किसान दिवस विशेष : सरकारों के सौतेले व्यवहार से गुस्से में देश का किसान

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किसान दिवस विशेष : सरकारों के सौतेले व्यवहार से गुस्से में देश का किसान

वर्ष 2017 में चलते रहे देशभर किसान आंदोलन, 2018 में भी तैयारी।

फसल का लाभकारी मूल्य, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने, गन्ने का बकाया भुगतान और आलू-प्याज और टमाटर जैसी फसलों की कीमतों को लेकर किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं

अश्वनी कुमार निगम/ अरविंद शुक्ला

लखनऊ। एक दिन बाद ही किसान मसीहा और भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन को इस बार भी किसान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। संभव है, किसान के नाम पर केंद्र और राज्य सरकारें बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर सकती हैं, लेकिन दूसरी तरफ किसानों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है।

फसल का लाभकारी मूल्य, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने, गन्ने का बकाया भुगतान और आलू-प्याज और टमाटर जैसी फसलों की कीमतों को लेकर किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं। वर्ष 2017 किसानों आंदोलनों के हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण रहा है। मंदसौर कांड के बाद देश के 22 राज्यों के 187 संगठनों ने मिलकर दिल्ली में हुंकार भरी। गुजरात के विधानसभा चुनाव में ग्रामीण इलाकों में बीजेपी को मिली हार के लिए भी किसान नेता, किसानों की नाराजगी को वजह बता रहे हैं।

करीब 86 लाख किसानों का 36 हजार करोड़ रुपए माफ करने वाले उत्तर प्रदेश में भी किसानों में नाराजगी है। गन्ने का बकाया भुगतान को लेकर प्रदेश के कई जिलों के किसानों ने बृहस्पतिवार को हजारों किसानों ने गन्ना संस्थान में हुंकार भरी। गोरखपुर जिले के जंगल कौड़िया ब्लाक के कोल्हुआ गांव के गन्ना किसान महेश्वर सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, '' 20 साल से अपने गन्ने की बकाया रकम को चीनी मिल से लेने के लिए भटक रहा हूं। गोरखपुर जिले सरदारनगर स्थित सरैया चीनी मिल पर मेरा साढ़े तीन लाख का बकाया है लेकिन चीनी मिल मेरा पैसा नहीं दे रही है।'' हालांकि इसे प्रदर्शन से एक दिन पहले ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों के एक कार्यक्रम में कहा था कि सरकार गन्ना किसानों से किया गया अपना वादा पूरा कर रही है और बकाया का भुगतान हो गया है।

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यूपी से सटे मध्य प्रदेश में भी एक और आंदोलन की सुगबुगाहट शुरु हो गई है। एमपी में अगले साल चुनाव हैं और सितंबर में सड़कों पर उतरने वाले एक किसान संगठन ने शिवराज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया है। किसान संपूर्ण कर्जमाफी की मांग कर हैं।

किसानों आंदोलनों को लेकर राजस्थान की रेत सर्दियों में तपती नजर आ रही हैं। बीकानेर में मूंगफली किसान आंदोलन कर चुके हैं। तो सीकर पार्ट-2 आंदोलन की तैयारियां जोरों पर हैं। सितंबर महीने में ही सीकर में आंदोलन कर रहे किसानों से वसुंधरा सरकार ने 50-50 हजार कर्जमाफी का वादा किया था, लेकिन 3 महीने बाद वो धरातल पर नहीं उतरा।

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किसानों का कहना है वादा पूरा न हुआ आंदोलन होगा। अखिल भारतीय किसान सभा फरवरी में जयपुर कूच की तैयारी में है। किसानों का ये गुस्सा इसलिए भी सरकार के लिए अलार्म हैं क्योंकि वसुंधरा सरकार का ये चौथा साल है और 2018 में चुनाव है। चार साल बेमिसाल नाम से राजे सरकार के मंत्री जगह-जगह कार्यक्रम कर अपनी उपल्बधियां गिना रहे हैं लेकिन किसान कर्जमाफी पर अड़े हैं।

किसानों में नाराजगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हैं। नरेंद्र मोदी ने बरेली की जनसभा में 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए किसान सवाल कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन भानू गुट के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह कहते हैं, '' एक तरफ किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात हो रही हैं, वहीं दूसरी तरह खेती की लागत बढ़ती जा रही है। कर्जमाफी के नाम पर यूपी में मजाक हुआ है।’

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ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश में साढ़े तीन लाख किसानों की आत्महत्या के बाद देशभर किसान गुस्से में है। तमिलनाडु से लेकर महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान,पंजाब और उत्तर सहित असम में किसान संघर्ष कर रहे हैं। कर्जमाफी को लेकर पिछले वर्ष सबसे ज्यादा चर्चा तमिलनाडु के नरमुंड किसानों के दिल्ली प्रदर्शन से उठी।

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सब्जियों, दूध और अनाज के लाभकारी मूल्य को लेकर प्रदर्शन हुए लेकिन चिंगारी का काम मंदसौर की घटना ने किया। जिसके बाद बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले 187 किसान संगठनों ने मिलकर देशव्यापी आंदोलन शुरू किया। पांच चरणों में देश के 22राज्यों में किसानों के साथ 500 सभाएं करने के उनके दुख-दर्द को जाना गया। 19 से लेकर 20 नवंबर तक अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने संसद मार्ग नई दिल्ली पर दो दिवसीय किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया, जिसमें देशभर के लगभग 50 हजार किसानों से हिस्सा लिया।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, '' आज देश में सबसे ज्यादा शोषित और पीड़ित किसान हैं। ऐसे में किसान अप चुप नहीं बैठेगा बल्कि सरकारों को सबक सिखाएगा। गुजरात चुनाव से सरकारों को सबक लेना चाहिए। गुजरात के किसानों ने बीजेपी सरकार को नकार दिया है।''

उन्होंने कहा कि किसान को कर्ज़े से मुक्त कराने, उपज को लाभकारी मूल्य दिलाने और किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए वह लोग आंदोलन तेज कर रहे हैं। चौधरी चरण सिंह के जीवन से प्रेऱणा लेते हुए किसान मुक्ति अभियान की शुरूआत की गई है।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने वाले गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भी किसानों की आवाज़ उठाएंगे। 23 दिसंबर को किसान दिवस पर अन्ना दिल्ली से आंदोलन करेंगे। 24 दिसंबर को वो यूपी के संभल भी जाएंगे।

किसानों की कब्रगाह बनते जा रहे महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले अन्ना हजारे ने पिछले दिनों अपने इस आंदोलन की रूपरेखा बताते हुए मीडिया से कहा था, “22 सालों में 12 लाख किसान देशभर में आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन न तो पिछली सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया और न अब की सरकार कोई ऐसी नीति बना रही है। सरकारों से सिर्फ बड़े उद्योगपतियों की सुनती हैं, इसलिए किसान की दुर्दशा में है और अब गुस्सा निकल रहा है।” वहीं हरियाणा से किसानों का एक बड़ा गुट संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली कूच करने की तैयारी में है।

                  

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