खेती घाटे का सौदा नहीं, बस हरसुख भाई पटेल तरह खेती करने वाला किसान बनना होगा
Divendra Singh 7 Nov 2017 2:17 PM GMT

खेती घाटे का सौदा कही जाती है। दुनिया में सबसे ज्यादा खेती वाले देश में हजारों किसान खेती छोड़ रहे हैं, क्योंकि किसानी में बढ़ती लागत के अनुपात में मुनाफा नहीं हो रहा। लेकिन इसी देश में कुछ ऐसे प्रगतिशील किसान भी हैं जो अपनी सूझबूझ और मेहनत से खेती से फायदे का सौदा बना रहे हैं।
ऐसे ही एक किसान गुजरात के हरसुख राणा भाई पटेल भी हैं। जिस उम्र में लोग आराम करना चाहते हैं हरसुख भाई देशभर में घूम-घूम कर औषधीय खेती के नए तरीके सीखते हैं और खुद उन्हें खेती में आजमाते तो हैं ही दूसरों को सिखाते भी हैं। वो देश के प्रगतिशील किसानों में शामिल हैं।यही नहीं उन्हें तीन बार गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्मानित भी किया गया है। उन्होंने खेती-किसानी को फायदे का सौदा साबित किया है।
गुजरात के राजकोट जिले के धोराजी गाँव के किसान हरसुख राणाभाई पटेल (60 वर्ष) पिछले 17 वर्षों से एलोवेरा व दूसरी औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं। हरसुख राणाभाई पटेल खेती की शुरुआत के बारे में कहते हैं, "साल 2002 में सीमैप के वैज्ञानिकों ने अहमदाबाद में ट्रेनिंग कार्यक्रम किया था, वहीं पर औषधीय फसलों की खेती शुरु की आज मुझे 17 साल हो गए खेती करते हुए।"
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हरसुख भाई पटेल इस समय पामरोज, लेमनग्रास, मेंथा, तुलसी, खस, पचौली, सिट्रोला, नेपाली सतावर, अश्वगंधा जैसी औषधीय व सगंध पौधों की 45 एकड़ में खेती करते हैं। हरसुख भाई समय-समय पर केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) में प्रशिक्षण लेते रहते हैं।औषधीय पौधों की खेती के फायदों के बारे में हरसुख भाई कहते हैं, "इन फसलों की सबसे खास बात होती है, इसे पशु नहीं खाते हैं और इसका भाव भी किलो में मिलता है। इसकी मार्केटिंग में भी परेशानी नहीं होती है।
गुजरात में खेती की शुरुआत सबसे पहले मैंने ही की थी, आज बहुत से किसान मेरे पास ट्रेनिंग लेने आते हैं।"हरसुख भाई पटेल ने सभी फसलों के आसवन के लिए आसवन टैंक भी लगायी है, दूसरे किसान भी अपनी फसल लेकर आते हैं। अब वो एलोवेरा की भी फसल की खेती करने लगे हैं।
हरसुख भाई बताते हैं, "एलोवेरा की एक एकड़ खेती से आसानी से पांच-सात लाख रुपए कमाए जा सकते हैं। वर्ष 2002 में गुजरात में इसकी बड़े पैमाने पर खेती हुई लेकिन खरीदार नहीं मिले। इसके बाद मैंने रिलायंस कंपनी से करार किया।
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राष्ट्रीय औषधीय पौधा बोर्ड के अनुसार भारत में 17000-18000 प्रजातियों पौधे हैं, जिनमें से 6000-7000 लोगों का औषधीय उपयोग में लाए जाते हैं और आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होमियोपैथी दवाओं की चिकित्सा पद्धति, में इनका प्रयोग होता है।
औषधीय पौधे न केवल पारंपरिक औषधि एवं हर्बल उद्योग के लिए एक प्रमुख संसाधन आधार हैं, बल्कि भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए आजीविका और स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करते हैं। देश में 80 से 90 बिलियन औषधीय पौधों का कारोबार होता है। हर वर्ष लगभग 10 अरब रुपए की औषधीय पौधों का निर्यात होता है।
शुरू में उन्हें पत्तियां बेचीं लेकिन बाद में पल्प बेचने लगे। आजकल मेरा रामदेव की पतंजलि से करार है और रोजाना 5000 किलो पल्प का आर्डर है। इसलिए मैं दूसरी जगहों पर भी इसकी संभावनाएं तलाश रहा हूं। वो आगे बताते है, "किसान अगर थोड़ा जागरूक हो तो पत्तियों की जगह उसका पल्प निकालकर बेचें। पत्तियां जहां पांच-सात रुपए प्रति किलो में बिकती है वहीं पल्प 20-30 रुपए में जाता है।"
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हरसुख भाई को तीन बार प्रदेश स्तर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खेती के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए सम्मानित भी किया है। हरसुख भाई आज गुजरात के दूसरे किसानों के लिए मिसाल बन रहे हैं।
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