ग्रामीण अखबारों का सपना देखा था चौधरी साहब ने

Alok Singh BhadouriaAlok Singh Bhadouria   23 Dec 2018 6:19 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
ग्रामीण अखबारों का सपना देखा था चौधरी साहब नेचौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह भारत की उस पीढ़ी के नेता थे जिसने देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और जिसे आजादी मिलने के बाद नीति निर्माता के रूप में काम करने का अवसर भी मिला। चौधरी साहब आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट में मंत्री रहे। उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री के रुप में भी काम किया। जब देश में इमरजेंसी लगी तो उन्होंने इसका खुलकर विरोध किया और अंतत: देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन इतना होने के बाद भी उनके मन में यह दर्द बाकी रहा कि जिस आजाद भारत का सपना उन्होंने देखा था वह हकीकत में नहीं बदल सका। वह देश की आर्थिक स्थिति खासकर किसानों की हालत देखकर दुखी थे।

भारत के गांव, उनमें रहने वाले किसान और खेती पर आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था ये वे कुछ महत्वपूर्ण कारक थे जो उनकी राजनीति की दशा व दिशा तय करते रहे। एक किसान नेता के अलावा चौधरी साहब गंभीर लेखक भी थे। सामाजिक, आर्थिक मुद्दों पर उन्होंने ढेरों लेख लिखे, किताबें भी लिखीं। अपने लेखन के इसी क्रम में उन्होंने देश की मीडिया नीति का जिक्र करते हुए ग्रामीण पत्रकारिता की रुपरेखा प्रस्तुत की है। 'मेरी प्रतिबद्धता' नाम के इस लेख में चौधरी साहब लिखते हैं :

सूचना-तंत्र को बहुत ज्यादा सरल बनाना होगा। हमारे पास ग्रामीण वार्ताकारों की एक ऐसी संस्था अवश्य होनी चाहिए, जो सिर्फ वस्तुगत सूचना के प्रबंधक का काम कर सके एवं लोगों को उनके अनुभवों को उनके ही लिए संक्षेपण में मदद दे सके। हम लोगों को बड़ी संख्या में ग्रामीण नाट्यशालाओं, वाचनालयों एवं पुस्तकालयों के गठन के बारे में भी विचार करना चाहिए।

यह भी देखें : किसान दिवस विशेष- चलिए एक ऐसे राज्य की सैर पर जहां पुरुष किसानों को मात दे रहीं हैं महिला किसान

हमें बड़ी संख्या में ट्रांसमीटरों के बारे में सोचना होगा, जिसमें से प्रत्येक की पहुंच कुछ लाख लोगों से ज्यादा की न हो। स्थानीय लोगों के सांस्कृतिक संप्रेषण की गुंजाइश पर ज्यादा जोर देना होगा। जहां तक संभव हो, जन-संस्थाओं का ऐसे ट्रांसमीटरों पर नियंत्रण होना चाहिए। हमें गैर-परंपरागत तरीके से सोचना है। उसी तरह, हमें ऐसे बहुत से ग्रामीण समाचार-पत्रों को निकालने की योजना भी बनानी होगी, जिनका संचालन लोग स्वयं करेंगे। सरकारी मीडिया या बड़े व्यापारिक महानगरीय स्वामित्व वाले निजी मीडिया द्वारा लोगों के दिमाग को नियंत्रित करने की प्रणाली को खत्म करना होगा।

यह सब कहते हुए भी मैं इस तथ्य पर जोर देना चाहता हूं कि इन सब खामियों के बावजूद प्रेस को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखना होगा। सरकारी वितरण पर इसकी निर्भरता को खत्म करना होगा।

यहां तक कि, अगर प्रेस मेरे एवं मेरी नीतियों के खिलाफ भी हो, जैसा अमूमन वह है, तो भी मैं प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने में विश्वास नहीं रखता। प्रेस ने गांधी जी के युग में जो क्रांतिकारी भूमिका अदा की थी, उसी भूमिका के लिए उसे हमें फिर से तैयार करना होगा।'

यह भी देखें : किसान दिवस विशेष : सरकारों के सौतेले व्यवहार से गुस्से में देश का किसान

चौधरी साहब का यह लेख किसान ट्रस्ट की पत्रिका रियल इंडिया में 1979 में छपा था। लगभग 40 वर्षों बाद भी इसमें लिखे उनके विचार प्रासंगिक हैं। आज भी देश में ग्रामीण पत्रकारिता के नाम पर बहुत कम गंभीर प्रयास हुए हैं। पर अब उम्मीद है कि इंटरनेट की सुलभता की बदौलत गांवों और किसानों को केंद्र में रखकर खुद गांवों से ही ग्रामीण पत्रकारिता जोर पकड़ेगी।

यह भी देखें : किसान दिवस पर योगी सरकार करेगी 6,538 किसानों को सम्मानित

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.