गांवो तक तकनीकी जानकारी पहुँचने से ही बदल सकती हैं ग्रामीण भारत के निर्माण की तस्वीर

शहरी और ग्रामीण निर्माण के क्षेत्र में आज भी एक बड़ा अंतर है ,ग्रामीण निर्माण को बेहतर बनाने गाँव कनेक्शन और एमपी बिरला ने उत्तर प्रदेश से शुरू किया है ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   26 Oct 2018 11:14 AM GMT

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गांवो तक तकनीकी जानकारी पहुँचने से ही बदल सकती हैं ग्रामीण भारत के निर्माण की तस्वीर

हमारे जेहन में "गाँव "शब्द आते ही गाँव की हरियाली, खेत-खलिहान और गाँव में बने कच्चे घरों की कल्पना कौंध जाती है। ग्रामीण भारत की बुनियाद को मजबूत करने के प्रयास लगातार होते रहे हैं। लेकिन जानकारी के अभाव और भवन निर्माण का तकनीकी ज्ञान न होने के चलते ग्रामीण अपनी पूरी जमा पूंजी लगाकर भी घर को वैसा नहीं बना पाते जैसा उसे बनाया जा सकता है।

ग्रामीणों को भवन निर्माण के संबंध में तकनीकी ज्ञान देने के लिए गाँव कनेक्शन और एमपी बिरला सीमेंट ने उत्तर प्रदेश से एक साझा मुहिम शुरू की है। इसके तहत गाँव और ब्लॉक स्तर पर आयोजित हेाने वाले कार्यक्रमों में ग्राम प्रधानों और ग्रामीणों को भवन निर्माण के संबंध में बेसिक जानकारी दी जाती हैं, साथ ही उनसे एमपी बिरला की टेक्निकल टीम के सदस्यों के नंबर साझा होते हैं ताकि आगे भी जरूरत पर ग्रामीणों की मदद की जा सके।

तकनीकी जानकारी से बदलेगी ग्रामीण निर्माण की सूरत

एमपी बिरला ग्रुप के रीजनल मार्केटिंग मैनेजर यूपी, कुंवर सौरभ सक्सेना बताते हैं, "एमपी बिरला कंपनी का थीम लाइन है-सीमेंट से घर तक-इसके तहत एमपी बिरला सीमेंट उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र होने वाले निर्माण को और बेहतर व आकर्षक बनाने के लिए 'गाँव कनेक्शन' के साझा प्रयास के तहत कानपुर नगर ,सीतापुर, बाराबंकी ,अलीगढ़ के ग्राम प्रधानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे कि ग्राम प्रधान ग्रामीणों को जागरूक कर सकें और गाँवों में होने वाले निर्माण कार्य और बेहतर हो सकें।"

इस अभियान के तहत प्रथम चरण में उत्तर प्रदेश के बहराइच, बाराबंकी, लखनऊ, लखीमपुर ,हरदोई, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, संत रविदास नगर, चंदौली, देवरिया, बस्ती, कुशीनगर, गोरखपुर, हाथरस, फिरोजाबाद, मथुरा, बुलंदशहर, अलीगढ, जालौन, बाँदा, झाँसी , उन्नाव , कानपुर देहात ,कानपुर नगर में ग्राम प्रधानों और ग्रामीणों को कम पैसे में बेहतर भवन निर्माण के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा।

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आज भी ज्यादातर ग्रामीण नक्शा नहीं बनवाते

गाँव कनेक्शन द्वारा उत्तर प्रदेश के पांच जिलों-सीतापुर ,लखनऊ ,उन्नाव ,बाराबंकी ,हरदोई, के पांच सौ ग्रामीणों के बीच कराए गए सर्वे के आधार पर यह बात सामने आई कि आज भी 90 प्रतिशत ग्रामीण भवन निर्माण से पहले नक्शा नहीं बनाते, क्योंकि ग्रामीण इसे काफी महंगा और फिजूलखर्ची मानते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी सलाहकार आसानी से उपलब्ध भी नहीं होते। मात्र आठ फीसदी लोग ऐसे हैं, जो जागरूक हैं और अपने घर का नक्शा खुद ही बनाते हैं वहीं दो दो प्रतिशत लोग ऐसे है जो मकान बनाते समय किसी जानकार व्यक्ति या तकनीकी सलाहकार की मदद लेते हैं।

राजमिस्त्री होते हैं गाँवों के इंजीनियर

ग्रामीण क्षेंत्र में होने वाले निर्माण में राजमिस्त्री की भूमिका काफी अहम होती है। उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के हिलौली गाँव निवासी संदीप उम्र 40 वर्ष बताते हैं, "मकान बनाते समय अधिकांश गाँव के लोग राजमिस्त्री से सलाह लेते हैं, घर का नक्शा कैसा होगा? नींव बनेगी या पिलर पर मकान बनना है, दीवार में कौन सी सीमेंट और ईंट लगेगी और छत में कौन सी ईंट और सीमेंट लगेगी, मकान की तराई कितने दिन में करनी हैं? यह सब निर्णय राजमिस्त्री की सलाह से ही लिए जाते हैं।

लखनऊ जिले के बख्शी का तालाब तहसील के ग्राम बगहा निवासी पुत्तीलाल ने बताया, "अभी एक महीने पहले ही मकान का निर्माण करवाया। इसमें करीब चार लाख रूपये का खर्च आया। पहले पिताजी ने आज से कोई 40 साल पहले बाबा के समय के बनी कच्ची कोठरी की जगह दो कमरे पक्के और उसके आगे छप्पर डलवाया था, साथ ही घर की चारदीवारी बनवाई थी। जैसे -जैसे परिवार बढ़ा तो रहने के लिए जगह की कमी हुई और जब-जब कुछ पैसों की व्यवस्था हुई तो उसके आगे दो कमरे पक्के हमने बनवा लिए।" नक्शा बनवाने के बारे में पूछने पर कहा, "नक्शा इसलिए नहीं बनवाया क्योंकि सुना है कि नक्शा बनवाने में बहुत पैसे खर्च होते हैं, दूसरे जिस हिसाब से पीछे कमरे बन चुके थे, वैसे ही आगे बनाने थे, पूरा मकान तोड़ कर दोबारा बना पाना संभव नहीं था। इसलिए जैसी व्यवस्था थी उस हिसाब से बनवा लिया।

पैसे की कमी से नियोजित तरीके से मकान बनाने में आती हैं दिक्कतें

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के बांगरमऊ ब्लाक के प्रधान संघ अध्यक्ष जनार्दन सिंह बताते हैं, "ग्रामीण क्षेत्र में बेहतर पक्का निर्माण न होने का कारण जहां जानकारी का अभाव है, वहीं आर्थिक तंगी भी एक बड़ी दिक्कत है, अधिकांश किसानों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वो एक साथ अपना मकान योजनाबद्ध तरीके से बनवा सकें। साथ ही अब जगह तो बढ़ नहीं रही, बल्कि लोग बढ़ रहे हैं। जो पक्का निर्माण बाप -दादा के जमाने का थोड़ा बहुत है भी उसे दोबारा तुड़वाकर नये सिरे से बनवा पाना इस महंगाई के दौर में बहुत मुश्किल हैं।"

सीतापुर जिले के ब्लाक हरिहरपुर के निवासी और पेशे से सिविल इंजीनियर अश्वनी शुक्ला ने बताया, "हमारे गाँव में 200 मकान हैं जिसमें मुश्किल से पांच मकान ऐसे होंगे जिनमें सारी सुविधाएं हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा और आकर्षक निर्माण न होने के पीछे अश्वनी शुक्ला बताते हैं, "एक तो गाँववालों को तकनीक और निर्माण के ढांचे के बारें में ज्ञान नहीं है, दूसरे आज भी गाँव में ज्यादातर लोग तुरंत की जरूरत देखकर मकान बनाते हैं। अब नयी पीढ़ी जो गृह निर्माण के महत्व को समझ रही है और जरूरतों के मुताबिक घर बनाना चाहती है, उसके लिए अब पुराना मकान तोड़कर नया मकान बना पाना बहुत महंगा हैं।"

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मकान बनाते समय रखें इन बातों का ख्याल

एमपी बिरला के रीजनल तकनीकी इंचार्ज यूपी, अश्वनी प्रताप सिंह बताते हैं, "सीमेंट की डिमांड प्रतिवर्ष औसत 5 से 10 प्रतिशत बढ़ी है, इसका मतलब साफ़ हैं कि देश में निर्माण की गति बढ़ रही है ,ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब कच्चे मकान धीरे -धीरे पक्के मकानों में तब्दील हो रहे हैं। ऐसे में अगर ग्रामीणों को तकनीकी सलाह मिलती रहे तो आगे के वर्षों में गाँवों में बेहतर भवन निर्माण की संख्या निश्चित रूप से बढ़ जाएगी और एमपी बिरला और गाँव कनेक्शन के जागरुकता अभियान का उद्देश्य भी यही है कि ग्रामीण निर्माण में एक बेहतर बदलाव लाया जा सके। आमतौर पर मकान बनाने के पहले जरूरत के हिसाब से अगर नक्शा बनवाना, अच्छी निर्माण सामग्री का उपयोग, समुचित तराई जैसी कुछ बेसिक बातों का ध्यान रखते हुए मकान बनाया जाय तो निर्माण आकर्षक और बेहतर होगा। तकनीकी सलाह के लिए एमपी बिरला द्वारा टोल फ्री नंबर 18001231117 भी जारी किया गया है, जिस पर फोन करके कोई भी व्यक्ति नि:शुल्क तकनीकी सलाह ले सकता है।


     

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