गंगा किनारे के किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बनेगी खस की खेती
Divendra Singh 22 March 2018 11:38 AM GMT

गंगा के किनारे रहने वाले वाले किसानों को बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें खेती करने में परेशानी होती है, लेकिन जल्द ही ये किसान गंगा के किनारे बलुई जमीन में खस की खेती से मुनाफा कमाएंगे।
गंगा तटीय क्षेत्रों में खस के रोपण से मृदा सरंक्षण और प्रदूषण कम करने व अन्य आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औस फसलों की खेती द्वारा आस-पास के किसानों की आय बढ़ाने के लिए बीएचयू, वाराणसी में सीमैप द्वारा दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम का उद्धघाटन डॉ. बिजेंद्र सिंह, निदेशक, आईआईवीआर और प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी, निदेशक, सीएसआईआर-सीमैप द्वारा किया गया। इस अवसर पर मुख्य अथिति, डॉ. बिजेंद्र सिंह ने औसं और सब्जियों की सहफसली खेती को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया।
प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी, निदेशक सीएसआईआर सीमैप द्वारा गंगा मिशन में किये जा रहे सीमैप के कार्यों को बताया और औस फसलों के द्वारा किसानों की आय वृद्धि के अवसर भी किसानों को बताया। इस अवसर पर डॉ. आलोक कालरा ने सीमैप की शोध एवं विकास तथा सीएसआईआर एरोमा मिशन के बारे में उपस्थित किसानों को जानकारी दी।
गंगा के तटीय क्षेत्रों में खस रोपण के लिए आयोजित दो दिवसीय खस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतिम दिन सीमैप के वैज्ञानिक डॉ. आरके लाल ने लेमनग्रास, पामारोजा, सिट्रोनेला और तुलसी की खेती के बारे में बताया।
डॉ. राजेश वर्मा ने खस की खेती तथा उसके प्रसंस्करण के बारे में किसानों को अवगत कराया। ई. जमील अहमद ने किसानो को लेमनग्रास का प्रसंस्करण सचल इकाई द्वारा प्रदर्शित किया। कार्यक्रम में किसानों ने काफी उत्सुकता दिखाई और रुचिपूर्वक औस फसलों के बारे में जाना। इ.
खस की रोपाई मई से अगस्त महीने तक चलती है। करीब दो मीटर तक ऊंचाई वाले खस की जड़ें जमीन में 2 फुट गहराई में लगाई जाती हैं। करीब 15-18 महीने में इनकी जड़ों को खोदकर कर उनकी पेराई की जाती है। एक एकड़ ख़स की खेती से करीब 6 से 8 किलो तेल मिल जाता है यानि हेक्टेयर में 15-25 किलो तक तेल मिल सकता है। भारत सरकार एरोमा मिशन के तहत पूरे भारत में खस की खेत को बढ़ावा दे रहा है।
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