UP Panchayat Chunav 2021: पंचायत चुनाव में वार्ड मेंबर का पद कितना अहम है, पिछले पंचवर्षीय में वार्ड मेंबर के एक लाख से ज्यादा पद क्यों रह गये खाली?

वार्ड मेंबर का पद पंचायत चुनाव में कितना अहम है? पिछली पंचवर्षीय 2015 में यूपी में वार्ड मेंबर की कुल संख्या 7 लाख 42 हजार 269 थी। जब परिणाम घोषित हुए तो सदस्यों के एक लाख तैतीस हजार एक सौ अड़तीस पद खाली रह गये क्योंकि इन पदों पर कोई प्रत्याशी नहीं था। जिसका परिणाम यह हुआ की प्रदेश की लगभग 13 हजार ग्राम पंचायतों के गठन का नोटिफिकेशन और शपथ ग्रहण नहीं हो पाया।

Neetu SinghNeetu Singh   27 March 2021 6:01 AM GMT

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लखनऊ। यूपी समेत 5 राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की गूंज हैं। अपनी-अपनी पंचायत में प्रधान उम्मीदवार बीते एक दो साल से चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि पंचायती चुनाव में प्रधान पद के अलावा वार्ड मेंबर का पद कितना अहम है।

पिछली पंचवर्षीय 2015 में यूपी में वार्ड मेंबर की कुल संख्या 7 लाख 42 हजार 269 थी। जब परिणाम घोषित हुए तो सदस्यों के एक लाख तैंतीस हजार एक सौ अड़तीस पद खाली रह गये, क्योंकि इन पदों पर कोई प्रत्याशी ही नहीं था। जिसका परिणाम यह हुआ की प्रदेश की लगभग 13 हजार ग्राम पंचायतों के गठन का नोटिफिकेशन और शपथ ग्रहण ही नहीं हो पाया।

यूपी में पंचायत चुनाव की अधिसूचना 26 मार्च को जारी हो गई है। प्रेस कांफ्रेंस में चुनाव आयोग ने बताया कि प्रदेश में चार चरणों में मतदान होगा और सभी चरणों की मतगणना 2 मई को होगी। नामाकंन और मतदान की तिथियाँ भी घोषित हो गयी हैं। पहले चरण के लिए नामांकन 3 से 4 अप्रैल, दूसरे चरण का 7-8 अप्रैल, तीसरे चरण का 13 और 15 अप्रैल और चौथे चरण का नामांकन 17-18 अप्रैल को होगा। पहले चरण का मतदान 15 अप्रैल को, दूसरे चरण का 19 अप्रैल, तीसरे चरण का 26 अप्रैल और चौथे चरण का मतदान 29 अप्रैल को होगा।

पंचायत चुनाव में वार्ड मेंबर का पद कितना अहम है? इस विषय पर चर्चा के लिए गाँव कनेक्शन के विशेष शो गाँव कैफे में तीसरी सरकार अभियान के संचालक डॉ. चंद्र शेखर प्राण ने बताया कि वार्ड मेंबर के पद के बिना पंचायत में विकास का कोई भी कार्य करवाना संभव नहीं है। पढ़िए बातचीत के कुछ अंश ...

सवाल : किसी भी पंचायत में ग्राम प्रधान के अलावा वार्ड मेंबर की भूमिका कितनी अहम है?

डॉ चन्द्रशेखर प्राण : भारत के उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में ग्राम प्रधान, मुखिया या सरपंच ही पंचायत का मुख्य चेहरा बनकर रह गया है, जबकि वार्ड मेंबर के बिना पंचायत का गठन संभव नहीं है। भारत का संविधान कहता है कि पंचायत मुखिया या सरपंच से नहीं बनती, पंचायत सदस्यों से बनती है। संविधान में सदस्य शब्द का उपयोग हुआ है। पंचायत चुने हुए सदस्यों से बनती है, सदस्य हर पंचायत की रीढ़ होते हैं। सभी राज्यों के अधिनियम में ऐसा कहा गया है कि अगर दो तिहाई सदस्य नहीं चुने जाते हैं तो उस पंचायत का नोटिफिकेशन नहीं होगा अर्थात पंचायत का गठन नहीं होगा। उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम की धारा 12 (3) (घ) के अनुसार जब तक किसी ग्राम पंचायत के दो तिहाई सदस्यों का चुनाव नहीं होता तब तक उसका गठन नहीं होगा। सदस्य पंचायत में बहुत महत्वपूर्ण है इनके बिना विकास कार्य संभव ही नहीं है।

वार्ड मेंबर के बिना पंचायत में विकास कार्य नहीं हैं संभव, पर अभी कागजों पर ली जाती है इनकी सहमति. फोटो : गाँव कनेक्शन

सवाल : वार्ड मेंबर का पद महत्वपूर्ण है इसके बावजूद पिछली पंचवर्षीय 2015 में वार्ड मेंबर के लाखों पद खाली रह गए`, इसकी वजह क्या रही?

डॉ चन्द्रशेखर प्राण : अगर हम यूपी के ही चुनाव का ही उदाहरण ले लें तो वर्ष 2015 में वार्ड मेंबर की कुल संख्या 7 लाख 42 हजार 269 थी (7,42,269)। चुनाव प्रक्रिया के बाद जब परिणाम घोषित हुए तब पता चला कि सदस्यों के एक लाख तैतीस हजार एक सौ अड़तीस (1,33,138) पद खाली रह गए हैं, क्योंकि इन पदों पर कोई प्रत्याशी ही नहीं था। वार्ड मेंबर का पद लोगों को महत्वहीन लगने लगा है। आबादी के अनुसार एक ग्राम पंचायत में 6 से 10 सदस्यों का चुनाव होना जरूरी है तभी पंचायत का गठन हो सकेगा। सदस्यों के 3 लाख एक हजार आठ सौ बत्तीस (3,01,832) पद पर निर्विरोध चुनाव हुआ था।

वार्ड सदस्यों में जानकारी और नेतृत्व क्षमता का घोर अभाव होने की वजह से पिछली पंचवर्षीय में निर्विरोध और खाली पदों की संख्या 4 लाख 34 हजार 9 सौ 70 रही जो कुल सदस्यों की संख्या का 60% है। वैसे तो निर्विरोध चुनाव पंचायत के लिए बहुत ही उत्तम स्थिति है, लेकिन यहाँ इसके पीछे की सच्चाई ये थी कि अधिकांश सीटों के लिए बड़ी मुश्किल से एक ही प्रत्याशी मिला था। इसके लिए लोगों में कोई रुचि या आकर्षण नहीं था। जिसका परिणाम यह हुआ की प्रदेश की लगभग 13 हजार ग्राम पंचायतों के गठन का नोटिफिकेशन नहीं हो पाया। जिसकी मुख्य वजह यह रही कि पिछले 25 वर्षों में ग्राम पंचायतों का जो इतिहास रहा है उसके अनुसार पूरी की पूरी पंचायत ग्राम प्रधान, मुखिया या सरपंच पर केन्द्रित होकर रह गयी है।

एक कारण यह भी है कि वार्ड मेंबर को अपने पद की महत्ता ही नहीं पता जिसकी वजह है उन्हें कभी प्रशिक्षण नहीं मिलता। जब ग्राम प्रधान को ही उनके पद की जिम्मेदारियां नहीं पता है, उन्हें ही पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला है तो फिर वार्ड मेंबर की तो बात ही छोड़िए।

सवाल : तीसरी सरकार अभियान अभी देश के अलग-अलग राज्यों में किन-किन मुद्दों पर काम कर रहा है? वार्ड मेंबर के बिना पंचायत में विकास कार्य कैसे संभव नहीं है?

डॉ चन्द्रशेखर प्राण : हम बीते 20 वर्षों से पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे हैं। तीसरी सरकार अभियान पंचायत के संस्थागत ढाँचे के लिए बीते छह वर्षों से देश के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहा है। इस बार हम वार्ड सदस्यों के चुनाव पर सबसे ज्यादा फोकस हैं। ग्राम पंचायत में कई कमेटियां होती हैं, पंचायत एक तरह का मंत्रीमंडल है कार्यपालिका और विधायका।

यूपी में पंचायत के 29 विषय हैं, जिसमें छह कमेटियां बनाई जाती हैं। ये सभी कमेटियां वार्ड मेंबर से बनती हैं, हर कमेटी में छह सदस्य होते हैं। एक वार्ड मेंबर कम से कम तीन कमेटियों का सदस्य होता है। दो कमेटियों का सभापति ग्राम प्रधान होता है बाकी चार कमेटियों का सभापति वार्ड मेंबर होता है। जिन कमेटियों का सभापति वार्ड मेंबर होता है, उस कमेटी में ग्राम प्रधान सदस्य के रूप में भी शामिल नहीं होता।

सबसे महत्वपूर्ण एक समिति है जिसका नाम है निर्माण समिति, जिसका सभापति वार्ड मेंबर होता है। पंचायत में कोई भी निर्माण कार्य इस समिति के मर्जी के बिना नहीं हो सकता। निर्माण कार्य में इस समिति का पूरा नियंत्रण रहता है।अधिनियम में उल्लेख है कि ग्राम पंचायत में कोई भी काम कमेटी के सदस्यों की मर्जी के बिना नहीं हो सकता। हमने एक सर्वे किया जिसमें 95% वार्ड मेंबर को यह पता ही नहीं कि वो किस कमेटी के सदस्य हैं। पंचायत में काम तो हो ही रहा है, इसका मतलब सिर्फ कागजों पर काम चल रहा है, वार्ड मेंबर की कोई सहभागिता नहीं है।



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