नक्सल इलाके में एक शिक्षक ने कैसे किया स्कूल का कायापलट?

प्रेमवीर सिंह घर-घर गए और उन्होंने माता-पिता से अपने बच्चों को खोराडीह गाँव के सरकारी स्कूल में भेजने को कहा। धीरे-धीरे उन्होंने और स्कूल के साथी शिक्षकों ने माता-पिता के भरोसे को जीत लिया और स्‍कूल में बच्चों के दाखिले बढ़ने लगे। स्कूल में अब 315 छात्र -छात्राएं हैं, जिनमें 25 फीसदी आदिवासी बच्चे हैं।

Brijendra DubeyBrijendra Dubey   29 April 2023 10:45 AM GMT

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खोराडीह (मिर्जापुर), उत्तर प्रदेश। साल 2015 में जब प्रेमवीर सिंह मिर्जापुर जिले के राजगढ़ ब्लॉक के खोराडीह में एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए तो, रिश्तेदारों और जानने वाले लोगों ने वहां जाने से मना किया। क्योंकि स्कूल नक्सली क्षेत्र के एक गाँव में था।

"मैं देखते ही जान गया था कि स्कूल अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है। कुल मिलाकर स्कूल में शायद 200 छात्र नामांकित थे जिनमें से अधिकांश ने कभी आने की जहमत नहीं उठाई, "33 वर्षीय प्रेमवीर सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बच्चों को कक्षाओं में वापस लाना एक कठिन काम था। वे याद करते हुए कहते हैं। “हम घर-घर गए औी हमने माता-पिता से अपने बच्चों का नामांकन करने के लिए भीख मांगी। हमने उनसे कहा कि वे कम से कम उन्हें एक साल के लिए वहां पढ़ने की अनुमति दें। धीरे-धीरे हमने माता-पिता के साथ भरोसे का पुल बनाया और दाखिले बढ़ने लगे, ”उन्होंने कहा।


आज स्कूल एक समग्र स्कूल है जिसमें एक से आठ तक की कक्षाएं हैं। यह अपनी दयनीय अवस्था से कोसों दूर है। स्‍कूल अब वैसा नहीं रहा जैसा प्रेमवीर सिंह ने पहली बार देखा था। स्कूल में 315 बच्चे नामांकित हैं और उनमें से 25 प्रतिशत आदिवासी समुदायों के बच्चे हैं।

विश्वास के पुलों के निर्माण में समुदाय के साथ मिलकर काम करना महत्वपूर्ण कारक था। “अब हमारे पास हर महीने के पहले बुधवार को माता-पिता शिक्षक बैठक होती है और इसने माता-पिता को स्कूल और बच्चों की शिक्षा में लगा रखा है। हम बच्चों को स्कूल में होने वाली किसी भी समस्या पर चर्चा करते हैं और उसका समाधान ढूंढते हैं, ”प्रेमवीर ने कहा।

गाँव में नक्सली गतिविधियों के कारण माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में हालात बिगड़े थे।

वर्ष 2001 में एक हमले ने पूरे गाँव को सदमें डाल दिया था। स्‍कूल जाना तो बच्चों के लिए बहुत दूर की बात थी। वर्ष 2001 में लगभग 40-50 नक्सलियों ने गाँव में एक पुलिस शिविर पर हमला किया। वे राइफल, बंदूक, गोलियां लूट ली थी, उसमें तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए।

प्रेमवीर ने कहा कि गरीबी कम उपस्थिति और नामांकन का एक अन्य कारण था। "कई माता-पिता खुद शिक्षित नहीं होते हैं और उन्हें अच्छी शिक्षा के महत्व के बारे में पता नहीं होता है। इसके अलावा फसल के समय में उन्हें खेतों में अपने बच्चों की मदद की ज़रूरत होती है और इसलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजते, ”उन्होंने समझाया।


लेकिन वह सब बदल रहा है। "माता-पिता के अधिक अग्रसर होने के कारण अब बच्‍चे स्‍कूल की ओर रुख कर रहे हैं। हमारे स्कूल में किसानों और दिहाड़ी मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं। और हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जब वे दुनिया में जाएं तो उनके पास एक अच्छी शुरुआत हो और माता-पिता अब इसे समझ सकें, ”प्रेमवीर ने कहा।

“जिलाधिकारी ने भी हमारे स्कूल को एक अच्छे शिक्षण संस्थान के रूप में स्वीकार किया है। एक अच्छे स्कूल को परिभाषित करने वाले 19 पैरामीटर हैं और हम उन सभी को पूरा करते हैं। इसमें स्वच्छ पेयजल, शौचालय, डिजिटल क्लासरूम, एक डाइनिंग हॉल, एक खेल का मैदान आदि शामिल हैं। स्कूल के शिक्षक अशोक पटेल गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "2015 के मुकाबले स्कूल की बनावट में काफी बदलाव आया है।" उन्होंने प्रेमवीर सिंह के कुछ महीने बाद स्कूल जॉइन किया था।

"स्कूल का छवि जो पहले धूमिल हो चुकी थी, उसकी चमक वापस लौट रही है। कोटा पत्थर के फर्श, सजे-धजे बगीचे, खेल के मैदान, बेंच आदि ने स्कूल का कायापलट कर दिया है। पटेल ने कहा कि स्कूल सरकारी स्कूल की सभी पूर्वकल्पित धारणाओं के खिलाफ है।

“लोग सोचते हैं कि सरकारी स्कूल में उचित शिक्षा नहीं दी जाती है या उनके बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं है। लेकिन हमारा स्कूल उन सभी धारणाओं के विपरीत चला गया है, ”उन्होंने गर्व से कहा।


उन्होंने कहा कि स्कूल ने छात्रों के माता-पिता को अपने विश्वास में लेने के लिए काफी मेहनत की है, उन्हें अपने बच्चों के लिए सर्वोत्तम संभव शिक्षा का आश्वासन दिया है और स्कूल में क्या हो रहा है, इसके बारे में उन्हें अवगत कराया है। पटेल ने कहा, "हम हर तरह से अत्याधुनिक आधुनिक स्कूल हैं।"

“हम गाँव के माता-पिता को लगातार प्रोत्साहित करते हैं कि वे अपने बच्चों को निजी संस्थान के बजाय इस स्कूल में भेजें। उनमें से कुछ को यह विश्वास करना कठिन लगता है कि हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन अब वे जानते हैं। हमारी उपस्थिति 65 प्रतिशत है, ”प्रेमवीर ने कहा।

स्कूल के शिक्षक भी नवोदय विद्यालय में प्रवेश पाने के लिए छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए अलग से समय रखते हैं। “पहले साल में मैंने पांच छात्रों को एक ब्लॉक स्तरीय विज्ञान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रशिक्षित किया और उनमें से एक ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। वही बच्चा आज नीट परीक्षा की तैयारी कर रहा है। जब वे अच्छा करते हैं, तो यह हमारे लिए सबसे अच्छी गुरु दक्षिणा है, ”प्रेमवीर ने कहा।

इस बीच कक्षा 6 की छात्रा तृप्ति त्रिपाठी एक प्रतियोगिता की तैयारी कर रही हैं। “हमारे शिक्षक हमें अधिक से अधिक पढ़ाई-लिखाई की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हम अपनी कक्षाओं का आनंद लेते हैं और यहां समान रूप से खेलते हैं," उन्‍होंने गांव कनेक्शन को बताया। छात्रा का पसंदीदा वर्ग शिक्षक अशोक सिंह की अंग्रेजी क्लास है। “उन्‍होंने हमें डोंट गिव अप नामक एक कविता सिखाई। मैं इसे आपके लिए सुनाऊंगी, ”छात्रा ने कहा।

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