कूड़ा बीनने वाले परिवारों के बच्चों का खास स्कूल, जहां एडमिशन के लिए ली जाती है सिर्फ एक रुपए फीस

आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को न केवल मुफ्त शिक्षा मिल रही है, बल्कि उन्हें फेंके गए बेकार सामान से कई उपयोगी उत्पाद भी बनाना सीखाते हैं और सब्जियों के छिलकों से खाद बनाते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है।

Manish DubeyManish Dubey   12 April 2023 8:39 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

जूही परमपुरवा (कानपुर), उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के जूही परमपुरवा गाँव के एक छोटे से स्कूल में, धर्मेंद्र कुमार सिंह 252 बच्चों के साथ सम्राट अशोक विद्या उद्यान नाम से स्कूल चलाते हैं। स्कूल का क्षेत्रफल 325 वर्ग गज से ज्यादा नहीं है। स्कूल की बिल्डिंग 2012 में बनी, जबकि इससे पहले बच्चे टीन की छत के नीचे पढ़ते थे।

“252 बच्चे जो यहां पढ़ते हैं, उनमें से 117 कोई फीस नहीं दे सकते। हम उनसे एक रुपया भी नहीं लेते हैं। बाकी छात्र एडमिशन फीस के रूप में एक रुपये और महीने में 100 रुपए फीस देते हैं, " धर्मेंद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया।

फीस नहीं देने वाले अधिकांश बच्चों के पिता नहीं हैं और वे अभिभावकों की देखभाल में हैं जो उनकी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं दे सकते या देना नहीं चाहते हैं। धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि यही कारण है कि उनसे कोई फीस नहीं ली जाती है।


“ये वे बच्चे हैं जो उन घरों से आते हैं जहाँ कूड़ा बीनना परिवारों के लिए कमाई का जरिया है। कई ऐसे बच्चे हैं, जिनके पिता उन्हें छोड़कर चले गए हैं और माँ के साथ रह रहे हैं, "सिंह ने आगे कहा।

स्कूल में ग्यारह टीचर (दो पुरुष और सात महिलाएं) हैं जिनमें किंडरगार्टन से कक्षा आठ तक की क्लास हैं।

मूल रूप से कानपुर जिले के जौनपुर के रहने वाले सिंह साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट हैं और मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएट हैं। 46 वर्षीय शिक्षक लोहे का संदूक नामे लघु कथाओं के संकलन की लेखक भी हैं।

"विद्यालय लाभ का केंद्र नहीं है। हमारे शुभचिंतक हैं जो इन बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के हमारे प्रयासों में शामिल हुए हैं और स्कूल उनके योगदान पर चलता है, ”सिंह ने समझाया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग किताबें दान करते हैं, कुछ लोग बच्चों की फीस देते हें, जबकि कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बच्चों की फीस का इंतजाम करते हैं।"

सीखने के साथ कमाई भी

स्कूल में बच्चे बेकार सामग्री से कई उपयोगी सामान, सब्जियों के छिलकों से खाद तैयार करते हैं, जिन्हें बेचकर कुछ कमाई हो जाती हैै। “हमने क्षेत्र की कुछ महिलाओं को भी शामिल किया है, जो घर पर खिलौने वगैरह बनाती हैं और हमें देती हैं। हम उन्हें बेचते हैं और उन्हें कुछ पैसे देते हैं, "सिंह ने कहा।

जल्द ही एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) जैसे बड़े संगठनों ने स्कूल द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों को लेना शुरू कर दिया है। बच्चे स्टफ्ड खिलौने, चाभी के छल्ले आदि बनाते हैं, जो उन्हें एक अतिरिक्त प्रोत्साहन भी देता है।



2010-2011 में सिंह ने कूड़ा बीनने वालों के बच्चों के लिए एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया, जिसने बहुत से लोगों का ध्यान खींचा। 2007 और 2009 के बीच उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) आर विक्रम अभियान से प्रभावित हुए और उन्होंने संपर्क किया।

उन्होंने ग्यारह सरकारी स्कूलों का काम हमें सौंपा। शिक्षकों को स्कूलों के लिए डेटा इकट्ठा करना और मिलान करना था, और इससे हमें कुछ पैसे मिले, ”सिंह ने कहा। सम्राट अशोक विद्या उद्यान के कुछ छात्रों को इनमें से कुछ सरकारी स्कूलों में प्रवेश मिला, जिसके बारे में उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा।


इस काम से कुछ आमदनी हुई और आज के बच्चों के पढ़ने वाले पक्के स्कूल का निर्माण 2012 में सहवेश (सम्राट अशोक मानव कल्याण शिक्षा संस्थान) की मदद से अप्रैल 2004 में एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में शुरू हुआ। पहले बच्चे बाहर पढ़ते थे।

शिक्षक ने गर्व के साथ कहा कि सम्राट अशोक विद्या उद्यान भी एक तरह का अध्ययन केंद्र बन गया है जहां टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, हैदराबाद और कानपुर विश्वविद्यालय के छात्र यहां शोध करने आते हैं। राज्य के राज्यपाल ने पिछले साल भी धर्मेंद्र सिंह को उनके द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित किया था।

TeacherConnection #kanpur #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.