैं। नोटबंदी और पीलीभीत रेलखंड को मीटर से ब्राडगेज में बदलने के काम ने इस उद्योग को मायूसी की चादर से ढक दिया है। उसने बांसुरी उद्योग से जुड़े कारीगरों से दो वक्त की रोटी छीन ली। वे अब परिवार की गाड़ी खींचने के लिए रिक्शा चला रहे हैं।

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पिछले छह माह पूर्व हुई नोटबंदी के कारण पीलीभीत की बांसुरी की आवाज़ कहीं गुम सी हो गई है। पीलीभीत को रेल से जोड़ने वाले रेलखंड पर मीटर गेज का ब्रॉडगेज लाइन में बदलाव का काम होने की वजह से लोग बदहाली से गुजर रहे है। कारीगर बांसुरी के लिए कच्चा सामान लाने से लेकर तैयार बांसुरियों को भेजने की दिक्कतों से जूझ रहे हैं। हालांकि आम जिंदगी अब नोटबंदी से उबर चुकी है, लेकिन बांसुरी उद्योग अभी भी इससे जूझ रहा है।

पीलीभीत का यह पुश्तैनी उद्योग बंद होने की कगार पर है। इस शहर के करीब 200 परिवार ऐसे हैं जो बांसुरी बनाने का काम करते हैं और इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती आई है। आज पीलीभीत के बांसुरी उद्योग का आलम यह है कि पैसे की कमी व बड़े शहरों को जाने वाली रेलवे सेवा भी नहीं प्राप्त हो रही है। इन परेशानियों से तंग आकर अधिकतर लोग यह काम छोड़ चुके हैं और अब आगे इस उद्योग को चलाने वाले कारीगर नहीं मिल रहे है। शहर में कुछ जगह बांसुरी बनती भी हैं तो बिकने के लिए बाहर नहीं जा पाती।

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मैं पिछले तीन साल से बांसुरी बनाने का कार्य कर रहा हूं। नोटबंदी के बाद व्यापार काफी गिर गया। अभी हम एक दिन में 500 पीस बांसुरी तैयार कर लेते हैं, जिससे दो हज़ार पीस का कॉर्टेज बनाकर देश के बड़े शहरों दिल्ली, बम्बई के अलावा फ्रांस, यूएस, लन्दन और पाकिस्तान आदि देशों में यहां से बांसुरी भेजी जाती हैं। यह हमारा पुशतैनी कारोबार है। सन 1982 में नवाब अहमद के स्वर्गीय पिता अब्दुल नबी की बांसुरी बनाने के लिए नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है।
नबाव अहमद, बांसुरी निर्माता, निवासी, मदीना शाह मोहल्ला

महंगाई मार गई

रेलखंड पर चल रहे काम की वजह से यहां बांसुरी उद्योग के बंद होने की मुख्य वजह लंबी दूरी की ट्रेनों का न चलना है। पीलीभीत जंक्शन से मात्र बरेली तक ही ट्रेन जाती है जिसके कारन बांसुरी में लगने वाला कच्चा माल जो कि आसाम सिल्चर आदि जगहों से आता है जो सीधा पीलीभीत के बांसुरी व्यापारियों को प्राप्त नहीं हो पाता है। उन्हें कच्चा माल प्राप्त करने के लिए ट्रांसपोर्ट का सहारा लेना पड़ता है जो उनको काफी महंगा पड़ता है। रेल ट्रांसपोर्ट के बगैर सुचारू हुए बंदी की कगार पर पहुंचे बांसुरी उद्योग को पटरी पर लाना नामुमकिन है।

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