पहाड़ी संस्कृति में अच्छी फसल की पैदावार के लिए गाया जाता है हुड़किया बौल गीत
Devanshu Mani Tiwari 2 Feb 2017 3:01 PM GMT
लखनऊ। पहाड़ी संस्कृति में किसान खेती के दौरान हुड़किया बौल गीत गाते हैं। उत्तरायणी संस्कृति के लोकप्रिय गीतों में से एक माना जाने वाला हुड़किया बौल गीत कुमाऊं व गड़वाल क्षेत्र में ज़्यादा प्रचलित है।
हुड़किया बौल गीत के बारे में लखनऊ में हुए उत्तरायणी मेले का हिस्सा बन चुके उत्तराखंड के लोककलाकार राजोन बोरा बताते हैं, ''हुड़किया बौल उत्तराखंड की वह विधा है, जिसमें आमतौर पर खेतों में काम करने वाले लोग और किसान महिलाएं शामिल होती हैं। इस लोकगीत को खेतों में रोपाई वा गोड़ाई के समय गाया जाता है। इन गीतों को खेतों में रोपाई कर रहे मजदूरों की थकान मिटाने के लिए गाया जाता है। इस गीत को गाते समय हुड़किया वाद्ययंत्र बजाया है।''
इस विधा में ग्रामीण महिलाएं व पुरूषों के समूह मुख्यरूप से शामिल होते हैं, जो एक पंक्ति में खड़े होते हैं, जिसके हाथ में वाद्य यंत्र होता है वो ही गीत की शुरुआत करता है बाकी सभी लोग उसके गाने के बाद वही पंक्तियां दोहराते हैं।
इस गीत की शुरूआत से पहले ग्रामीण अपने खेतों की पूजा करते हैं और फिर अपनी स्थानीय खेती के तौर-तरीकों पर आधारित गीत गाते हैं। रोपाई से पहले इस गीत को गाने का अलग महत्व है। लोग मानते हैं कि खेत में फसल की रोपाई के दौरान इस गीत को गाने से फसल की पैदावार अच्छी होती है।राजन बोरा, उत्तराखंड के लोककलाकार
हुड़किया बौल गीत गाते समय लोग घरों की थाली, प्लेटें और ढोल को बजाते हैं। इन गीतों में अधिकतर स्थानीय शूरवीरों की गाथाओं की कहानी का जिक्र किया जाता है। इससे लोगों में ताकत का संचार होता है, जिससे वो थकान व सुस्ती भूल जाते हैं।
हुड़किया बौल गीत की कुछ पंक्तियां-
ओघोगोंक भुमियाराजो माताजैकी बौलाहो भुमियाराजो।
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