झारखंड: महिलाओं ने मिलकर शुरु की खेती तो छोटे पहाड़ी खेतों में भी उगने लगी मुनाफे की फसल
सब्जी एक ऐसी फसल है जिसमें दूसरी फसलों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी आमदनी होती है। उत्पादक समूह की महिलाओं को सब्जियों की मिश्रित खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे ये अपनी छोटी जोत की जमीनों में सामूहिक रूप से खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रही हैं।
Neetu Singh 3 July 2019 5:35 AM GMT
पूर्वी सिंहभूम/लोहरदगा (झारखंड)। किसान पारंपरिक फसलों को कम करके ऐसी फसलें लगाएं जिसमें उनको अच्छी आमदनी हो। इसलिए किसानों को ज्यादा से ज्यादा सब्जियों की खेती करने के लिए उत्साहित किया जा रहा है। अब ये महिलाएं मिलकर छोटे पहाड़ों में मुनाफे की फसल काट रहीं हैं।
जोहार परियोजना के अंतर्गत किसानों को उच्च मूल्य खेती में ऐसी फसलों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे वो साल भर अच्छी आमदनी कमा सकें। सब्जी एक ऐसी फसल है जिसमें दूसरी फसलों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी आमदनी होती है। उत्पादक समूह की महिलाओं को सब्जियों की मिश्रित खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे ये अपनी छोटी जोत की जमीनों में सामूहिक रूप से खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। सब्जियों की खेती की शुरुआत ये महिला किसान कम से कम 30 डिसमिल की जमीन से कर रही हैं। इनके द्वारा उगाई गयी इन सब्जियों को एक बेहतर मार्केट भी उपलब्ध कराया जा रहा है।
एक साल पहले खाली पड़े थे खेत
दूर तक खाली पड़े खेतों की तरफ इशारा करते हुए तुलसी मुर्मू (35 वर्ष) बताती हैं, "जिस खेत में आज आप सब्जियां लगी देख रही हैं एक साल पहले तक हमारा भी ये खेत इन खेतों की तरह खाली पड़ा रहता था। एक एकड़ खेत में पहली बार सब्जी लगाई है। मुनाफे की बात छोड़िये खाली पड़े खेत में सब्जी लगाना ही हमारे लिए बड़ी बात है।" तुलसी झारखंड के जिस जिले में रहती हैं वहां पानी की किल्लत की वजह से किसान खेती नहीं कर पाते हैं। यहाँ की सैकड़ों एकड़ जमीन बरसात के पानी पर निर्भर है। लेकिन उत्पादक समूह से जुड़ने के बाद तुलसी ने पहली बार गाँव के पास अपनी एक एकड़ जमीन में खेती करना शुरू किया। ये इस खेत की सिंचाई पास के कुएं से पम्पिंग सेट के द्वारा करती हैं।
पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर धालभूमगढ़ ब्लॉक के तिलाबनी गाँव में वर्ष 2018 में तिलाबनी आजीविका उत्पादक समूह का गठन किया गया। झारखंड में पानी की समस्या पूरे राज्य में हैं ऐसे में जोहार परियोजना के अंतर्गत महिलाओं के उत्पादन समूह बनाये जा रहे हैं और उन्हें खेती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। धालभूमगढ़ ब्लॉक की सैकड़ों एकड़ जमीन खाली पड़ी है ऐसे में इन महिलाओं की पहल सराहनीय है। इस समूह की आजीविका कृषक मित्र सम्पा महतो (26 वर्ष) बताती हैं, "अभी कुछ महिलाएं अपनी जमीन के थोड़े हिस्से में ही सब्जियों की खेती कर रही हैं इनके देखादेखी दूसरी महिलाएं प्रेरित हो रही हैं। जो महिलाएं खेती कर रही हैं वो गाँव के नजदीक है जहाँ से कुआं नजदीक है तो वो पम्पिंग सेट से सिचाई कर लेती हैं।"
अब सब्जियां बेचने के लिए नहीं जाना पड़ता बाजार
उच्च मूल्य खेती करने से पहले बाजार की मांग को ध्यान में रखकर किसानों को वही सब्जी लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है जिसकी बाजार में मांग ज्यादा रहती है। खेत की तैयारी से लेकर अच्छी गुणवत्ता वाले बीज किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं। जिससे किसान छोटी जमीन में बेहतर उत्पादन ले सकें। जोहार परियोजना का प्रयास ये भी है कि किसानों को फुटकर सब्जी बेचने के लिए पूरे दिन बाजार में न बैठना पड़े। इसके लिए एक साथ किसानों की सब्जी कलेक्ट की जाती है और फिर वो थोक में बाजार भाव के हिसाब से बेची जाती है। इन सब्जियों को खेत से निकलने के बाद अच्छा भाव मिले और ये बर्बाद न हो इसके लिए पहले बाजार में सब्जी की मांग का पता कर लिया जाता है उसी हिसाब से वही सब्जी तोड़ी जाती है। इन सब्जियों की शाटिंग ग्रेडिंग करके अलग-अलग करके बेची जाती है जिससे सब्जी की गुणवत्ता के अनुसार भाव मिलता है।
जोहार परियोजना के शुरुआत के पहले साल में उच्च मूल्य खेती पूर्वी सिंहभूम, गुमला, लोहरदगा, खूंटी, रामगढ़ हजारीबाग जिले और दूसरे साल में बोकारो, धनबाद,रांची में शुरू की गयी है। जिन किसानों ने धान के अलावा कभी कोई फसल नहीं की थी अब वो किसान सब्जियों की खेती करने लगे हैं। खेत से बाजार तक सब्जी ले जाने के क्या प्रक्रिया है इस पर सीनियर आजीविका कृषक मित्र परमेश्वर मुंडा बताते हैं, "जिस दिन सब्जी बेचनी होती है उसके एक दिन पहले दो तीन थोक बाजारों के व्यापारियों से बात कर लेते हैं जहाँ अच्छा भाव मिलता है वहीं सब्जी ले जाते हैं। एक गाड़ी में भरकर सभी उत्पादक समूह की दीदियों की सब्जी लेकर जाते हैं। सॉर्टिंग और ग्रेडिंग के अनुसार अच्छा भाव मिल जाता है।"
बाजार में आए हैं कई नए किस्म के बीज
रजनी उरांव (50 वर्ष) अपनी गोभी की फसल दिखाते हुए कहती हैं, "अब तो बाजार में ऐसा बीज आ गया है एक किलो लगाओ तो कई कुंतल पैदा होता है। पहले हमें ऐसे बीज की जानकारी नहीं थी। हम घर में रखें वही पुराने बीज बोते थे जो वर्षों से बोते आ रहे थे। उन बीजो को बोकर बिजनेस नहीं किया जा सकता वो खाने भर के लिए होता था।" उन्होंने आगे कहा, "खेती से भी कभी बिजनेस हो सकता है ये हमने सोचा नहीं था लेकिन अब तो एक साल से हम 22 दीदी 30-30 डिसमिल जमीन में सब्जियों की खेती कर रहे हैं। पिछले साल हम लोगों ने एक लाख छियालीस हजार साठ रुपए की सब्जी बेची थी।" रजनी उरांव लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर कुडू प्रखंड के सुन्दरू पंचायत के सरनाटोला की रहने वाली हैं।
रजनी मार्च 2018 में बने सुकुमार महिला किसान उत्पादक समूह सरना टोला की सदस्य हैं। उत्पादक समूह की सचिव गीता देवी (35 वर्ष) ने बताया, "सब्जियों की खेती में सबसे बड़ा फायदा ये है बुवाई के तीन चार महीने में 30 डिसमिल जमीन में 12,000 की आमदनी हो जाती है। अगर लागत के तीन चार हजार रुपए निकाल दिए जाएं तो 8000-9000 हजार की बचत आसानी से हो जाती है।" वो आगे बताती हैं, "खेत में लगने वाली फसल का चयन परियोजना नहीं बल्कि हम किसान बैठक करके करते हैं। जमीन और पानी के साधन के आलावा बाजार भी देखते हैं कि किस चीज की ज्यादा मांग है। उत्पादक समूह से जुड़ा हर किसना कमसेकम 30 डिसमिल जमीन से खेती की शुरुआत जरुर करता है जिससे उसका मुनाफा पता चल सके।"
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किसानों को मिलता है तकनीकी सहयोग
जोहार परियोजना के अंतर्गत किसानों को वर्ल्ड वेजीटेबल सेंटर की मदद से टेक्निकल खेती की ट्रेनिंग दी जाती है। जैसे टमाटर के पौधे के साथ किसान डंडी लगाये जिससे टमाटर जमीन पर न रहे। इससे टमाटर की सड़न 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है। पौध से पौध की दूरी का किसान ख़ास ध्यान रखें। दो साल में किसानों को इतना भरोसा हो गया है कि बरसात के आलावा भी फसलें उगाई जा सकती हैं। सब्जी एक ऐसी फसल है जिसमें कोई इंश्योरेस नहीं होता है। शुरुआत में किसान इस डर से खेती करने से कतराते थे लेकिन अब दो साल खेती करने के बाद किसानों को भरोसा हो गया है कि पूरे साल भी सब्जियां उगाई जा सकती हैं।
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