वीडियो : सकट चौथ पर एक बेटी का माँ के नाम ख़त
Kanchan Pant 24 Jan 2019 4:48 AM GMT
वुमन इंपावरमेंट, औरतों की बराबरी की बात हम सब करते हैं। बड़े-बड़े भाषण, गोष्ठियां, आंदोलन... ये अपनी जगह ठीक है, लेकिन क्या हम सच में औरतों की ज़िंदगी को समझते हैं ? उनके छोटे-छोटे संघर्ष, छोटी छोटी मुश्किलें, जो अक्सर हमें मुद्दे लगते भी नहीं, बड़े-बड़े मुद्दों के पीछे दुबके हुए ऐसे ही छोटे-छोटे संघर्ष, ज़रूरतों, ख़्वाहिशों, नाइंसाफियों की कहानी है 'चिट्ठियां'। आज पढ़िए गाँव कनेक्शन की इस विशेष सिरीज़ का पहला भाग-
डियर मां,
जिस वक्त मैं आपको ये ख़त लिख रही हूं, आप रसोई में पकवान बना रही होंगी, या पूजा की तैयारी कर रही होंगी। आखिर सकट चौथ है आज...कितने सारे काम होते हैं करने को! मैं जानती हूं आपके पास फुर्सत नहीं है, लेकिन आज पूजा में बैठने से पहले प्लीज़ एक बार मेरा ये ख़त पढ़िएगा।
भैया के लिए ये व्रत रखा है ना आपने? जैसे हर मां अपने बेटों के लिए रखती है। उनके पैदा होने से पहले, इसलिए ताकि वो पैदा हों, और उसके बाद इसलिए, ताकि वो सलामत रहें। मैं भी चाहती हूं कि मेरा भाई सलामत रहे...वो इन व्रतों, इन पूजाओं से होगा या नहीं वो अलग बात है...पर मैं दिल से उसका भला चाहती हूं, जैसे आप मेरा चाहती हैं। मैं जानती हूं, कि आप मुझसे भी उतना ही प्यार करती होंगी, जितना भैया से। कोई शिकायत नहीं है, गुस्सा भी नहीं है, बस जानना चाहती हूं, कि फिर इन व्रतों, इन पूजाओं, इन त्योहारों से मैं क्यों ग़ायब हो जाती हूं ?
पूजा के बाद, प्रसाद में काले तिल के लड्डू और शकरकंद भैया के साथ मुझे भी मिलता है, लेकिन वो प्रसाद गले में कई बार अटक जाता है, क्योंकि मैं जानती हूं, कि वो मेरे लिए नहीं बनाया गया है। ऐसा क्यों है ? इस पूजा में मेरा अधिकार क्यों नहीं हैं ? ये प्रसाद मेरे नाम का क्यों नहीं है ? सलामती की ये दुआ मेरे लिए क्यों नहीं है?
अजीब लगता है, दिल दुखता है, जब मेरे सामने भाई के नाम की पूजा होती है और मैं कोने में खड़ी देखती रहती हूं, या पूजा की तैयारियों में आपकी मदद करती रहती हूं। तब सोचती हूं, कि काश मेरी सलामती की, मेरी ज़िंदगी की भी आपके लिए उतनी ही अहमियत होती.... मुझे कम से कम अपने घर में तो बराबरी मिलती, कम से कम आप तो भाई के साथ मेरे लिए भी व्रत करतीं...बाई द वे, ये व्रत हमेशा आप ही क्यों करती हैं? भाई के लिए भी, पापा के लिए भी परिवार के लिए भी? कभी सोचा है, मेरी तरह आपके लिए भी कोई व्रत नहीं रखता...आपकी मां ने भी नहीं रखा होगा।
मैं नहीं जानती, कि ये परंपरा शुरू करने वालों की क्या मजबूरी थी, पर परंपराएं बदली जा सकती हैं, ऐसी परंपराएं बदली जानी चाहिए...और यकीन मानिए आप इन्हें बदल सकती हैं। तो, आप बदलेंगी ना ये परंपरा मां ? इस सकट चौथ में एक लड्डू मेरे नाम का भी बनाएंगी ना?
आपकी
बेटी
- कंचन पंत लेखिका हैं, पत्रकार हैं और कंटेंट प्रोजेक्ट में क्रिएटिव हेड हैं।
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