बिना लॉकडाउन के नियम तोड़े मजदूरों तक मदद पहुंचा रहे दिल्ली के युवा
लॉकडाउन में फंसे ऐसे मजदूर और गरीब लोगों के लिए ज़मीनी स्तर पर खाने-पीने का इंतज़ाम कर पाना इतना आसान नहीं था।
Kushal Mishra 22 April 2020 9:51 AM GMT
देश की राजधानी नई दिल्ली के कुछ युवाओं ने मिलकर एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया। इस ग्रुप का मकसद है कि लॉकडाउन में कोई भी मजदूर भूखे पेट न रहे। खास बात यह है कि ये युवा एक-दूसरे से कभी मिले भी नहीं, लेकिन ये सब मिलकर मजदूरों की मदद कर रहे हैं।
दिल्ली के ओखला में रहकर समाज शास्त्र में परास्नातक की पढ़ाई कर रहे सुहैल रहमान भी इन्हीं युवाओं में से एक हैं। वे 'गांव कनेक्शन' को बताते हैं, "मेरे इलाके में कई मजदूर वर्ग के लोग हैं जो लॉकडाउन में बुरी तरह फंस चुके थे। कई मजदूर तो सिर्फ पानी पीकर गुजारा कर रहे थे।"
"इनके हालात देखकर तब मैंने इनके लिए सोशल मीडिया में लिखना शुरू किया, कुछ लोगों ने मदद की, तो हमने कुछ मजदूरों तक राशन पहुंचाया, मगर इतना काफी नहीं था, हमारे पास पैसों की कमी थी, तो मुझे सोशल मीडिया में केटो आर्गेनाइजेशन के बारे में मालूम चला और वहां मैंने अप्लाई कर लोगों से दिहाड़ी मजदूरों की मदद के लिए पैसा भेजने की अपील की," सुहैल ने बताया।
'जहां चाह, वहां राह' के साथ सुहैल का यह तरीका काम कर गया। लोगों ने गरीबों और मजदूरों की मदद के लिए सुहैल के एकाउंट में पैसे भेजने शुरू कर दिए। मगर एक समस्या यह भी थी कि लॉकडाउन में दूसरे इलाकों में फंसे मजदूरों तक राशन कैसे पहुंचाया जाए?
लॉकडाउन में फंसे ऐसे मजदूर और गरीब लोगों के लिए ज़मीनी स्तर पर खाने-पीने का इंतज़ाम कर पाना इतना आसान नहीं था।
सुहैल बताते हैं, "इस बीच मैंने अपने कॉलेज के कुछ छात्रों को एक व्हाट्सऐप ग्रुप में जोड़ा, तब उनसे भी एक से दो और दो से चार लोग जुड़ते चले गए, जल्द ही दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्र से कई लोग जुड़ गए, जो उन जगहों पर फंसे मजदूरों की जानकारी देते थे।"
इस बीच सुहैल और साथ में जुड़े लोगों ने स्थानीय गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से भी संपर्क किया और लॉकडाउन में फंसे इन बेसहारा मजदूरों के लिए साथ मिलकर काम करने पर जोर दिया। ये सभी व्हाट्स ग्रुप पर एक्टिव हैं।
प्रशासन की ओर से दिल्ली में जगह-जगह गरीबों और मजदूरों को बांटे जा रहे राशन वितरण केंद्रों की लिस्ट तैयार की गई। साथ ही प्रशासन के साथ तालमेल बैठाकर मजदूरों तक सूखा राशन पहुंचाने के लिए अलग-अलग इलाकों के लोगों को एक-एक एंट्री पास की सुविधा देने की शुरुआत हुई।
सुहैल बताते हैं, "तब हमें ज्यादा राशन की जरूरत थी तो हमने थोक व्यापारियों से फ़ोन पर संपर्क किया। तब हमें ज्यादा राशन मिल सका और हमने घर में ही राशन की किट तैयार करनी शुरू की।"
सुहैल ने बताया, "इस किट में 5 किलो आटा, 2 किलो चावल, 2 किलो चीनी, एक-एक किलो दाल और नमक, साथ में हल्दी, धनिया, सोंठ, घी, मिर्च और बिस्किट शामिल था, जिसे मजदूरों को बांटा गया। सिर्फ दिल्ली के ओखला और यमुना विहार इलाकों में मजदूरों को 500 किट सूखा राशन बांटा गया।"
दिल्ली में इसी ग्रुप से जुड़े एक और युवा अबू सुफियान मार्केट कंसलटेंट हैं और पुरानी दिल्ली में बच्चों की शिक्षा को लेकर काम कर रही संस्था दिल्ली युवा वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य हैं। इस संस्था के साथ मिलकर वह लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों को राशन पहुंचाने का अभियान चला रहे हैं और इस व्हाट्सऐप ग्रुप के सक्रिय सदस्यों में एक हैं।
अबू सुफियान 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "मजदूरों तक राशन पहुंचाने के लिए हमारे सामने दो चुनौतियां थीं। पहला, हमारे पास पैसों की कमी थी और दूसरा, बंदी में हम दिल्ली के हर इलाके के मजदूरों तक राशन पहुंचाएंगे कैसे?"
"फण्ड की कमी को पूरा करने के लिए हमने सोशल मीडिया में आवर डेमोक्रेसी के जरिये लोगों से आर्थिक मदद करने की अपील की जहां हमें लोगों का बड़ा सहयोग मिला। वहीं व्हाट्सऐप ग्रुप में सभी के साथ जुड़ने से दिल्ली के लगभग सभी इलाकों में हमें वालंटियर्स (स्वयंसेवक) मिल गए, इससे हमें वहां परेशान मजदूरों और गरीबों के बारे में सूचना मिलने लगी," सुफियान बताते हैं।
इस व्हाट्सऐप ग्रुप में अब तक 160 वालंटियर्स और 20 स्थानीय एनजीओ के सदस्य जुड़े हुए हैं और लॉकडाउन में लगातार मजदूरों की मदद को लेकर काम कर रहे हैं।
सुफियान ने बताया, "मजदूरों तक राशन पहुंचाने के लिए हमने अपने वालंटियर्स के जरिये अलग-अलग इलाकों में किराने के दुकानदारों से फ़ोन पर संपर्क किया और उनसे राशन के किट तैयार कराए। उसका भुगतान भी हमने उन्हें गूगल पे और पेटीएम से किया। उसके बाद इलाके में रह रहे वालंटियर के जरिये पुलिस की मदद लेकर हमने गरीबों और मजदूरों तक राशन पहुंचाया।"
सुफियान बताते हैं, "कई ऐसे इलाके भी रहे जहां हमने मजदूरों को पर्चियां उपलब्ध कराईं, इस पर्ची को दिखा कर वे पास की किराने की दुकान से राशन ले सकते थे और हमारा वालंटियर दुकानदार को नकद भुगतान देता था। इस तरह हमने पुरानी दिल्ली भी कवर किया और पूरी दिल्ली में 1 लाख 20 हज़ार से ज्यादा लोगों को राशन बांटा।"
इतनी मदद के बावजूद बड़ी संख्या में मजदूर ऐसे भी थे, जिन मजदूरों के पास मोबाइल रिचार्ज करने का भी पैसा नहीं था, बच्चों के लिए दूध और किसी की दवाई के पैसों का इंतज़ाम करना इनके लिए मुमकिन नहीं था। इन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी।
सुफियान ने बताया, "पहले हम सिर्फ राशन ही पहुंचा रहे थे, मगर लॉकडाउन बढ़ने के बाद मजदूरों के पास नकद पैसों की मुश्किलें सामने आ रही थीं। हमारे पास कई कॉल्स आने लगीं। इसके बाद जो हमें फण्ड मिला, उसमें से हमने जरूरतमंद मजदूरों को एक-एक हज़ार रुपये देने शुरू किए। कई इलाके हॉटस्पॉट बन चुके थे, वहां हमने मजदूरों से एकाउंट नंबर मांगा और उन्हें रुपये भेजे।"
गरीबों की मदद पहुंचाने का यह कारवां दूसरे लॉकडाउन में सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित नहीं रहा। इन लोगों के पास कई कॉल्स दूसरे राज्यों से भी आईं। मगर कोई वालंटियर न होने से उनके लिए वहां मजदूरों तक राशन पहुंचाना संभव नहीं था।
अबू सुफियान बताते हैं, "हमारे पास अमरोहा, अलीगढ़, भोपाल, नागड़ा से भी मजदूरों के फ़ोन आये, मगर हमारे पास वहां कोई वालंटियर नहीं था, फिर भी हमने वहां ऐसे व्यक्ति को ढूढ़ने की कोशिश की जिसके पास एंट्री पास था, इस तरह हमने उन्हें ऑनलाइन पेमेंट करके वहां मजदूरों तक राशन पहुंचाया।"
लॉकडाउन में कोई भूखे पेट न सोए, यह कोशिश अभी भी जारी है। सुफियान और सुहैल रहमान, दोनों को मजदूरों की मदद के लिए अब तक 35 लाख रुपये से ज्यादा आर्थिक मदद लोगों से मिली है जिस पर वे पूरी पारदर्शिता बरतने की कोशिश कर रहे हैं। मगर इसके बावजूद उन्हें और फण्ड की जरूरत है और वे लोगों से लगातार मदद करने की अपील कर रहे हैं।
Hello, We are providing free food supply to daily wagers but we are running out of funds please help...... https://t.co/2Q0c91LsPs
— aapindianhain (@aapindianhain) April 17, 2020
सुफियान कहते हैं, "हमारे पास अभी भी हर दिन 1000 किट की मांग आ रही है, मदद के लिए अलग-अलग जगह से कॉल्स आ रही हैं। हम सभी यह कोशिश कर रहे हैं कि लॉकडाउन में किसी को कम से कम खाने-पीने की कोई दिक्कत न हो।"
मजदूरों की मदद का यह कारवां लगातार जारी है। सुफियान कहते हैं, "जब लॉकडाउन खत्म होगा तो उन सभी लागों से मिलूंगा जो ऐसे समय में साथ मिलकर हमारे साथ काम करते रहे। मैं उन्हें नहीं जानता था, न कभी देखा, उम्मीद है हम सबकी मुलाक़ात जल्द ही होगी।"
यह भी पढ़ें :
More Stories