सूफ़ी संतों की सलाह सही, बशर्ते हम उस पर अमल करें

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सूफ़ी संतों की सलाह सही, बशर्ते हम उस पर अमल करेंगाँवकनेक्शन

अभी दिल्ली में दुनियाभर से सूफ़ी विचारों के लोग आए और खुलकर चर्चा की। भारत की आजादी के बाद यह पहला ऐसा समागम था। इस आयोजन में पाकिस्तान से आए मुहम्मद ताहिर-उल-कादरी ने महत्वपूर्ण सवाल उठाया “क्या हम हमेशा दुश्मन बने रहेंगे?” पाकिस्तान में बैलट के माध्यम से शान्तिपूर्ण तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ था और नवाज़ शरीफ़ तीसरी बार वहां के चुने हुए प्रधानमंत्री बने हैं।  

आजादी के बाद भारत ने अपना सेक्युलरवादी प्रजातांत्रिक संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया था और संसदीय लोकतंत्र की राह पकड़ी। स्वतंत्रता संग्राम के अगुआ महात्मा गांधी और मुहम्मद अली जिन्ना दोनों का देहान्त एक ही साल 1948 में हो गया। भारत में प्रधानमंत्री भी सुरक्षित रहा और प्रजातंत्र भी। इसके विपरीत पाकिस्तान में लियाकत अली खान प्रधानमंत्री बने और 1951 में उनका कत्ल कर दिया गया। हिंसा ने पाकिस्तान को प्रजातंत्र के रास्ते पर जाने से रोक दिया।

वास्तव में पाकिस्तान का निर्माण ही मजहब के आधार पर हिंसा की राह चलकर हुआ था। उसके दो भाग थे पश्चिमी पाकिस्तान जो अब पाकिस्तान है और पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है। मजहब उन दोनों भागों को बांधकर नहीं रख सका। प्रजातंत्र के अभाव में और तानाशाही और सैनिक शासन के चलते वहां सेक्युलर व्यवस्था न बननी थी और न बनी।

पाकिस्तान में जिन दो लोगों ने प्रजातंत्र की नींव डालनी चाही उनमें पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में शेख मुजीबुर रहमान थे। उन दोनों का दुखद अन्त हुआ। भारत में यदि इन्दिरा गांधी द्वारा लगाया गया 1975 का आपातकाल का धब्बा छोड़ दिया जाए तो प्रजातंत्र बेदाग रहा है। सत्ता परिवर्तन के बावजूद विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर आम राय रही है। इसके विपरीत पाकिस्तान का अपना संविधान ही 1956 में बन पाया था। पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का वही तरीका चलता रहा जो भारत में मुगलकाल में चलता था। 

यदि पाकिस्तान में प्रजातंत्र होता तो तीन बार भारत के साथ युद्ध न हुआ होता। 1971 के युद्ध ने तो पाकिस्तान के ही दो खंड कर दिए और बांग्लादेश को जन्म दिया। 

भारत के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से शायराना अंदाज में लाहौर में मुलाकात की। बहुतों को उम्मीद बंधी थी कि पाकिस्तान सें इस बार रिश्तों मे कुछ मिठास तो आएगी। उस समय पाकिस्तान में सेना की कमान संभाले हुए परवेज़ मुशर्रफ को दोनों देशों की बढ़ती दोस्ती पसन्द नहीं आई। कारगिल का युद्ध हुआ, रिश्ते फिर बिगड़ गए। कालान्तर में मुशर्रफ साहब को जेल हुई और नवाज शरीफ वहां के प्रधानमंत्री बनें। 

लगा कि प्रजातंत्र ने तानाशाही को सलाखों के पीछे डाल दिया। काश ऐसा हो जाता और ये जुड़वां देश (अब तो तीन हो गए हैं) अमन का रास्ता अपना सकते। सूफी संतों का पैगाम हमें सही रास्ता दिखा सकता है, बशर्ते हम उस पर चलने को तैयार हों।

 

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