बाढ़ आपदा : 'यहां हमें सरकार की कोई मदद नहीं मिलती, बस परमात्मा का ही सहारा है'

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले के बाढ़ से प्रभावित इन गांवों में जब गाँव कनेक्शन की टीम पहुंची तो कई जगह सड़कें पानी में डूबी हुईं थीं और सड़क के दोनों ओर बने ग्रामीणों के घर भी।

Kushal MishraKushal Mishra   15 July 2020 11:26 AM GMT

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कुशल मिश्र / वीरेन्द्र सिंह

बाढ़ से प्रभावित उन गांवों में पहुँचने से काफी दूर पहले से ही बंधे पर रंग-बिरंगे कई टेंट नजर आने लगते हैं। बंधे के दोनों ओर इन टेंट की एक लम्बी पंक्ति नजर आती है जहाँ इन दिनों वो ग्रामीण रह रहे हैं जिनके घर सरयू नदी में बाढ़ आने के कारण पानी में डूब चुके हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले के बाढ़ से प्रभावित इन गांवों में जब गाँव कनेक्शन की टीम पहुंची तो कई जगह सड़कें पानी में डूबी हुईं थीं और सड़क के दोनों ओर बने ग्रामीणों के घर भी।

आगे बढ़ने पर इन गांवों की सड़कें पानी से लबालब नजर आईं। सड़क पर घुटनों तक पानी था और हाथों में कैमरा लिए आगे बढ़ते हुए हमारी टीम को ग्रामीण अपने घरों के दरवाजों और खिड़कियों से जैसे बड़ी उम्मीद से देख रहे थे।

रामनगर तहसील के बिल्हारी गाँव से कंचनापुर गाँव की ओर जाने वाली इस सड़क पर परमानंद अपने घर के बाहर तख्त पर बैठे दिखे। बरामदे में घुटनों तक पानी था और उनकी तख्त के पाए पानी में आधे डूबे चुके थे।

बाराबंकी के रामनगर तहसील के बिल्हारी गाँव से कंचनापुर गाँव की ओर जाने वाली इस सड़क पर बाढ़ के पानी में डूबा हुआ परमानंद का घर। फोटो : कुशल मिश्र

गाँव कनेक्शन की टीम जब उनसे बातचीत के लिए पहुंची तो बाढ़ से उनका दर्द बरबस ही झलक पड़ा। पचपन वर्षीय परमानंद गाँव के उन लोगों में से थे जो गाँव में सालों से बाढ़ का प्रकोप झेलते आ रहे हैं और घर में पानी भरने के बावजूद वो अपने परिवार के साथ अभी भी गाँव में रह रहे थे।

परमानंद 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "जब 1983 में हमारा गाँव नदी में कट गया तो हम गाँव में ही दूसरी जगह चले गए, फिर बानबे में ये गाँव भी डूबा तो फिर दूसरी जगह चले गए, साल 2003 में यहाँ बनाया, सत्रह साल हो गए बिल्हारी गाँव में रहते हुए, पूरा जीवन बाढ़ में कट गया।"

घर से पीछे की ओर देखने पर बने खेतों में दूर तक सिर्फ पानी ही पानी नजर आता है। यहाँ किसानों की धान और मेंथा की फसलें डूब गयी हैं, हजारों एकड़ फसलें बर्बाद हो चुकी हैं।

परमानंद कहते हैं, "यहाँ खेती-पाती अपनी है, गेहूं होता है, धान जो लगाया था, सब चला गया। अब जो लोग खेती किये हैं उनमें एक-एक आदमी का कम से कम 50-50 हज़ार रुपए का नुकसान हुआ होगा।"

"अभी तो चारों तरफ से नुकसान हुआ, कोरोना से खेती का नुकसान हुआ, किसानों को पैसा नहीं मिला, फिर जो खेत में लगाया था तो बाढ़ में बह गया, मुआवजा कोई किसानों को मिलता नहीं, ज्यादा से ज्यादा लोगों को डिब्बा (राहत सामग्री) मिलता है। जो अधिकारी आते भी हैं तो बंधे से लौट जाते हैं। यहाँ सरकार की कोई मदद नहीं मिलती, बस परमात्मा का ही सहारा है," परमानंद कहते हैं।

सूरतगंज ब्लॉक की रामनगर तहसील में पड़ने वाले इस क्षेत्र में करीब 80 गाँव आते हैं। परमानंद के मुताबिक अब तक इनमें 25 से ज्यादा गांवों में सरयू नदी (पूर्व में घाघरा) का पानी भर चुका है। इन गांवों के कई परिवार बंधे में रहकर गुजर-बसर कर रहे हैं।

गांवों में हर ओर फैला नजर आता है बाढ़ का पानी। फोटो : अभिषेक वर्मा

सिर्फ रामनगर ही नहीं, सिरौलीगौसपुर और रामसनेहीघाट तहसील के गांवों को मिलाकर बाराबंकी जिले में करीब 50 गाँव अब तक बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं।

कंचनापुर गाँव पहुँचने पर दूर तक किसानों के खेत पानी में डूबे नजर आते हैं। यहाँ सड़क किनारे बाढ़ के पानी से इतर अपने घर के बाहर कुर्सी में बैठे मिले अनिल बताते हैं, "अगर हेतमापुर का पुल बन जाए तो काफी कुछ सही हो जाए, गांवों में आवागमन भी सही होगा और नदी का कटना भी बंद हो जाएगा, मगर अधिकारी लोग एक बार गाँव में देखने भी नहीं आते हैं।"

हेतमापुर में पुल बनाने की मांग ग्रामीण सालों से करते आ रहे हैं मगर अब तक पुल निर्माण को लेकर कोई काम शुरू नहीं हो सका है। ग्रामीण मानते हैं कि बहराइच और बाराबंकी को जोड़ने वाला यह पुल अगर बन जाए तो न सिर्फ गांवों से आवागमन सही होगा बल्कि बाढ़ से भी गांवों को कुछ राहत मिल सकेगी।

हेतमापुर के नजदीक बसे मदरहा गाँव में भी किसानों के खेत के खेत बाढ़ में बर्बाद हो गए हैं। जिन किसानों ने धान लगाया था उनके खेत तो डूब गए हैं, नर्सरी भी नहीं बच सकी है।

हाथ में धान की नर्सरी पकड़े मदरहा गाँव के सुरेश अवस्थी बताते हैं, "मेरे धान के खेत तो बाढ़ में डूब ही गए जो नर्सरी लगी हुई थी वो भी नहीं बची है, इसलिए मैं बंधे पार के उस गाँव से किसानों के यहाँ से धान की नर्सरी लेकर आया ताकि कम से कम नर्सरी ही बच जाए।"

बंधे से सटे कोढरी गाँव में हालात और भी ज्यादा गंभीर नजर आते हैं। चारों ओर से पानी से घिरे गाँव में जाने के लिए अब सिर्फ नाव ही सहारा है। इस गाँव से करीब 40 परिवार बंधे पर पहुंचाए गए हैं जबकि कुछ परिवार अभी भी गाँव में हैं।

गाँव में घर से सामान लेकर सुरक्षित जगह जाता एक बाढ़ पीड़ित। फोटो : कुशल मिश्र

नाव से इस गाँव में पहुंची गाँव कनेक्शन की टीम को कई घर खाली नजर आये तो कुछ अभी भी वहां फँसे हुए थे। इनमें से एक घर अनुज का भी था जहाँ अनुज घर के बाहर बाढ़ के पानी में आधे डूबे नजर आये।

अब तक बाँध पर न जाने के सवाल पर अनुज बताते हैं, "आने-जाने के लिए गाँव में सिर्फ एक ही नाव है, दूसरी नाव भी नहीं है। पूरे घर में पानी भरा है, बच्चों को तो ठीक है, लेकिन घर के बड़े लोग लेटरीन के लिए भी जाएँ, तो कहाँ जाएँ। खाने-पीने और जानवरों के चारे की दिक्कत अलग।"

गुस्से में अनुज कहते हैं, "सरकार अगर हम लोगों को बंधे के पार रहने को देती तो क्यों दिक्कत होती गाँव के लोगों को। मगर अधिकारी गाँव में हाल देखने तक नहीं आते हैं।"

कोढरी गाँव से ही बंधे पर रहने के लिए आईं श्रीदेवी टेंट में गाँव की और महिलाओं के साथ बैठीं मिलीं। श्रीदेवी सरकार से खासा नाराज आती हैं और बाढ़ पीड़ितों की कोई मदद न मिलने की बात कहती हैं।

सरकारी मदद मिलने के सवाल पर वह कहती हैं, "क्या मदद, जो राशन-पानी मिलता है वो 10 दिन चलता है, लोगों के खेत के खेत डूब गए, अब जब तक बाढ़ है तब तक झेलना है।"

बंधे पर बाढ़ पीड़ितों के लिए बनाये गए टेंट की एक लम्बी पंक्ति नजर आती है। फोटो : कुशल मिश्र

श्रीदेवी कहती हैं, "हम तो जन्म से बाढ़ झेल रहे हैं, साल के तीन महीना बंधे पर गुजारते हैं, तब तक यहीं खाना-पीना, जब से बंधा बन गया है तो गाँव में ज्यादा पानी भरता है, पहले इतना नहीं था।"

इसी बंधे पर सुधीर कुमार भी अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। सुधीर बताते हैं, "साल 2008 में गाँव में पानी भरा तो घर चला गया, अब तक घर नहीं बन सका है, पांच-छह बीघा जो खेती की जमीन थी वो भी नदी के कटान में चली गयी, बस यहीं बंधे पर जिंदगी गुजारते हैं, गल्ला (राहत सामग्री) किसी को मिला तो किसी को नहीं मिला, कैसे रह रहे हैं हम ही जानते हैं।"

बंधे के पास बसे इन गांवों की दूरी सरयू नदी से करीब डेढ़ से दो किलोमीटर है। कंचनापुर, हेतमापुर, केदारीपुर, कोढरी जैसे दर्जनों गांवों के लोग हर साल न सिर्फ बाढ़ से नुकसान झेलते हैं, बल्कि इन गांवों के किसानों की हजारों एकड़ फसलें भी पानी में बर्बाद हो जाती हैं।

बंधे पर खड़े होकर एक तरफ देखने पर जहाँ किसानों की हरी-भरी फसलें दूर तक सुरक्षित नजर आती हैं तो दूसरी तरफ बाढ़ से पानी में डूबे हुए गांवों और किसानों की बर्बाद हुई फसलों की।

बंधे से थोड़ी दूर पर हेतमापुर गाँव भी बाढ़ के प्रकोप से बचा नहीं है। इस गाँव के कई लोग अभी भी पानी में डूबे अपने घरों में रहने को मजबूर हैं तो कई सामान लेकर बंधे की ओर निकल गए हैं।

सालों से बाढ़ का दंश झेल रहे ग्रामीणों को नहीं मिलती कोई राहत। फोटो : अभिषेक वर्मा

सालों से बाढ़ का दंश झेल रहीं हेतमापुर गाँव की हसरतुल भी हैं जो सरकार से खासा नाराज हैं। वह कहती हैं, "अमीर के साथी सब हैं, गरीब को कोई पूछने वाला नहीं, जब बाढ़ आती है तो अधिकारी आते हैं और बस इसी बंधे से लौट जाते हैं, यहाँ घर डूब गया और कोई पूछने वाला नहीं है, जैसे-तैसे सावन-भादो के तीन महीने रोड पर गुजरते हैं, पांच साल से हम यही कर रहे हैं।"

बाढ़ से प्रभावित गाँव केदारीपुर के रहने वाले अनिल तिवारी कहते हैं, "बाढ़ कुछ हमारी किस्मत में लिखा है और कुछ सरकार भी लिखे है, पुल बन जाए तो नदी का कटना बंद हो जाता। चाहे जो सरकार हो लेकिन हम लोगों का कष्ट न दूर हुआ, अभी लॉकडाउन से परेशान, फिर बाढ़ से परेशान, गल्ला (राहत सामग्री) भी जो मिली तो परिवार में 10 लोग और पर्ची में तीन लोगों का नाम, तीन लोगों के लिए मिला, ये भी अधिकारी नहीं देखता।"

इन ग्रामीणों की नियति में जैसे हर साल बाढ़ का दर्द झेलना ही लिखा है। हर साल ये सरयू नदी में आने वाली बाढ़ में अपना नुकसान झेलते हैं और उम्मीद करते हैं कि शायद कोई सरकार उनके जख्मों पर मरहम लगाएगी।

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