एरोमा मिशन की पूरी जानकारी, जानिए कैसे सगंध फसलों की खेती से बढ़ा सकते हैं अपनी आमदनी

पिछले कई वर्षों से सीएसआईआर-सीमैप लगातार किसानों के लिए काम कर रहा था, जिसे एक मिशन बनाकर पूरे देश में लागू किया गया है और इसमें एक दर्जन से ज्यादा फसलें शामिल की गई है।

Arvind ShuklaArvind Shukla   10 Sep 2018 12:09 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
एरोमा मिशन की पूरी जानकारी, जानिए कैसे सगंध फसलों की खेती से बढ़ा सकते हैं अपनी आमदनी

लखनऊ। मेंथा, खस, पामारोजा, जिरेनियम समेत कई सगंध फसलें पिछले कुछ वर्षों में किसानों के कमाई का जरिया साबित हुई हैं। ये फसलें उन इलाकों में भी हो सकती हैं जहां पानी कम बरसता है और वहां भी जहां कई बार बाढ़ आ जाती है। कम लागत में पैदा होने वाली इन फसलों के विस्तार के लिए सरकार ने एरोमा मिशन भी शुरु किया है।

एरोमा मिशन के अंतर्गत किसानों को न सिर्फ इन पौधों की खेती की जानकारी, पौध और प्रशिक्षण दिया जाता है, बल्कि उसके प्रसंस्करण और मार्केटिंग में भी मदद की जाती है। गांव कनेक्शन ने एरोमा मिशन के मुखिया और सीमैप के निदेशक डॉ. अनिल कुमार त्रिपाठी से खास बात की है।

"एरोमा मिशन के जरिए हम किसानों को वैकल्पिक नगदी फसलें दे रहे हैं। ताकि वो अपनी आमदनी बढ़ा सकें। एरोमा मिशन का फोकस उन क्षेत्रों में है, जहां कम पानी बरसता है या फिर जमीन गैर उपजाऊ है। बुंदेलखंड से लेकर विदर्भ और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में किसान इससे अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, "प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी बताते हैं।

सीमैप ने मेंथा के जरिए लाखों नगदी फसल दी है। पिछले कई वर्षों से सीएसआईआर सीमैप लगातार किसानों के लिए काम कर रहा था, जिसे एक मिशन बनाकर पूरे देश में लागू किया गया है और इसमें एक दर्जन से ज्यादा फसलें शामिल की गई है।

ये भी पढ़ें : एलोवेरा की खेती का पूरा गणित समझिए, ज्यादा मुनाफे के लिए पत्तियां नहीं पल्प बेचें, देखें वीडियो

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की सभी प्रयोगशालाएं सीमैप की अगुवाई में किसानों के लिए एरोमा मिशन के जरिए काम करेंगी। प्रो. त्रिपाठी आगे बताते हैं, "हम लोगों ने वैज्ञानिक खोजों को किसानों की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया है। मिंट, लेमनग्रास, अश्वगंधा, आर्टीमीशिया जैसी फसलों के जरिए किसानो की आय में सुधार किया है। एरोमा मिशन के जरिए हम किसानों तक पहुंच रहे हैं जहां अभी तक किसानों तक वैज्ञानिक पद्दति उपलब्ध नहीं थी।" एरोमा मिशन के जरिए तीन साल में करीब 72 करोड़ रुपए खर्चकर करीब 6000 हेक्टेयर में किसानों को फायदा पहुंचाने वाली फसलें उगाई जाएंगी।

मिशन के जरिए न सिर्फ किसानों को बीज, पौध और प्रशिक्षण दिया जा रहा है बल्कि उसकी प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) और उसके मार्केटिंग को भी एक मंच पर लाया जा रहा है। "हम लोगों ने ये भी कोशिश की है कि किसान और इंडस्ट्री एक मंच पर आएं। किसानों को पता होना चाहिए कि उनके फसल कौन खरीद रहा है, वो इंडस्ट्री की मांग के मुताबिक खेती करें, एरोमा मिशन पर किसान और इंडस्ट्री दोनों के लिए व्यवस्था है।' प्रो. त्रिपाठी कहते हैं। एरोमा मिशन का फायदा उठाने के लिए किसानों और व्यापारियों को वेबसाइट पर पंजीकरण कराना होगा। पंजीकृत लोग आपस में संवाद भी कर सकेंगे।

खस (vetiver grass) की खेती


खस की जड़ों की रोपाई फरवरी से अक्टूबर महीने तक किसी भी समय की जा सकती है। सबसे उपयुक्त समय फरवरी और जुलाई माह होता है। खुदाई करीब 6,12 ,14 व 18 महीने बाद (प्रजाति के अनुसार) होती है। इनकी जड़ों को खोदकर कर उनकी पेराई की जाती है। एक एकड़ ख़स की खेती से करीब 6 से 8 किलो तेल मिल जाता है यानि हेक्टेयर में 15-25 किलो तक तेल मिल सकता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया में प्रति वर्ष करीब 250-300 टन तेल की मांग है,जबकि भारत में महज100-125 टन का उत्पादन हो रहा है, जिसका सीधा मतलब है कि आगे बहुत संभावनाएं हैं।

ये भी पढ़ें : गंगा किनारे के किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बनेगी खस की खेती

सीमैप द्वारा विकसित खस की किस्में

सीमैप द्वारा विकसित खस यानि वेटिवर की उन्नत किस्मों जैसे के ऐस -1 ,के ऐस -2 ,धारिणी ,केशरी,गुलाबी ,सिम-वृद्धि ,सीमैप खस -15,सीमैप खस -22 ,सीमैप खुसनालिका तथा सीमैप समृद्धि द्वारा न केवल कम समय में बल्कि उच्च गुणवत्ता तथ उद्योग की मांग के अनुरूप मूल्यवान सुगंधित तेल प्राप्त किया जा सकता है।

नींबू खास की खेती


सुगंधित घास जिसे आमतौर पर नींबूघास' के नाम से जाना जाता है। एक बारहमासी एवं बार-बार काटी जाने वाली फसल है। लेमनग्रास जैसी सुगंधित फसल न केवल पानी की कमी में अच्छी पैदावार दे सकती है बल्कि लंबे समय तक सूखे की स्थिति में भी जीवित रहने की क्षमता है। भारत में लेमनग्रास का लगभग 700 टन उत्पादन करता है, इसमें से एक बड़ी मात्रा का निर्यात भी करता है। इसकी सूखी हुई घास से तेल निकाला जाता है, और ये पत्तियां बाद में ईंधन के रुप में भी प्रयोग में लाई जा सकती हैं।

लेमनग्रास (lemon grass) की उन्नत किस्में

सीमैप की नींबूघास की किस्म "सिम-कृष्णा" भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय है। सीमैप द्वारा विकसित नींबूघास की नयी प्रजाति "सिम -शिखर" जिसमें 20 से 30 प्रतिशत अधिक तेल तथा 86 प्रतिशत सिट्रॉल सामग्री के साथ उत्पादन करने की क्षमता है। लेमनग्रास की एक और खूबी ये हैं कि इसे जंगली पशुओं से भी खतरा नहीं होता है। साथ ही ज्यादा मुनाफे के लिए किसान इसकी सहफसली खेती भी कर सकते हैं।

इसका तेल नींबू युक्त विशेष सुगंध के लिए साबुन,दवाएं,पेय पदार्थों, कीटनाशक और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोग किया जाता है। यह समशीतोष्ण के साथ ही ठंडे वातावरण में उगाया जाता है लेकिन नई किस्मों को कम पानी वाले स्थानों में भी उगाया जा सकता है। एक बार लगाई गई लेमनग्रास की 5 वर्षों तक फसल ली जा सकती हैं।

ये भी पढ़ें : सतावर, एलोवेरा, तुलसी और मेंथा खरीदने वाली कम्पनियों और कारोबारियों के नाम और नंबर

एक मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया में प्रति वर्ष करीब 1500 टन तेल का उत्पादन हो रहा है,जबकि दुनिया में प्रति वर्ष करीब 5000 टन तेल की मांग है। भारत में महज 700 टन का उत्पादन हो रहा है, जिसका सीधा मतलब है कि मांग के अनुरूप आगे बहुत संभावनाएं हैं। सीमैप द्वारा विकसित लेमनग्रासकी उन्नत किस्मों सिम कृष्णा,सिम –शिखरसे न केवल तेल का अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है बल्कि उच्च गुणवत्ता तथ उद्योग की मांग के अनुरूप मूल्यवान सुगंधित तेल प्राप्त होता है।

मिंट यानि मेंथा की खेती


भारत में पिछले दो वर्ष से मेंथा की खेती करने वाले किसान मुनाफा कमा रहे हैं। 2017-18 में मेंथा तेल का रेट अच्छा रहा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मेन्थॉल मिंट पर आधारित उत्पादों की विश्व भर में बढ़ती हुई मांग को देखते हुए इसकी उत्पादकता बढ़ाना ही एक मात्र विकल्प है। मेन्थॉल मिंट का प्रमुख रासायनिक घटक मेन्थॉल है। इससे प्राप्त तेल का उपयोग सुगन्ध के लिए, पेनबाम, कफ सीरप, माउथवाशमें होता हैतो मसालों एवं सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसकी काफी मांग रहती है। वर्तमान में इसकी खेती हेतु उत्तर भारत के मैदानी भाग जैसे उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड के तराई क्षेत्र ,पंजाब हरियाणा एवं बिहार इत्यादि उपयुक्त क्षेत्र हैं। सीमैप के निदेशक के मुताबिक पश्चिमी भारत में पानी की कमी को देखते हुए इसे बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडीशा जैसे राज्यों में लोकप्रिय किया जा रहा है।

मेन्थॉल मिंट का वनस्पतिक नाम मेंथा आर्वेनसिस तथा साधारण नाम जापानी पुदीना भी है। मेन्था की जड़ों की बुवाई अगस्त माह में नर्सरी में कर देते हैं। नर्सरी को ऊँचे स्थान में बनाते है ताकि इसे जलभराव से रोका जा सके।मेंथा की सभी प्रजातियों की सीधी बुवाई करने में 4-5 कुंटल तथा मेन्थॉल मिंट की खेती रोपण विधि द्वारा करने पर 80-100 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर सकर्स (जड़ों) की जरूरत होती है।

एक मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया में प्रति वर्ष करीब 40000 टन तेल कीमांग है,जबकि भारत में महज 25000 टन का उत्पादन हो रहा है, जिसका सीधा मतलब है कि आगे बहुत संभावनाएं हैं। सीमैप द्वारा विकसित मेन्थॉल मिंट की उन्नत किस्मों से न केवल कम समय में तेल का अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है बल्कि उच्च गुणवत्ता तथ उद्योग की मांग के अनुरूप मूल्यवान सुगंधित तेल प्राप्त होता है।

ज्यादा जानकारी के लिए सीमैप से संपर्क करें..

सीएसआर्इआर-केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) निकट कुकरैल पिकनिक स्पॉट, लखनऊ –226015 भारत

फ़ोन ::91-522-2718505,2718503,2718 फैक्स:91-522-२७१८६९५, वेब पोर्टल: http://aromamission.cimap.res.in

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.