जोहार परियोजना से बदल रहे झारखंड के गाँव

जहाँ एक तरफ गांवों की गरीबी मिटाने के लिए महिलाओं को सखी मंडल से जोड़ा गया। वहीं दूसरी तरफ जोहार परियोजना से इनकी आमदनी दोगुनी करने के लिए इन्हें रोजगार के एक या एक से अधिक साधनों से जोड़ा जा रहा है।

Neetu SinghNeetu Singh   1 July 2019 10:43 AM GMT

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जोहार परियोजना से बदल रहे झारखंड के गाँव

रांची (झारखंड)। राज्य में जोहार परियोजना को शुरू हुए अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए लेकिन झारखंड के गांवों में बदलाव की तस्वीर दिखनी शुरू हो गयी है। कल तक साधारण दिखने वाली महिलाएं आज खुद की बनाई कम्पनी की मालिक बन गयी हैं।

वर्षों से पानी के आभाव में जो जमीन खाली पड़ी रहती थी आज उसमें हरी-भरी फसलें लहला रही हैं। अब किसान पारम्परिक खेती पर निर्भर नहीं हैं। अब ये उन्नत खेती, पशु पालन, मत्स्य पालन, वनोपज से भी अपनी आय बढ़ा रहे हैं। जहाँ एक तरफ गांवों की गरीबी मिटाने के लिए महिलाओं को सखी मंडल से जोड़ा गया। वहीं दूसरी तरफ जोहार परियोजना से इनकी आमदनी दोगुनी करने के लिए इन्हें रोजगार के एक या एक से अधिक साधनों से जोड़ा जा रहा है। राज्य में पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए सूक्ष्म लघु सिंचाई की व्यवस्था की गयी है। जिससे किसान साल में दो तीन फसलें ले सकें।

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पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ प्रखंड के तिलाबनी गाँव की तुलसी मुरमू (35 वर्ष) ने एक साल पहले उत्पादक समूह में जुड़ने के बाद पहली बार एक एकड़ जमीन में सब्जी की खेती की। वो अपने खेत में सब्जी की तुड़ाई करते हुए बोलीं, "हमने सब्जी की खेती पहली बार की है। कुएं के पानी में पम्पिंग सेट लगाकर सिंचाई करके बैगन, भिंडी, मिर्च, गोभी, टमाटर सबकुछ एक एकड़ खेत में लगाया है। बहुत ज्यादा मुनाफा हुआ ये तो नहीं कहेंगे पर हम इस बात से खुश हैं कि हमारे देखादेखी कई लोग इस साल खाली पड़े खेत में खेती करने के मूड में हैं।" तुलसी तिलाबनी आजीविका उत्पादक समूह की सदस्य हैं। इस समूह में 70 महिलाएं जुड़ी हैं जिसमें पिछले साल 10-12 महिलाओं ने सब्जियों की खेती करना शुरू की है।

तुलसी मुरमू की तरह झारखंड की हजारों महिलाएं उत्पादक समूह से जुड़कर खेती करना शुरू कर चुकी हैं। कहीं बड़े पैमाने पर उन्नत खेती हो रही है तो कहीं पशुपालन और मत्स्य पालन से महिला किसान अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं। इन महिलाओं को प्रशिक्षण देकर इतना सशक्त किया जा रहा है कि ये कम्पनियों से सीधे बीज-खाद खरीद सकें और अपने उत्पादों को सीधे बाजार पहुंचा सकें। इनका मकसद है गुणवत्ता पूर्ण खेती करके अपनी आय को बढ़ाना और बाजार से बिचौलियों को खत्म करना। जो महिलाएं पानी के आभाव में वर्षों से खेती छोड़ चुकी थीं अब वो खेती करना शुरू कर चुकी हैं। जो पहले पारम्परिक तरीके से मछली और बकरी पालन करती थी अब वो वैज्ञानिक तरीके से कर रही हैं। जंगलों से निकलने वाले उत्पादों की अब ये प्रोसेसिंग करके वनोपज से भी अच्छी आमदनी ले रही हैं।

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लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड में सुकुमार महिला किसान उत्पादक समूह की सचिव गीता देवी (35 वर्ष) ने बताया, "पहले सब्जी बेचने के लिए हमें पूरे दिन आसपास लगने वाली बाजार में बैठना पड़ता था लेकिन उत्पादक समूह से जुड़ने के बाद हम लोग सामूहिक रूप से मिलकर उन्नत बीजों से बाजार की मांग के हिसाब से सब्जियां लगाते हैं और उसे एक साथ मंडी भेजते हैं। वहां हमें अच्छा भाव भी मिलता है और दिन की पूरी बचत होती है जिससे हम दिन में दूसरे काम कर पाते हैं।" उत्पादक समूह से जुड़ी महिलाएं अपनी रूचि और सुविधा के अनुसार अलग-अलग तरीके के कामों को अपना कर आज अपनी आय बढ़ा रही हैं।

जोहार परियोजना में राज्य के 17 जिले के 68 प्रखंड के 3500 गाँव लिए गये हैं जिससे दो लाख परिवार लाभान्वित होंगे। अबतक 2300 से ज्यादा उत्पादक समूह बन चुके हैं। उत्पादक समूह से लगभग एक लाख महिलाएं जुड़ चुकी हैं। लगभग 3000 सामुदायिक कैडर प्रशिक्षित किये जा चुके हैं। उत्पादक समूह से जुड़ी इन्ही महिलाओं की अपनी खुद की कम्पनी बनाई जा रही हैं जिसमें एक कम्पनी में लगभग 8000-10,000 शेयर होल्डर्स होंगे। कम्पनी को चलाने वाली महिलाएं होंगी। अबतक 11 प्रोड्यूसर कम्पनी बन चुकी हैं। कम्पनी से जुड़ी महिलाओं का इतना क्षमता बर्धन किया जा रहा है जिससे ये अपने उत्पादों को बाजार में खुद बेच सकें।


इस परियोजना के जरिये किसानों की आय बढ़ने के साथ-साथ इनका क्षमता बर्धन भी हो रहा है। कलतक ये खेती से सालभर के खर्चे चल जाएँ ये उम्मीद रखती थी लेकिन आज ये इसे बिजनेस के तौर पर देख रही हैं। रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के टोनागातू आजीविका महिला किसान उत्पादक समूह की सदस्य विनीता देवी (25 वर्ष) बताती हैं, "इस साल 60 डिसमिल में मिर्च की खेती की थी। पहले इसे बेचने के लिए दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता था लेकिन अब जब दूसरी दीदी गाड़ी से अपनी सब्जी बाजार भेजती हैं तो साथ में हम भी भेज देते हैं। पहली बार मिर्च बेचकर जितना फायदा हुआ इससे पहले उतना कभी नहीं हुआ।"

इस परियोजना से जुड़ने के बाद झारखंड की महिलाओं में उम्मीद की एक दूसरी किरण जगी है। खेती और दूसरे श्रोतों से न केवल इनकी आमदनी बढ़ रही है बल्कि ये आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल चुकी हैं। इनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ाई करने लगे हैं। इनका खानपान और रहन-सहन पहले से बेहतर हो रहा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की जो आमदनी दोगुनी करने की बात कही थी झारखंड की महिलाएं जोहार परियोजना से जुड़कर इसे रफ्तार दे रही हैं।

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