चिपको आंदोलन: जब सरकार को मजबूर होकर वनों की रक्षा के लिए बनाना पड़ा था कानून

Kushal MishraKushal Mishra   26 March 2018 1:26 PM GMT

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चिपको आंदोलन: जब सरकार को मजबूर होकर वनों की रक्षा के लिए बनाना पड़ा था कानूनफोटो साभार: इंटरनेट

आज 26 मार्च, वह यादगार दिन, जब भारत में चिपको आंदोलन शुरू हुआ था, यह एक ऐसा आंदोलन था, जिसमें केंद्र सरकार को लाखों लोगों के सामने झुकने को मजबूर होना पड़ा था और इसके बाद सरकार ने न सिर्फ वनों की रक्षा के लिए कानून बनाया, बल्कि पर्यावरण मंत्रालय का भी गठन किया।

आज चिपको आंदोलन की 45वीं सालगिरह पर गूगल ने डूडल बनाकर इस आंदोलन की यादें ताजा की हैं। आखिर क्या था यह चिपको आंदोलन, आइये आपको इस आंदोलन के बारे में कई रोचक जानकारियां बताते हैं…

  • चिपको आंदोलन सन् 1973 में शुरू हुआ था और यह आंदोलन पेड़ों की रक्षा के लिए किया गया था। इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के चमोली जिले से हुई थी, जो अब उत्तराखंड राज्य में है। तब यहां के लोगों ने वनों में ठेकेदारों द्वारा पेड़ों की कटाई के विरोध में यह आंदोलन शुरू किया था।
  • लोगों का मानना था कि पेड़ उनके जीवन का आधार हैं। ऐसे में जंगलों में पेड़ों की कटाई के खिलाफ लोग पेड़ों से चिपक गए थे और उनका कहना था कि पेड़ों के साथ हमें भी काट दिया जाए। बड़ी बात यह थी कि बिना हिंसा और उपद्रव के यह आंदोलन चलाया गया था।
  • चमोली से शुरू हुआ चिपको आंदोलन धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में फैल गया और लोग पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से लिपट गए थे। बड़ी बात यह भी थी कि इस आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भागीदारी की थी। इस आंदोलन का नेतृत्व भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी और चंडीप्रसाद भट्ट किया था।
  • उस दौरान वनों को बचाने के लिए लोगों ने नारा लगाया था…

“क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार।“

  • धीरे-धीरे यह आंदोलन और राज्यों में भी फैलने लगा और बाद यह आंदोलन बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य भारत के विंध्य तक फैल गया। बड़ी संख्या में लोगों ने पेड़ों से चिपक कर वनों की रक्षा के लिए आंदोलन की भूमिका निभाई।
  • इस आंदोलन ने देश में पर्यावरण रक्षा को एक बड़ा मुद्दा बना दिया और इस आंदोलन को बड़ी सफलता तब मिली जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालय के वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों तक प्रतिबंध लगा दिया था।

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  • इसके बावजूद देश में धीरे-धीरे चिपको आंदोलन दूसरे राज्यों में फैलने लगा और पर्यावरण रक्षा को बड़ा मुद्दा बना दिया। इसे बाद सन् 1989 में इस आंदोलन को सम्यक जीविका पुरस्कार (Right Livilihood Award) से सम्मानित किया गया।
  • इस आंदोलन के बाद केंद्र सरकार को सन् 1980 में वन संरक्षण अधिनियम पारित कर कानून बनाना पड़ा। इतना ही नहीं, पर्यावरण मंत्रालय का गठन हुआ, जो चिपको आंदोलन से ही संभव हो सका।
  • आज 26 मार्च को चिपको आंदोलन को याद कर डूडल बनाया और उन लोगों को सलाम किया जो इस आंदोलन में शामिल होकर पर्यावरण रक्षा के लिए आगे आए।

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  • जब वर्ष 1974 में उत्तराखंड के रैणी गांव के जंगल के लगभग ढाई हजार पेड़ों को काटने की नीलामी की गई, तब गौरा देवी ने इस आंदोलन का नेतृत्व कर बड़ी संख्या में महिलाओं को जोड़ा और पेड़ों से चिपक कर पेड़ों की कटाई विरोध किया था। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार अपने फैसले में अड़े रहे, मगर अंत में गौरा देवी के नेतृत्व में इस आंदोलन के सामने हार माननी पड़ी और रैणी गांव का जंगल नहीं काटा गया।

गौरा देवी और सुंदरलाल बहुगुणा।

  • वहीं आंदोलन का नेतृत्व करने वाले सुंदरलाल बहुगुणा चिपको आंदोलन के बाद दुनिया भर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हुए। आंदोलन के बाद उन्हें अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर संस्था ने 1980 में सम्मानित किया। इसके अलावा भी पर्यावरण रक्षा के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया।

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