योजना बनी पर बदली नहीं बुनकरों की किस्मत

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   29 Jan 2017 10:24 AM GMT

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योजना बनी पर बदली नहीं बुनकरों की किस्मतये हाल है कारखानों का।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब वर्ष 2014 में पहली बार वाराणसी आए थे, तब उन्होंने यहां के बुनकर उद्योग को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई थीं। प्रधानमंत्री ने अपना वादा तो ज़रूर पूरा किया पर इन योजनाओं का फायदा उन कारीगरों को मिलने के बजाए बड़ी बुनकर कंपनियों के मालिकों को मिलता हुआ दिख रहा है।

वाराणसी जिला मुख्यालय से पांच किमी. दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित मदनपुरा बाज़ार बुनकारी कारखानों का मुख्य स्थान है। यहीं के एक कारखाने में काम करने वाले मजदूर मो. सद्दाम बताते हैं, “हमारे कारखाने पर दो हज़ार रुपए से लेकर दो लाख रुपए तक की साड़ियां बनाई जाती हैं। कम दाम वाली साड़ी में ज़्यादा काम नहीं होता, इसलिए उन्हें बनाने में दो से तीन दिन लगता है। 15 से 20 हज़ार की साड़ी बनाने में 10 से 12 दिन लग जाते हैं।”

सद्दाम आगे बताते है कि दो हज़ार की साड़ी बनाने में ठेकेदार हमें 150 से 200 रुपए मेहनताना देता है। यही साड़ी वो दुकानदारों को चार से पांच हज़ार में बेच देता है।

सद्दाम की तरह पूरे वाराणसी जिले में पीढ़ी दर पीढ़ी से लाखों की संख्या में लोग बनारसी सिल्क साड़ियां बनाने का काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने अपने पिछले सभी बजट में बुनकरों को लेकर चिंता जताई है।

वाराणसी के रसूलपुरा क्षेत्र में प्रिंस कंपनी के नाम से बनारसी सिल्क साड़ियों का व्यवसाय चला रहे 65 वर्षीय अज़ीम बाबू सरकार की योजनाओं को बेअसर बताते हुए कहते हैं,’’ बुनकरों के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने बुनकर ट्रेड सेंटर तो बना दिया है, पर यहां सुविधा के नाम पर हमें सामान बेचने के लिए जगह ही दी जाती है। बैंक में लोन के लिए जाओ तो वहां बोला जाता है कि अभी बुनकरों के लिए कोई पैसा नहीं आया है, इसलिए लोन नहीं मिल पाएगा।’’

साल दर साल घट रहा आंकड़ा

बनारस में काम कर रहे बुनकरों को राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम से मिलने वाली मदद के बारे में राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम के सहायक प्रबंधक मो. हनीफ बताते हैं, ‘’केंद्र सरकार से मिलने वाले बजट से निगम बनारस की हर एक बुनकर सोसाइटी तक कच्चा माल व रेशम भिजवाती है। इसके बाद सोसाइटी यह कच्चा माल अपने बुनकरों को सब्सिडी पर कम दामों पर देती है।’’ वाराणसी में राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम से मिली जानकारी के अनुसार, बनारस में मौजूदा समय में 500 बुनकर सोसायटी हैं। इनमें कुल मिलाकर 200 से 250 बुनकर ही काम करते हैं।

बनारसी रेशम उद्योग पर पड़ा असर

विश्व व्यापार संगठन की नॉन ऐग्रीकल्चर मार्केट रिसर्च (एनएएमए) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों से भारत में कच्चे माल के आयात शुल्क की बढ़ोत्तरी के कारण बनारसी रेशम के उद्योग पर काफी असर पड़ा है।

लालपुर में रिज़वी बुनकरी वर्क्स कारखाने में पिछले आठ वर्षों से काम कर रहे कारीगर मो. शब्बीर ने बताया कि पूरे लालपुर में आज़ादी के पहले से लोग बुनकरी का काम कर रहे हैं। यहां ऐसे बुनकर जिनकी पहुंच हथकरघा विकास निगम के कर्मचारियों तक हैं, उन्हें कच्चा माल व रेशम आसानी से मिल जाता है, लेकिन छोटे तबके के बुनकरों को कच्चे माल के लिए (एनएचडीसी) के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

निगम बुनकरों के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, लेकिन कारखानों में काम कर रहे बुनकरों की हालत सुधारने के लिए स्थानीय बुनकर सोसाइटी को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी।

छोटे बुनकरों को फायदा नहीं

स्थानीय बुनकरों के मुताबिक, यूपीए सरकार ने तीन हज़ार करोड़ रुपए क़र्ज माफ़ी के लिए दिया था, पर किसी को कुछ नहीं पता कि ये पैसे कहां चले गए। मोदी सरकार ने बड़ा लालपुर क्षेत्र में बुनकर ट्रेड सेंटर खुलवाया है, उसमें महीने में एक बार छोटे बुनकरों के लिए ट्रेड फेयर लगाया जाता है पर वहां बहुत कम खरीदार ही आते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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