गाँव के युवाओं ने थामी आदिवासी लड़कियों को शिक्षित करने की बागडोर

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले के पाँच गाँवों में आदिवासी लड़कियों को पढ़ाने के लिए स्पेशल क्लास चलती है। यहाँ पर कॉलेज के स्टूडेंट्स टीचर होते हैं और इसे जमशेदपुर स्थित गैर-लाभकारी संस्था युवा (यूथ यूनिटी फॉर वॉलंटरी एक्शन) ने शुरू किया है ।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   19 May 2023 8:43 AM GMT

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गाँव के युवाओं ने थामी आदिवासी लड़कियों को शिक्षित करने की बागडोर

पोटका (पूर्वी सिंहभूम), झारखंड। झारखंड के आदिवासी बहुल पूर्वी सिंहभूम ज़िले के गाँवों में रहने वाली लड़कियों के लिए ये किसी सपने के पूरा होने जैसा था, जब उन्हें आगे बढ़ाने के लिए जमशेदपुर स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन, युवा (यूथ यूनिटी फॉर वॉलंटरी एक्शन) ने पोटका ब्लॉक के चकरी, तंगरेन, सिधीरसाई, शिलिंग और जोजोडीह के गाँवों में ट्यूटोरियल क्लास शुरू की। इस पहल से यहाँ की लड़कियों को आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है, ताकि वो पढ़ाई में पीछे न रह जाएँ ।

इस साल जनवरी में शुरू किए गए, पीर ट्यूटोरियल शैक्षणिक अभियान का ग्रामीण पूर्वी सिंहभूम पर असर भी पड़ा है।

“लड़कियों को बेहतर शिक्षा देने के लिए पाँच गाँवों में क्लासेज चल रहीं हैं। छह से 18 साल की उम्र की लड़कियाँ हफ्ते में पाँच दिन हिंदी, अंग्रेजी और गणित की कक्षाओं में शामिल लेती हैं।" पीर ट्यूटोरियल के प्रमुख अरूप कुमार मंडल ने गाँव कनेक्शन को बताया।

"हम उन छात्राओं की मदद करते हैं, जिनकी पढ़ाई नहीं हो पायी है या कोविड महामारी के दौरान मोबाइल नहीं होने की वज़ह से पीछे रह गईं हैं। "उन्होंने आगे समझाया।


इन गाँवों में लड़कियों की पढ़ाई पर कम ध्यान दिया जाता है। यहाँ के लोगों को मानना है कि लड़कियों की शादी हो जाएगी तो पढ़ाई उनके किसी काम नहीं रहेगी। इसी वजह से अभिभावक अपनी लड़कियों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं।

चकरी की ममता सरदार उन युवा लड़कियों में से एक थीं, जिन्होंने चार साल पहले स्कूल छोड़ दिया था। चकरी के उत्क्रमित मध्य विद्यालय में एडमिशन लेने की कोशिश कर रही 14 साल की ममता ने गाँव कनेक्शन को बताया, "माता-पिता का मानना है कि लड़कियों को शादी करनी चाहिए और गृहिणी बनना चाहिए और बस प्राथमिक शिक्षा बेटियों के लिए पर्याप्त है।"

“महामारी के दौरान, हममें से कई लोगों को ऑनलाइन क्लास में शामिल लेने के लिए मोबाइल फोन नहीं मिले, जबकि लड़कों को मिले। इससे हम पिछे रह गए और स्कूल खुलने के बाद हम आगे नहीं बढ़ सके।" चकरी की निकिता सरदार, जो 2021 में कोविड महामारी के बाद कक्षा आठ से बाहर हो गई थीं, ने गाँव कनेक्शन को बताया। वह अब पीयर ट्यूटोरियल की क्लास में शामिल होती हैं। ये कक्षाएँ छात्राओं के लिए मुफ़्त आयोजित की जाती हैं।


“युवा द्वारा पीयर ट्यूटोरियल शैक्षणिक अभियान में 10 कॉलेज छात्र हैं, दोनों लड़के और लड़कियाँ, ट्यूटर के रूप में कार्य कर रहे हैं। युवा ने उन्हें उन्हीं गाँवों से काम पर रखा है जहाँ वे पढ़ाएंगे ताकि लड़कियों को अधिक सहज बनाया जा सके क्योंकि वे पहले से ही अपने ट्यूटर्स से परिचित हैं। इन कक्षाओं से करीब 236 लड़कियों को फायदा हो रहा है।" अरुप ने कहा।

उनके मुताबिक, पाँच ट्यूटोरियल केंद्रों में से सभी में करीब 50 छात्राओं का दाखिला है और 20 से अधिक अब नियमित रूप से अपने स्कूलों में जा रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हर ट्यूटर को महीने में 6,000 रुपये दिए जाते हैं। कक्षा का समय दोपहर 1 बजे से 3 बजे तक है, और ये या तो गाँव के सामुदायिक केंद्रों या सरकारी स्कूलों में आयोजित की जाती हैं।

बढ़ रहा है आत्मविश्वास

ट्यूटर्स का कहना है कि ट्यूटोरियल कक्षाओं का असर पड़ रहा है और लड़कियों के आत्मविश्वास में भी सुधार देखा जा रहा है।

"इन ट्यूटोरियल्स को शुरू करने के बाद, मेरा गणित में ज़्यादा मन लगता है, अब तो मैं हर दिन गणित ही पढ़ती हूँ, "तंगरेन गाँव की संध्या कर्मकर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

19 साल की ट्यूटर अंजलि पात्रा के मुताबिक, लड़कियाँ अक्सर पढ़ाई में हालात के कारण कमजोर होती हैं। उन्होंने कहा," जो लड़कियाँ तीन से चार साल पहले पढ़ाई छोड़ चुकी थीं, वे फिर से पढ़ाई शुरू करने की इच्छुक हैं, अब उनके पास एक मौका है।"


लड़कियों के स्कूल छोड़ने के कई कारण हैं। इस अभियान से जुड़े 21 साल के अमरजीत खंडवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ज़्यादातर समय वे खेती के कामों में अपने परिवार की मदद करती हैं, ख़ासकर बुवाई और कटाई के दौरान, इसलिए वे स्कूल नहीं जा पाती हैं।"

“इसके अलावा, नजदीकी कॉलेज इन गाँवों से 15 किलोमीटर दूर है और यहाँ आने जाने के लिए परिवहन की सुविधा भी नहीं है। क्योंकि आगे की पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं है तो गाँव के लोगों को लगता है कि लड़कियों को स्कूल भेजने का कोई मतलब नहीं।" खंडवाल ने आगे कहा।

कई बार अंग्रेजी और गणित का डर ही लड़कियों को दूर रखता है। उदाहरण के लिए, तंगरेन उत्क्रमित मध्य विद्यालय की पूजा कुमारी और संध्या कर्मकर अंग्रेजी और गणित से डरती थीं और स्कूल जाने से बचती थीं। लेकिन, पीयर ट्यूटोरियल कक्षाओं में शामिल होने के बाद उनमें नियमित रूप से स्कूल जाने का आत्मविश्वास आया है।

अभिभावकों का भी मिला साथ

चकरी के निवासी सुरेन सरदार गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "गाँव के लोग जो अपनी बेटियों को ट्यूटोरियल कक्षाओं में भेजने से हिचकते थे, शिक्षकों ने उन्हें भेजने के लिए राजी किया। ट्यूटर्स ने उन्हें भरोसा दिलाया कि लड़कियाँ भी उन्हें उतना ही गौरवान्वित कर सकती हैं जितना उनके बेटे कर सकते हैं।"

तंगरेन के एक सामाजिक कार्यकर्ता उज्ज्वल कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "स्कूल छोड़ना एक बड़ी समस्या है, ख़ासकर गाँवों में लड़कियों के लिए और यह उनके बेहतर भविष्य में बाधक है। लेकिन, पीयर ट्यूटोरियल का अभियान एक बदलाव ला रहा है।


"ट्यूटर्स विषयों में छात्रों की समस्याओं पर ख़ास ध्यान देते हैं। वे उन कारणों के बारे में समझते हैँ, जिनकी वजह से लड़कियाँ पढ़ाई से पीछे हट जाती हैं," युवा के सचिव बरनाली चक्रवर्ती ने कहा।

चकरी में पढ़ाने वाली शिक्षिका रीना सरदार के अनुसार, ड्रॉप आउट पाँच लड़कियाँ स्थानीय सरकारी स्कूलों में एडमिशन कराने की तैयारी कर रहीं हैं। रीना ने कहा, "युवा, ग्रामीणों और पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों ने इन लड़कियों को अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम बनाने के लिए हाथ मिलाया है।"

शिक्षक गाँव वालों के साथ नियमित बैठक करते हैं और उन्हें लड़कियों की शिक्षा का समर्थन करने के लिए प्रेरित करते हैं। हेड ट्यूटर अरूप ने कहा,"उन्होंने अपनी लड़कियों को शिक्षित करने के महत्व को महसूस करना शुरू कर दिया है और उन्हें नियमित रूप से स्कूल भेज रहे हैं।"

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