सुर्खियां नहीं बनती कंटीले तारों वाली गोहत्या

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सुर्खियां नहीं बनती कंटीले तारों वाली गोहत्याकंटीले तारों से घायल गाय।

हरिओम दि्वेदी/दिति बाजपेई

हरदोई/सीतापुर/बाराबंकी। गाय , नीलगाय और भैंस समेत छुट्टा जानवर हर साल किसानों को लाखों रुपये का नुकसान पहुंचाते हैं। इनसे बचने के लिए किसानों ने भारी संख्या में किसानों ने खेतों के चारों और कंटीले तार लगवाने शुरु किए हैं। जो छुट्टा जानवरों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जरुरी भी है लेकिन इस बीच कुछ किसान रेजर वाले तार (लेजर वायर) लगवा रहे हैं, जिसमें फंसकर सैकड़ों पशु घायल हो रहे हैं।

इन तारों में कटकर घायल होने वाले पशुआें से सबसे बड़ी संख्या गायों की है। एक तरफ जहां गो हत्या प्रतिबंधित है, और इस मुद्दे पर खूब हंगामा भी हुआ। लेकिन खेतों में गायों का लहूलुहान होना जारी है। जो गंभीरता से सोचने पर मजबूर करता है। प्रदेश में बढ़ते चारे की कमी और पशुओं का दुधारू न होने से पशुपालक ऐसे लाखों पशुओं को छुट्टा छोड़ देते हैं, और इन्हीं पशुओं से फसल को बचाने के लिए खेत के चारों ओर कंटीले तार लगा देते हैं। ये खतरनाक ब्लेड लगे तार आसानी से कोई भी बाजार से खरीद सकता है।

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हरदोई जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी पश्चिम में कोथावां ब्लॉक की ग्राम पंचायत भैनगाँव ग्राम पंचायत के गाँव हत्याहरण निवासी सत्यप्रकाश गोस्वामी (31 वर्ष) बताते हैं, "जब गाय दूध देना बंद कर देती हैं तो लोग गायों को यहां छोड़ जाते हैं। सैकड़ों की संख्या में आवारा गोवंश से फसलों को बचाने के लिए किसानों ने अपने खेतोंके चारों ओर धारदार कंटीले तार लगा रखे हैं। गाय जब खेत में चरने के लिए जाती हैं, तो तारों में फंसकर बुरी तरह से कट जाती हैं। धीरे-धीरे कटे स्थान पर कीड़े पड़ जाते हैं और रोजाना कई गोवंश तड़प-तड़प कर मर जाते हैं।"

हत्याहरण निवासी जुगल किशोर औदिच्य (58) कहते हैं कि पिछली सरकार में कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उम्मीद थी योगी सरकार गायों के लिए कुछ बेहतर करेगी, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है।

सीतापुर जिले में किसानों के लिए काम करने वाली संस्था के प्रमुख विकास तोमर बताते हैं, "लोगों ने संकरी सड़कों के दोनों किनारों पर अपने-अपने खेतों में तार लगवा दिया, वाहन चालक से थोड़ी चूक हुई तो हादसे से ज्यादा वह इन तारों में घायल हो जाता है। हम लोग शुक्रवार को इस मामले में वर्तमान डीएम से मुलाकात करने वाले हैं," आगे बताते हैं, "जब तक गाँवों में चारागाह मुक्त नहीं होंगे, छुट्टा जानवरों से छुटकारा नहीं मिलेगा। चरागाह की जमीन मुक्त करवाकर उसे मनरेगा के तहत विकसित कराना होगा।"

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पशु क्रूरता अधिनियम नहीं देता इसकी इजाजत।

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हरदोई के पड़ोसी जिले सीतापुर में लागातर आ रही शिकायतों के बाद 2016 में पूर्व डीएम अमृत त्रिपाठी ने बाकायदा इन तारों पर प्रतिबंद लगा दिया था।

इस बारे में ग्रामीणों ने कई बार ग्राम प्रधान से लेकर प्रशासन तक को गायों के कटने की जानकारी दी, लेकिन अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। गाँव कनेक्शन की टीम ने जब भैनगाँव ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान रामनाथ दिवेदी (42) से बात की तो उन्होंने कहा कि भैन गाँवग्राम पंचायत में ग्राम सभा की जमीनें अवैध तरीके से अधिग्रहित हैं। प्रशासन को ऐसी जमीनें खाली करवाकर यहां पर गोशाला बनवानी चाहिए या फिर इसकी जिम्मेदारी ग्राम प्रधान को दे देनी चाहिए।

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हत्याहरण गाँव के निवासी श्रवण कुमार (28) वर्ष कहते हैं ‘खेतों में खड़ी फसलों को बचाने के लिए किसानों को मजबूरी में अपने खेतों के चारों ओर तार लगाने पड़ते हैं। अगर खेत में तार न लगाए जाएं तो हम लोग खाएंगे क्या। क्योंकि यहां खेती के अलावा जीविका चलाने का कोई और उपाय भी नहीं है।’

मेरे विवेक से फसलों को पशुओं से बचाने के लिए कंटीले तार लगाना उचित है। पशु यदि उससे टकरा कर जख्मी हो रहा है तो यह पशु क्रूरता केतहत नहीं आता है।
एस पी सिंह बघेल, पशुधन मंत्री

इसी गाँव के ही दिनेश कुमार (46) बताते हैं कि यहां धारदार तारों से कटकर रोजाना दर्जनों गाय घायल हो रही हैं। इन्हें बचाने न तो कोई राजनीतिक दल आता है और न ही कथित गो भक्त। वह आगे बताते हैं कि धारदार तारों से कटकर गायों के शरीर पर बड़ा घाव हो जाता है, जिसमें कीड़े पड़ जाते हैं। इसके बाद गाय कुछ भी खाना छोड़ देती है और धीरे-धीरे घुट-घुट कर मरने को मजबूर हैं।

लोगों को योगी सरकार से उम्मीदें।

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कोथावां ब्लॉक के ही गांव पुरवा बाजी राव निवासी पंकज सिंह (35) कहते हैं कि गायों के इलाज के लिए कई बार ब्लॉक में गएए लेकिन डॉक्टरों नेदवाई न होने की बात कहकर टरका दिया।

हत्याहरण निवासी जुगल किशोर औदिच्य (58) कहते हैं कि पिछली सरकार में कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उम्मीद थी योगी सरकार गायों के लिए कुछ बेहतर करेगी, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। उन्होंने योगी सरकार से अपील करते हुए कहा, मुख्यमंत्री जी इन गायों को बचाने के लिए कुछ तो करो। यहां जिंदा गायों को कौवे नोच-नोच खा रहे हैं।

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ग्रामीणों की बनवाई जाए गोशाला

ग्रामीणों के मुताबिक, उनसे गऊ माता का दर्द देखा नहीं जाता। इसलिए वो लोग मिलकर रोजाना गायों के घावों पर अपने पैसों से दवा लगाते हैं। उनकी मांग है कि यहां सरकार किसी गोशाले का प्रबंध करे या फिर गायों को यहां से ले जाये ताकि उनकी ऐसी दुर्दशा होने से बच सके। साथ ही खाली पड़े खेतों फिर से फसल लहलहा सके।

पशु क्रूरता अधिनियम नहीं देता इसकी इजाजत

स्थानीय लोग परेशान हैं और किसान बेबस। बेजुबानों की हालत उनसे देखी नहीं जाती। वे खेतों में कंटीले तार लगाने को मजबूरी करार देते हैं। लेकिन, यह पशु क्रूरता अधिनियम 1060 के तहत कानूनन जुर्म है। इसमें साढ़े तीन साल की सजा का भी प्रावधान है। इस पर कार्रवाई का अधिकार जिलाधिकारी और पुलिस प्रशासन को है। अपनी समस्या लेकर ग्रामीण प्रशानिक अधिकारियों तक पहुंच चुके हैं। मगर, वे भी बेजुबानों की हो रही इन दर्दनाक मैतों को लेकर गंभीर नहीं है। फसलों को बचाने के लिए कंटीली तारों का लगाना और इससे पशुओं के घायल होकर मरनाकिसी एक जिले या गांव का मामला नहीं है। प्रदेश भर में किसान अपनी फसल को बचाने के लिए खेतों को कटीली तारों से घेर रहे हैं। इनसे नीलगाय, गाय आदि जख्मी होकर अपनी जान से हाथ धो रहे हैं।

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खेतों में कंटीले तारों का प्रयोग करना जुर्म है। ज्यादातर महंगी फसलों में किसान कंटीले तारों का प्रयोग करते हैं। अगर कंटीले तारों से कोई पशु घायल होता है तो इस लगाने वाले के खिलाफ पशु क्रूरता अधिनियम के तहत सजा हो सकती है। कटीले तारों को लगाने की समस्या किसीएक जिले की नहीं हैए बल्कि प्रदेश के कई जिलों में यह देखा जा रहा है। तार लगाकर गोहत्या हो रही है।
धीरेंद्र सिंह, अध्यक्षए पीपल्स फार एनिमल, बरेली

किसान पैसा बचाने के लिए कंटीले तारों से खेतों को घेरते हैं। वे ये नहीं देखते कि इससे बेजुबानों की जान जा सकती है। इसे देखते हुए उनकीसंस्था लखनऊ और आसपास के गांवों में जाकर कंटीले तार हटवा कर सुरक्षित किस्म के तारों को लगाने का काम करती आ रही है।
यतिंद्र त्रिवेदी, सचिव, जीवाश्रय गोशाला

वहीं बाराबंकी जिले में सूरतगंज के टांडपुर निवासी रामसांवले शुक्ला बताते हैं, “हमारे यहां छुट्टा जानवरों का बहुत आतंक है। मैं भी आरी वाला तार लगवाना चाहता था, लेकिन पता चला इनसे जानवरों को बहुत नुकसान होता है तो कंटीले तार लगवा दिए। हमें खेत तो बचाने हैं लेकिन इस तरह जानवरों का खून बहाकर नहीं।”

छुट्टा जानवरों से सबसे ज्यादा परेशान बुंदेलखंड है, वहां अन्ना प्रथा को कलंक कहा जा रहा है। लेकिन की जगह किसानों ने इनसे बचने के लिए तरीके भी आजमाएं हैं। ललितपुर में कई गांवों के किसानों ने आसपास की छुट्टा गायों के लिए रखने और खाने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी तक की है और लोग बारी-बारी उसे अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं।

अतिरिक्त सहयोग- विकास सिंह / वीरेन्द्र शुक्ला

                          

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