कॉर्पोरेट जगत की नौकरी छोड़कर इस लड़की ने खोला गरीब बच्चों का स्कूल

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   3 Feb 2018 4:11 PM GMT

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कॉर्पोरेट जगत की नौकरी छोड़कर इस लड़की ने खोला गरीब बच्चों का स्कूलअपने गाँव में खोला गरीब बच्चों के लिए स्कूल।

हर इंसान पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करना चाहता है, पैसा कमाना चाहता है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इन सबसे दूर होकर समाजिक विकास के बारे में सोचते हैं और इनमें से ही हैं पूजा मिश्रा। इन्होंने जब कॉर्पोरेट जगत से नाता तोड़कर उत्तर प्रदेश के अपने गांव में स्कूल खोलने का फ़ैसला किया तो लोगों ने इसे बेवकूफी बताया।

इन्फ़ोसिस के लिए काम करने के बाद पूजा मिश्रा ने जब नौकरी छोड़ने का फैसला किया तो उनके दोस्तों व करीबियों ने उन्हें बहुत समझाया भी लेकिन पूजा ने अपने दिल की सुनी। पूजा बताती हैं, मुझे जब आईआईएम-कोलकाता में प्रवेश मिला था, तभी परिवार वालों को लगा था अब तो अच्छी नौकरी पक्की है लेकिन मैं अपने गाँव के लिए कुछ करना चाहती थी। इसलिए नौकरी छोड़कर मैं अपने गाँव पुरासी लौटी और यहीं गुरुकुल स्कूल की नींव रखी।

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पूजा के माता-पिता बेहतर जीवन के लिए गांव छोड़कर लखनऊ जा चुके थे, पर पूजा को लगा कि उनकी ज़रूरत उनके गांव में है, वे वहां बदलाव लाने के लिए प्रयास कर रही हैं। वो बताती हैं, पिछले चार वर्षों में हम 974 बच्चों और 30 शिक्षकों को ख़ुद से जोड़ने में सफल हुए हैं, हमारा अब तक का सफ़र अच्छा रहा है।’’जब मैंने शुरुआत की तो हमारे पास 28 बच्चे थे, हमने पूरे सालभर की फ़ीस 100 रुपए तय की थी। लेकिन मैंने जल्द ही महसूस किया कि कई अभिभावकों के लिए यह भी ज़्यादा थी।’’

पूजा बताती हैं, मुझे लगने लगा कि ये आर्थिक रुप से फायदेमंद नहीं होगा। मैंने सोचा स्कूल बंद ही कर दूं लेकिन फिर उसके दूसरे दिन ही दो बच्चे मेरे पास आए, उन्होंने पूछा,‘मिस स्कूल कब से शुरू हो रहा है?’ उस पल मुझे लगा कि मैं इन बच्चों को बीच में ही नहीं छोड़ सकती। फिर मैंने आर्थिक सहयोग के लिए अपने दोस्तों से संपर्क किया, जल्द ही मेरे दोस्तों व परिचितों ने 169 बच्चों को स्पॉन्सर किया।’’

गरीब बच्चों के जीवन में जलाई शिक्षा की अलख।

गांव में ग़रीबी और स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याएं पहले से थीं। गांव की एक महिला को उसका पति लगभग रोज़ ही पीटता था, जब मैंने उससे पूछा कि वो उसके अत्याचार क्यों सह रही है? उसने कहा यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को मारता-पीटता हो तो किसी और को इससे फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए।’’

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पूजा आगे बताती हैं,‘‘गांव की लड़कियां अभी भी संकोची हैं, उन्हें छेड़छाड़ जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। उनका ज़्यादातर समय घर के काम करने में बीतता है। गांव के कुछ लोग अब भी मानते हैं कि लड़कियों और लड़कों को एक ही क्लास में नहीं बैठना चाहिए पर चीज़ें अब धीरे-धीरे बदल रही हैं। अब हमारे यहां लड़के रंगोली प्रतियोगिताओं में जीतते हैं और लड़कियां क्रिकेट।

गुरुकुल में पढ़ाई कैसे होती है, इस बारे में पूजा बताती हैं, हम पढ़ाई के साथ साथ कई गतिविधियां भी करवाते हैं जैसे संगीत, डांस, कला और वाद-विवाद प्रतियोगिता। मेरा लक्ष्य है कि ये बच्चे भी मेहनती व अच्छे नागरिक बनें। मैं आगे देश के दूसरे ग्रामीण हिस्सों में भी इस तरह के स्कूल खोलना चाहती हूं।’’

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