इस टीचर की वजह से देश में हो रहा इनके स्कूल का नाम

चलिए आज मिलाते हैं महाराष्ट्र की शिक्षिका मृणाल नन्दकिशोर गांजाले से, जो अपने पढ़ाने के अनोखे तरीकों के लिए जानी जाती हैं, तभी तो शिक्षक दिवस पर इन्हें राष्ट्रीय शिक्षक दिवस से सम्मानित किया जा रहा है।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   2 Sep 2023 5:08 AM GMT

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इस टीचर की वजह से देश में हो रहा इनके स्कूल का नाम

चौथी कक्षा में पढ़ने वाले शिवराज घेवारी ने आजकल पेंसिल और कॉपी-किताब के साथ कम्प्यूटर से भी दोस्ती कर ली है और इसमें उनका साथ देती हैं उनकी शिक्षिका मृणाल नंदकिशोर गांजाले। जो यहाँ के बच्चों को टेक्नोलॉजी की मदद से बेहतर शिक्षा दे रही हैं।

दस साल के शिवराज महाराष्ट्र के पुणे ज़िले की आंबेगाँव तालुका में पिंपळगाव तर्फे महाळुंगे गाँव के ज़िला परिषद प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं। शिवराज गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मुझे मैम के साथ पढ़ाई करना अच्छा लगता है, वो तो हमें कम्प्यूटर के ज़रिए भी पढ़ाती हैं। मैं घर जाकर सबसे बताता हूँ कि मैम ने आज मुझे क्या पढ़ाया है।"

चलिए अब मिलते हैं मृणाल नन्दकिशोर गांजाले से जिनके पढ़ाने के अनोखे तरीकों को लेकर पुणे ही नहीं पूरे महाराष्ट्र में तारीफ हो रही है। पाँच सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर इन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित करेंगी।


मृणाल बच्चों को तकनीक के जरिए पढ़ाती हैं, वो गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "मेरा हमेशा से टेक्नोलॉजी से जुड़ाव रहा है, मैंने साल 2010 से ही फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया माध्यम पर आकर उन्हें जानना चाहती थी, इसलिए जब मैं टीचर बनी तो मुझे लगा कि आईसीटी के ज़रिए मुझे पढ़ाना चाहिए। इसके लिए मुझे राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया गया है।"

मृणाल, फेसबुक, ट्वीटर, लिंक्डइन के अलावा ऑनलाइन कोर्स से भी नई-नई चीजें सीखती रहती हैं। उन्होंने अपने स्कूल की वेबसाइट भी डिजाइन की है।"

वो आगे बताती हैं, "एनसीआरटी डायट के अंडर हमारी ट्रेनिंग होती थी, इसमें एक टीचर दूसरे टीचर का काम देख कर सीख सकते हैं और अपने स्कूल में अप्लाई कर सकते हैं, तो ऐसी चीज़ों से मुझे बहुत फायदा हुआ है, और ऐसा ही तंत्र अभियान के माध्यम से मैंने सोशल मीडिया के तहत बहुत से पोस्ट डालें।"


मृणाल ने एक लिंक क्रिएट किया है, जिसमें बच्चों के लिए कोई कविता पोस्ट कर देती हैं, जैसे ही बच्चे लिंक पर क्लिक करते हैं, उन्हें टीचर की कविता मिल जाती है और बच्चे भी उसपर अपना वीडियो अपलोड कर सकते हैं। ये लिंक पूरी तरह से सुरक्षित होता है, बच्चे, उनके अभिभावक और टीचर ही वीडियो देख सकते हैं।

"जब बच्चे एक टीम में होते हैं, तो एक दूसरे का देखकर और बेहतर करने की कोशिश करते हैं। कोरोना महामारी के दौरान कुछ बच्चे ऐसे होते थे, जो तुरंत वीडियो अप्लाई करके रिप्लाई कर देते थे। तो अगर उनमें 10 बच्चों ने भी वीडियो अपलोड कर दिया है, तो जब 11वाँ बच्चा वीडियो देख कर कुछ और बेहतर करने की कोशिश करता, "मृणाल ने आगे कहा।

ऐसा नहीं है कि मृणाल शुरू से ही टीचर बनना चाहती थी, पढ़ाई के दौरान वो एथलीट में अच्छी थी, राज्य ही नहीं वो नेशनल तक दौड़ने गईं थीं। मृणाल कहती हैं, "मेरी माँ को टीचर बनना था, किसी कारण उनका सपना पूरा नहीं हो पाया था इसलिए वे चाहती थीं, मैं टीचर बनूँ इसलिए मैंने आगे की पढ़ाई उसी हिसाब से की। मेरा मानना हैं कहीं भी रहो वहाँ कुछ नया करो।"


मृणाल को इससे पहले आईसीटी अवार्ड के साथ महाराष्ट्र राज्य शिक्षक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। मृणाल साल की पहली नियुक्ति 2019 में हुई, उनका स्कूल आदिवासी क्षेत्र में था। मृणाल बताती हैं, "मेरी पहली पोस्टिंग जेड पी स्कूल पालघर के ट्राइबल एरिया में हुई थी, जहाँ पर बच्चों को स्कूल तक लाना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन फिर बच्चे आने लगे थे।"

वो आगे कहती हैं, "इसके बाद मेरा ट्रांसफर ठाकुरवाडी गाँव के जेडपी स्कूल में हो गया, वो गाँव से दूर पहाड़ पर बना स्कूल था, जहाँ मुश्किल से नेटवर्क आता था। लेकिन वहाँ पर भी कुछ न कुछ करती रहती थी।"

दूसरे स्कूल के बच्चों की तरह ही मृणाल के स्कूल के बच्चों के मन भी कई तरह के सवाल होते हैं। जैसे कि मैथ्स क्यों पढ़ रहे हैं, हिस्ट्री क्यों पढ़ रहें, ये उनके कहाँ काम आएगी। मृणाल कहती हैं, "बच्चे तब तक नहीं समझना चाहते हैं, जब तक उन्हें सब्जेक्ट में इंटरेस्ट नहीं आता।" वो आगे बताती हैं, "जब मैं स्कूल में थी तब मैं भी सोचती थी सर ने हमें क्यों पढ़ाया। जब हम बड़े होते है फिर धीरे-धीरे हमें समझ आता है। मैं नहीं चाहती कि बच्चों के मन में भी कोई सवाल रह जाएँ।"

पिंपळगाव तर्फे महाळुंगे गाँव के ज़िला परिषद प्राथमिक विद्यालय के कई बच्चों का सेलेक्शन नवोदय विद्यालय में हो गया है।

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