हमें तेजाब का दर्द पता है, अब दोबारा झेलना नहीं चाहते

Basant KumarBasant Kumar   27 March 2017 11:55 AM GMT

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हमें तेजाब का दर्द पता है, अब दोबारा झेलना नहीं चाहतेशिरोज में काम करने वाली महिलाएं.  

लखनऊ। रायबरेली से लखनऊ आ रही महिला रजोली (बदला नाम) को तेज़ाब पिलाए जाने की घटना के बाद से उनके साथ शिरोज कैफे में काम करने वाली एसिड पीड़ित महिलाएं डरी हुई हैं, वो अब अकेले बाहर नहीं निकल रही हैं।

शिरोज कैफे में काम करने वाली रजोली गुरुवार को रायबरेली अपने घर से वापस लखनऊ आ रही थीं। ट्रेन में ही चारबाग स्टेशन से कुछ दूरी पर अपराधियों ने तेजाब पिला दिया था। जिसके बाद से रशोनी केजीएमयू के ट्रामा सेंटर में भर्ती हैं। इस घटना के बाद से रजोली के साथ में काम करने वाली एसिड पीड़िताएं डरी हुई हैं। उनके परिवार से सुरक्षा को लेकर फोन आ रहे हैं। पीड़िताओं को अभी भी धमकी आते रहते हैं।

लखनऊ स्थित शिरोज कैफे में सात एसिड पीड़ित महिलाएं काम करती हैं। मेरठ की रहने वाली आसमा बताती हैं, "शिरोज में आने के बाद हम निडर और खुशहाल हो गए थे, लेकिन इस घटना के बाद डर बढ़ गया है। मुझपर तेजाब फेंकने वाले तो मजिस्ट्रेट के सामने ही मुझे बोला था कि बाहर आते ही तुम्हें मार देंगे। मेरी सास अब भी कहती है कि जहां नज़र आओगी वहीं जला देंगे।"

आसमा पर एसिड उसके ससुराल के लोगों ने ही डाला था। आसमा पर एसिड तब डाला गया जब वो प्रेग्नेंट थीं। उसके ससुराल वाले उसे अपने घर पर नहीं रखना चाहता थे। आसमान प्रेग्नेंट थीं तो उन्हें डर था की अगर बच्चा हो गया तो मुझे अपनाना पड़ेगा, इससे बचने के लिए उन्होंने मेरे पेट पर एसिड फेंक दिया। मेरा बच्चा मर गया। मेरे पति और मेरे जेठ अभी जेल में हैं, लेकिन देवर ससुर और सास बाहर है। वो मुझपर कभी भी हमला कर सकते है। इसबात से अब बहुत डर लगने लगा है।

शिरोज कैफे में काम करने वाली रेशमा बताते हैं, "रजोली के साथ जब यह घटना हुई उसके बाद से तो फिर डर लगने लगा है। मैं तो कुछ महीनों से बिना चेहरे पर दुपट्टा बंधे ही बाहर आने-जाने लगी थी, लेकिन घटना के बाद के दिन से मैं बिना दुपट्टा बांधे बाहर नहीं निकल रही हूँ। मुझपर तो मेरे पति ने ही तेज़ाब डाला था। वो अब जेल से बाहर है और लखनऊ में ही रहता है।

2008 में छठी क्लास में किसी अनजान द्वारा एसिड अटैक की शिकार हुई गरिमा उदास आवाज़ में बोलती हैं, "जो रजोली जी के साथ हुआ वो हमारे साथ भी हो सकता है। मेरे घर वाले बहुत डरे हुए हैं। मम्मी-पापा बार-बार फोन करके हालचाल पूछ रहे हैं। अकेले बाहर जाने से मना कर रहे हैं। हम यहां शिरोज कैफे में बेख़ौफ़ घुमते थे, लेकिन अब मन में एक डर पैदा हो गया है। हम एकबार दर्द भुगत चुके हैं दोबारा दर्द नहीं भुगतना चाहते हैं।"

आने जाने के लिए गाड़ी नहीं

शिरोज कैफे में काम करने वाली एसिड पीड़ित महिलाएं नवीन गल्ला मंडी के पास एक हॉस्टल में रहती हैं। कैफे से काम करके ये महिलाएं रात दस बजे के करीब होस्टल जाती है। प्रीति बताते हैं कि हमारे पास कोई गाड़ी नहीं है। हम उबेर और ओला से रोजाना शाम को जाते हैं। रोजाना अलग-अलग ड्राइवर के साथ हमें जाना पड़ता हैं। हमें डर लगता है। हमें एक गाड़ी उपलब्ध कराई जाए।

गाड़ी के सम्बन्ध में छाँव फाउंडेशन के आशीष बताते हैं कि हमारे पास पहले एक गाड़ी हुआ करती थी, लेकिन ज़्यादा खर्च आने के कारण हम ज़्यादा दिनों तक हम खर्च का वहन नहीं कर सके और गाड़ी बन्द करना पड़ा। हम मानते हैं कि रोजाना अलग-अलग ड्राइवर के साथ आने-जाने में डर है, लेकिन कुछ कर नहीं सकते है। महिला कल्याण विभाग को इन लड़कियों के लिए एक गाड़ी उपलब्ध करानी चाहिए।

पुलिस सुरक्षा को लेकर आश्वस्त करे

आशीष कहते हैं कि इस घटना के बाद यहां काम करने वाली महिलाएं डरी हुई है। पुलिस को सुरक्षा को लेकर अब आश्वस्त करना होगा। पुलिस कैफे पर सुरक्षाकर्मी लगाए या जिस भी तरह से मुमकिन हो सुरक्षा दें। एसिड अटैक का इनके मन से डर निकालना बहुत ही मुश्किल होता है। हम इस सम्बन्ध में यूपी पुलिस से लगातार सम्पर्क में है।

        

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