हुनरमंद बनाने की नायाब कोशिश
शिक्षा तभी सार्थक होती है जब विपरीत परिस्थिति में भी उसका सही प्रयोग करके सफलता हासिल की जाए। व्यक्ति शिक्षा का सदुपयोग कर न केवल अपना और अपने परिवार का, बल्कि पूरे देश का भला कर सकता है। ऐसे ही कई शिक्षकों पर आधारित है टीचर कनेक्शन ई-मैगजीन का मई अंक।
Sarvesh Tiwari 1 Jun 2023 5:57 AM GMT

ये अच्छी बात है, सरकार भी महसूस कर रही है कि शिक्षा के प्रसार से ज़्यादा ध्यान अब शिक्षा की गुणवत्ता पर दिया जाए। यानी स्कूलिंग की बजाय ज्ञान पर अधिक ज़ोर देना चाहिए। देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पहली प्राथमिकता होनी भी चाहिए।
देश के कई गाँवों में इस पर काम शुरू भी हो गया है। ऐसी कई रिपोर्ट देखने सुनने को मिल रही हैं जहाँ अकेले अपने दम पर सरकारी स्कूलों के टीचर नए-नए प्रयोगों से छात्रों को व्यावहारिक शिक्षा के साथ हुनरमंद भी बना रहे हैं।
देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले ने जब लड़कियों को शिक्षित करने के लिए क्रांतिकारी प्रयास किए तब उनका भी इसी पर जोर था। आज से डेढ़ सौ साल से भी पहले जब लड़कियों की शिक्षा अभिशाप मानी जाती थी उस दौरान उन्होंने पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल कर पूरे देश में एक नई पहल की शुरुआत की। गाँवों में जिसने स्कूल में कभी कदम नहीं रखा उसे भी साक्षर होने के साथ शिक्षित करने पर बल दिया।
असम के सोनितपुर में पिथाखोवा गाँव के एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल की कहानी भी कुछ ऐसी ही। मीनाक्षी गोस्वामी, ने मई 2017 में स्कूल की प्रिंसिपल बनते ही केवल लड़कों वाले स्कूल की 58 साल पुरानी परंपरा को तोड़ दिया। उन्होंने अपने चंद्रनाथ सरमा हायर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 6 से 10 के लिए लड़कियों का दाख़िला लेना शुरू कर दिया। इससे पहले इस स्कूल में दूसरे स्कूलों की लड़कियाँ सिर्फ 11वीं और12 वीं कक्षा में यहाँ दाख़िला ले सकती थीं। ख़ास बात ये है कि सभी बच्चों को आधुनिक पढ़ाई के साथ वो उनकी अपनी संस्कृति और परम्परा से हमेशा जुड़े रहने की सीख भी देती हैं।
The latest issue of the #TeacherConnection magazine by @GaonConnection
— Neelesh Misra (@neeleshmisra) May 31, 2023
Celebrating teachers every day.
Read online at https://t.co/ye72fkatuT
Share with a teacher!@GaonConnectionE @Gaon_Radio pic.twitter.com/1eHRArMVNS
ऐसे टीचर उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो बिना कुछ ख़ास किए व्यवस्था का रोना रोकर तय उम्र में रिटायर हो जाते हैं।
राजस्थान के फलोदी में मंडला खुर्द गाँव के टीचर हरदेव पालीवाल अपने दम पर बच्चों में पढ़ने की ललक जगा रहे हैं। झोला पुस्तकालय की उनकी तरकीब और पर्यावरण जागरूकता अभियान कमाल का है। हरदेव हर रोज़ स्कूल जाते वक़्त अपने झोले में किताबें लेकर निकलते हैं और स्कूल के बच्चों के साथ ही गाँव वालों को भी उसे पढ़ने के लिए देते हैं। उनके पास महापुरुषों के जीवन से जुड़ी 200 किताबें हैं जो पढ़ने वाले को हर हालात में बेहतर बनने की प्रेरणा देती हैं।
ऐसे ही अलीगढ़ के अतरौली में सरकारी स्कूल के टीचर संजीव शर्मा पढ़ाने की अपनी कला की वज़ह से दूसरे राज्यों के शिक्षकों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। वे बच्चों को प्राकृतिक रूप में पढ़ाने में यकीन रखते हैं। संख्या या आकृतियों का ज्ञान कराना है तो पेड़, पौधे, पत्तियाँ, पत्थर, कुर्सी, किताबें, कक्षा और व्यक्ति को सामने रख कर समझाते हैं। उच्च प्राथमिक विद्यालय राजमार्गपुर में हर रोज़ जब वे पहुँचते हैं तो सीखाने का सामान उनके साथ रहता है।
फूलों के बारे में पढ़ाना है तो बच्चों को बगल के सरसों के खेत लेकर चले जाते हैं और एक फूल को तोड़कर उसे दिखा कर बताते हैं। उनका मानना है कि अगर वे किताब से क्लास में बोर्ड पर पढ़ाते तो बच्चों को सीखने में मज़ा नहीं आता। हैरत की बात ये है कि बतौर विज्ञान टीचर उनके स्कूल से जुड़ते ही पढ़ाई छोड़ घर बैठे बच्चे भी अब रोज़ स्कूल आने लगे हैं।
शिक्षा तभी सार्थक होती है जब विपरीत परिस्थिति में भी उसका सही प्रयोग करके सफलता हासिल की जाए। व्यक्ति शिक्षा का सदुपयोग कर न केवल अपना और अपने परिवार का, बल्कि पूरे देश का भला कर सकता है।
(गाँव कनेक्शन की ख़ास मुहिम टीचर की ई-मैगज़ीन के मई अंक में ऐसे ही बहुत सारे शिक्षकों की प्रेरणादायक कहानियाँ हैं। इसे आप मुफ़्त में डाउनलोड कर सकते हैं।)
TeacherConnection
More Stories