लॉकडाउन का असर: मांग घटने से बढ़ीं डेयरी और पशुपालकों की मुश्किलें, किसान बोले- खर्च निकालना मुश्किल

कोरोना महामारी के कारण देश के अलग-अलग राज्यों में लगे लॉकडाउन ने एक बार फिर पशुपालकों और डेयरी व्यवसायियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। लॉकडाउन में दूध की बिक्री पर रोक नहीं है लेकिन होटल-रेस्टोरेट आदि बंद होने से खपत कम हो गई है। अब पशुपालकों को डर है कि अगर ऐसे ही लॉकडाउन बढ़ता रहा और दूध की बिक्री नहीं हुई तो पशुओं के लिए चारे का इंतजाम कैसे करेंगे।

Divendra SinghDivendra Singh   7 May 2021 3:47 PM GMT

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लॉकडाउन का असर: मांग घटने से बढ़ीं डेयरी और पशुपालकों की मुश्किलें, किसान बोले- खर्च निकालना मुश्किल

लॉकडाउन के चलते एक बार फिर डेयरी सेक्टर से जुड़े लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। (Photo: ILRI, Flickr

लक्ष्मण जाधव (30 वर्ष) के यहां हर दिन 600-650 लीटर दूध का उत्पादन होता है,लेकिन लॉकडाउन के चलते दूध की बिक्री कम हो गई है। ऐसे में उनके सामने मुश्किल है कि हर दिन इतने दूध का क्या करें।

लक्ष्मण जाधव महाराष्ट्र के नांदेड़ जिला मुख्यालय से लगभग 38 किमी दूर कंधार में भैंसों की डेयरी चलाते हैं, जहां पर उनके पास 130 भैंसें हैं। पिछले साल भी लॉकडाउन के चलते उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

लक्ष्मण जाधव फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "हर दिन जितना दूध होता है, नांदेड़ भेज दिया जाता था, कुछ लोकल में भी बिक जाता है, लेकिन लॉकडाउन के कारण अब तो मुश्किल हो गई है। सरकार ने दूध बेचने की छूट दे रखी है, लेकिन जब होटल, रेस्टोरेंट सब बंद हैं, तब इतने दूध का क्या करेंगे।"

पशुपालकों के अनुसार इस समय खर्च भी बड़ी मुश्किल से निकल पा रहा है। फोटो: गाँव कनेक्शन

महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए, राज्य सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया है, लेकिन लॉकडाउन में जरूरी सामान की बिक्री के लिए छूट दे रखी है। दूध और डेयरी की दुकानों को सुबह सात से ग्यारह बजे तक खुलने की अनुमति मिली हुई है।

लक्ष्मण आगे कहते हैं, "पिछले साल भी काफी नुकसान हुआ था, मैं पहले जगह-जगह दूध लेकर जाकर बेचता था, लेकिन अब लॉकडाउन के चलते नहीं हो पा रहा है। इसलिए अब घी, पनीर बनाने लगा हूं इसे पुणे भेजता हूं। अब हर दिन भैंसों के चारे का भी इंतजाम करना होता है, इसलिए कुछ तो करना पड़ेगा।"

महाराष्ट्र के कंधार से लगभग 1,851 किमी दूर पंजाब के फाजिल्का जिले में संतोख सिंह वाला गाँव के पशुपालक महेंद्र सिंह (45 वर्ष) का भी यही हाल है। महेंद्र सिंह के पास साहिवाल और फ्रीजियन नस्ल की 20 गाय हैं, जिनसे हर दिन 80 लीटर दूध उत्पादन होता है।

"लॉकडाउन का बहुत असर पड़ा है, बहुत दिक्कत आ रही है, ऐसे ही चल रहा है बहुत मुश्किल हो रही है। हमारे पास जमीन कम है, दूध से ही खर्च चलता है।" महेंद्र सिंह अपनी परेशानी बताते हैं।

भारत के दूध उत्पादन में लगभग 75% हिस्सेदारी लघु, सीमांत और भूमिहीन किसानों की है। लगभग 10 करोड़ डेयरी किसान हैं। 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है।

पिछले साल भी पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। फोटो: गाँव कनेक्शन

अब जब दूध की बिक्री प्रभावित हुई है इसका असर पशुओं के चारे पर भी पड़ा है। महेंद्र सिंह बताते हैं, "इस समय चारे में दाना बिल्कुल कम कर दिया है, अब दाना कैसे लाएंगे, पैसा है नहीं, बहुत मुश्किल समय है।"

साल 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन का दौरान ग्रामीण इलाकों में जनजीवन और कारोबार पर कैसा प्रभाव पड़ा और कैसे लोगों इस मुश्किल वक्त में अपनी आजीविका चलाते रहे, इसे समझने के लिए गांव कनेक्शन ने देशव्यापी सर्वे कराया। 30 मई से लेकर 16 जुलाई तक 20 राज्यों और 3 केंद्र शासित राज्यों के 179 जिलों में 25371 ग्रामीण लोगों के बीच कराए गए सर्वे में पशुपालक, किसानों और डेयरी वालों ने अपनी परेशानियों के बारे में बताया था। (पूरा सर्वे यहां पढ़ें)

गाँव कनेक्शन सर्वे में डेयरी व्यवसाय से जुड़े 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें बाजार तक दूध पहुंचाने में परेशानी हुई, जबकि 42 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कोई परेशानी नहीं हुई और तीन प्रतिशत लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया। वहीं 53 प्रतिशत लोगों के अनुसार उन्हें ग्राहक मिलने में परेशानी हुई, जबकि 40 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई।

कोविड की दूसरी लहर में बढ़ते संक्रमण के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में कहीं आंशिक कर्फ्यू लगा है तो कहीं पूर्ण लॉकडाउन है। लॉकडाउन में बाजार बंद होने से मिठाई की दुकानें, होटल, रेस्टोरेंट जैसी वो सारी जगहों पर तालेबंदी हो गई, जहां दूध या दूध से बने उत्पादों की खपत होती थी। कई राज्यों में कुछ घंटों के लिए बिक्री की अनुमति मिली हुई है।


मध्य प्रदेश के भोपाल में गौरव यादव दूध और दूध से बने उत्पाद की बिक्री के लिए डेयरी चलाते हैं, जिनके यहां गाँव से पशुपालक दूध देते हैं। गौरव बताते हैं, "अभी हमारे 15 तारीख (मई) तक लॉकडाउन है, जिसमें तीन घंटे के लिए सुबह दुकान खुलती है बस। तीन घंटे में अंदाजा लगा लीजिए क्या बिक्री होगी। यहां आसपास बहुत स्टूडेंट रहते थे, अभी आसपास के मोहल्ले के लोग दूध खरीदने आ रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा घाटा किसान का हो रहा है, एक टाइम का दूध तो हम खरीद लेते हैं, लेकिन दूसरे टाइम का दूध वो नहीं बेच पा रहे हैं। किसान का ज्यादा घाटा हो रहा है, वो घाटे में ही दूध बेच रहा है कि कुछ तो मिल जाए।"

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अनुसार देश में दूध उत्पादन 187.7 मिलियन टन (2018-19) है, जबकि प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 394 ग्राम प्रतिदिन है।

बहुत से पशुपालक ऐसे भी हैं जो पिछले साल के लॉकडाउन नहीं उबर पाए और उन्होंने डेयरी ही बंद कर दी। उत्तर प्रदेश के अयोध्या से करीब 15 किमी दूर मकसूमगंज मगलची गाँव के पशुपालक राजेंद्र वर्मा के पास पहले 17 से अधिक गिर नस्ल की गाय थीं, लेकिन लगातार घाटे के कारण उन्होंने सारी गाय बेच दीं।

राजेंद्र बताते हैं, "पशुपालक हों या फिर किसान हर कोई इस समय नुकसान उठा रहा है, दूध के व्यवसाय में लगातार घाटा हो रहा था और लॉकडाउन में तो पूरी तरह से नुकसान हो गया। अब जब दूध ही नहीं बिकेगा तो पशुओं को चारा कहां से खिलाएंगे, इसलिए एक-एक करके सारी गायें बेच दीं, इस समय घर में दूध के लिए सिर्फ चार गाय ही रखीं हैं।

पशुपालकों को डर है कि अगर पिछली बार की तरह लॉकडाउन बढ़ता रहा तो वो ऐसे ही घाटा सहते रहेंगे और ऐसे में वो पशुओं के चारे का कैसे इंतजाम करेंगे।

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