58 साल बाद गाँव के स्कूल में बच्चियाँ भी आने लगीं

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मीनाक्षी गोस्वामी असम के एक गाँव में सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल हैं। बच्चों को उनकी संस्कृति से जोड़कर शिक्षित करने के उनके तरीके से, सोनितपुर ज़िले का उनका स्कूल अलग पहचान रखता है। लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है अपने छह दशक पुराने स्कूल के दरवाज़े छोटी बच्चियों के लिए भी खोलना।

Sayantani DebSayantani Deb   17 May 2023 4:51 AM GMT

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58 साल बाद गाँव के स्कूल में बच्चियाँ भी आने लगीं

इस से पहले दूसरे स्कूलों की लड़कियाँ सिर्फ 11वीं और 12वीं कक्षा में यहाँ दाख़िला ले सकती थीं। अब हर कक्षा में लगभग उतनी ही लड़कियाँ हैं, जितने लड़के हैं। उनमें से कई ऐसी हैं जो 15 किलोमीटर दूर से आती हैं।

गुवाहाटी, असम। गाँव में बात फैल गयी थी। छठी कक्षा से अब बच्चियों की भर्ती भी हो रही थी।

असम के पिथाखोवा गॉँव में रहने वाली हिया को सातवीं में पढ़ना था, लेकिन सबसे पास के चंद्रनाथ सरमा हायर सेकेंडरी स्कूल में सिर्फ़ लड़कों का प्रवेश होता था। लेकिन अब,उसने सुना था कोई नई प्रिन्सिपल आई थीं जिन्होंने आते ही इस दशकों पुराने नियम को बदल दिया था। अब सोनितपुर ज़िले के इस स्कूल में लड़कियों का भी स्वागत था। हिया ने अपने माता पिता से बात की और फ़ौरन स्कूल में अपना नाम लिखा लिया।

इस बदलाव की नायिका थीं 59 साल की मीनाक्षी गोस्वामी, जिन्होंने मई 2017 में स्कूल की प्रिंसिपल बनते ही केवल लड़कों वाले स्कूल की 58 साल पुरानी परम्परा को तोड़ दिया। गोस्वामी ने अपने स्कूल में कक्षा 6 से 10 के लिए लड़कियों का दाख़िला लेना शुरू कर दिया।

मीनाक्षी गोस्वामी को 5 सितंबर 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया।

इस से पहले दूसरे स्कूलों की लड़कियाँ सिर्फ 11वीं और 12वीं कक्षा में यहाँ दाख़िला ले सकती थीं। अब हर कक्षा में लगभग उतनी ही लड़कियाँ हैं, जितने लड़के हैं। उनमें से कई ऐसी हैं जो 15 किलोमीटर दूर से आती हैं।

"बचपन से मैंने सीएनएसएचएस स्कूल के बारे में सिर्फ अच्छी बातें सुनी थी,जिससे इस स्कूल में पढ़ने की मेरी बहुत इच्छा थी। मेरी इच्छा तब पूरी हुई जब पता चला इस स्कूल में अब कक्षा 6 से 10 तक की लड़कियों का एडमिशन भी हो रहा है। घर पर मैंने बात की और एडमिशन ले लिया, "हिया ने गाँव कनेक्शन को बताया।

वे कहती हैं, "पढ़ाई के अलावा इस स्कूल ने मुझे अपनी क्षमता को जानने और निखारने का मौका भी दिया।" हिया उन लड़कियों में से हैं जिन्होंने इस स्कूल के दरवाज़े बच्चियों के लिए भी खुलते ही यहाँ दाखिला ले लिया था।


इस स्कूल की विशेष बात जो दूसरे विद्यालयों से अलग करती है वो है यहाँ के छात्र। इस स्कूल के सभी छात्र अपने राज्य की संस्कृति और परंपराओं से जुड़े हुए हैं। असम का लोक नृत्य बिहू हो या बोडो का बगुरुंबा डांस,या फिर पारम्परिक वाद्य यंत्र ढोल, पेपा और गोगुना बजाने की बात हो, इन छात्रों को सब में महारथ हासिल है। यही नहीं छात्राओं ने तो आधुनिक शिक्षा के साथ पारम्परिक पकवान पिट्ठा तक बनाने के गुर भी सीख लिए हैं।

इन सभी हुनर को सिखाने का श्रेय जाता है प्रिंसिपल मीनाक्षी गोस्वामी को।

14 अप्रैल को गुवाहाटी के स्टेडियम में सबसे बड़ा बिहू नृत्य पेश कर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स बनाने वाले कलाकारों में इस स्कूल से भी 7 छात्र छात्राएँ थी। जिन्होंने राज्य के सबसे लोकप्रिय फसल उत्सव, बोहाग बिहू में खूब धमाल मचाया।

इस ऐतिहासिक समारोह में बतौर कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने वाली 16 साल की चयानिका देवी, गोस्वामी के विद्यालय की छात्रा हैं। वे कहती हैं,"वो क्षण कभी नहीं भूलने वाला था। वो ऐतिहासिक सम्मानजक मौका था। सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने नृत्य प्रस्तुत करुँगी।"

विद्यालय में मनाया गया प्राग भोगली उत्सव

14 साल के मोंजित नाथ उस समारोह में ड्रम बजाने वाली टीम का हिस्सा थे। "उस अनुभव को शब्दों में बयाँ करना बहुत मुश्किल है। तमाम अनुभवी ड्रम बजाने वाले कलाकारों के बीच मुझे अगर ये मौका मिला तो उसमें बड़ा हाथ मेरे स्कूल का है, "उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा।

स्कूल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के साथ साथ, गोस्वामी ने पिछले 34 वर्षों में इस बात का खास ध्यान रखा है कि उनके सभी छात्र अपनी संस्कृति और परंपरा से हमेशा जुड़े रहे।

"असम की जीवंत संस्कृति और परम्परा उसकी पहचान है। असामी, नेपाली और बँगाली लोगों के अलावा, राज्य में बड़ी संख्या में बोडो, तिवा, राभा, मिसिंग, कार्बी और दिमासा जनजातियों के घर भी हैं। मैं हमेशा इस बात पर जोर देती हूँ, बच्चे आधुनिक बदलावों के साथ अपने वास्तविक रूप को कभी नहीं भूलें। उन्हें याद रखना ज़रूरी है कि उनकी जड़ें कहाँ है, और उसका क्या महत्व है, "59 साल की गोस्वामी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

"स्कूल में अगर सकारात्मक बदलाव लाना है तो प्यार के साथ दृढ संकल्प का होना भी बहुत ज़रूरी है। पहले, 1989 में स्कूल कई मुश्किलों से गुज़र रहा था। साधन का आभाव तो था ही, स्कूल छोड़ कर घर बैठने वाले छात्रों की भी खासी संख्या थी। आज 850 से ज़्यादा छात्र छात्राएँ स्कूल में हैं। सभी गरीबी रेखा (बीपीएल) के नीचे वाले परिवारों से आते हैं, "स्कूल की प्रिंसिपल गोस्वामी कहती हैं।

समर कैंप के दौरान छात्रों के साथ बिहू डांस करती मीनाक्षी गोस्वामी

मुनींद्र कुमार नाथ, इस स्कूल में टीचर हैं। अपने बेटे को प्राइवेट स्कूल से निकाल कर गाँव के इस स्कूल में डालने से पहले उनके मन में कोई दुविधा या दो राय नहीं थी। उनका बेटा दसवीं कक्षा में है।

"मैं खुद को किस्मतवाला समझता हूँ कि मेरा बेटा उस स्कूल में पढ़ रहा है जहाँ मैंने भी कई साल पहले पढ़ाई की थी। मैं 1987 में यहॉँ से पढ़ कर निकला था। इंफ्रास्ट्रक्चर हो, शिक्षक-छात्र अनुपात हो या सफाई, यह स्कूल किसी प्राइवेट स्कूल से कम नहीं है, "उन्होंने कहा।

स्कूल के सभी टीचरों ने मिलकर एक छात्र कल्याण कोष बनाया है जिसमें हर शिक्षक हर महीने योगदान देता है। इस कोष का इस्तेमाल सांस्कृतिक कार्यक्रमों के समय छात्र छात्राओं के लिए स्वेटर, जूते, ड्रेस खरीदने में किया जाता है। लेकिन ज़्यादातर ये अच्छा प्रदर्शन करने वालों को,उच्च शिक्षा के लिए स्कूल की तरफ से मदद के तौर पर दिया जाता है।

मीनाक्षी गोस्वामी को शिक्षक दिवस पर साल 2022 में राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे कहती हैं,“मुझे अपने छात्रों से बहुत लगाव है, मेरे लिए वे ही सब कुछ हैं। यह उनका आशीर्वाद है जिसने मुझे वह बनाया है जो मैं आज हूँ, इसके लिए उन्हें आभार व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।"

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