विश्व स्तनपान सप्ताह : मजदूर मां की मजबूरी 'मज़दूरी करें या बच्चे को कराएं स्तनपान'

कमला जैसी बुंदेलखंड की लाखों महिला मजदूरों को कष्ट है अपने बच्चे को अच्छे से स्तनपान न करा पाने का। ऐसा नहीं है कि कमला अपने बच्चे को प्यार नहीं करतीं और उसे स्तनपान नहीं कराना चाहतीं पर वह मजबूर हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   1 Aug 2018 6:13 AM GMT

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विश्व स्तनपान सप्ताह : मजदूर मां की मजबूरी मज़दूरी करें या बच्चे को कराएं स्तनपानफाइल फोटो।

लखनऊ। "जब सुबह घर से मजदूरी करने निकलते हैं तो बच्चे को रोते हुए मजबूरी में छोड़कर जाना पड़ता, रोते बच्चे को अगर चुप कराएंगे तो मजदूरी करने देर से पहुंचेंगे, उसे साथ लेकर गये तो ठेकेदार गुस्सा करेगा और मजदूरी काट लेगा, पूरे दिन में दो बार ही बच्चे को स्तनपान करा पाते हैं।" ये कहना है ललितपुर से 65 किमी दूर बजरंगगढ़ गाँव में रहने वाली कमला सहरिया (25 वर्ष) का।

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कमला जैसी बुंदेलखंड की लाखों महिला मजदूरों को कष्ट है अपने बच्चे को अच्छे से स्तनपान न करा पाने का। ऐसा नहीं है कि कमला अपने बच्चे को प्यार नहीं करतीं और उसे स्तनपान नहीं कराना चाहतीं पर वह मजबूर हैं। कमला अपने ठेकेदार से डरती हैं, अगर वो वक्त से काम पर न पहुंचीं तो उसे ठेकेदार काम नहीं देगा। अगर उसने मजदूरी नहीं की तो उसके घर का चूल्हा कैसे जलेगा।

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के सात जनपद बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी व ललितपुर में 2011 की जनगणना के मुताबिक, कुल जनसंख्या 96,59,718 है। इसमें महिलाओं की संख्या 45,63,831 है।

ललितपुर जिले के इन इलाकों में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था साईं ज्योति संस्थान के मुताबिक, जिले में 71,610 सहरिया आदिवासी परिवार रहते हैं। सहरिया आदिवासी महिलाएं सिर्फ मजदूरी करके अपनी रोजी-रोटी चलाती हैं। बजरंगगढ़, दुधई, भड्यावारा, पहाड़ी खुर्द समेत कई गाँवों में महिलाओं ने बताया कि अपने बच्चों को तीन महीने भी सही से स्तनपान नहीं करा पाते हैं।

ललितपुर के मडावरा ब्लॉक से 18 किलोमीटर दूर पश्चिम में पहाड़ी खुर्द गाँव में रहने वाली कस्तूरी (28 वर्ष) के ढाई साल के बेटे दिव्यांश का वजन छह किलो है। इसी गाँव की ममता सहरिया (28 वर्ष) का तीन साल का बेटा रविन्द्र सात किलो का है। दोनों कुपोषित हैं। ममता बताती हैं, "जो मिलता है वही खाकर काम पर निकल जाते हैं, अगर हम अपने बच्चों का ध्यान देंगे तो फिर काम नहीं कर पाएंगे।" वो आगे बताती हैं, "मजदूरी करना हमारी मजबूरी है, अगर एक दिन भी काम पर नहीं जाएंगे तो हमारे बच्चे भूखे रह जाएंगे, मन मारकर बच्चे को रोता हुआ छोड़कर मजदूरी करने चले जाते हैं।"

मजदूरी करना हमारी मजबूरी है, अगर एक दिन भी काम पर नहीं जाएंगे तो हमारे बच्चे भूखे रह जाएंगे, मन मारकर बच्चे को रोता हुआ छोड़कर मजदूरी करने चले जाते हैं।
ममता सहरिया, महिला मजदूर

ललितपुर जिला अस्पताल के अनुसार, मई 2016 में कुल 40,310 महिलाएं गर्भवती हुईं। इसमें से 2641 महिलाओं में खून की कमी पाई गई और 11,610 बच्चे कुपोषित मिले। "वैसे तो स्तनपान कराने को लेकर महिलाएं जागरूक हैं, कुछ एक अति पिछड़े ब्लॉक हैं वहां महिलाएं काम की वजह से स्तनपान नहीं करा पाती हैं।" ललितपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रताप सिंह ने कहा।

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