साठा धान की खेती और भूजल के गिरते स्‍तर से सूख रही गोमती

उत्‍तर प्रदेश के आठ जिलों से होकर बहने वाली गोमती का अस्‍तित्‍व संकट में क्‍यों है, इसे जानने के लिए गांव कनेक्‍शन की टीम ने नदी के उद्गम स्‍थल (माधव टांडा, पीलीभीत) से लेकर लखनऊ तक करीब 425 किमी की बाइक यात्रा की। यह इस सीरीज की चौथी रिपोर्ट है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   18 March 2019 7:04 AM GMT

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साठा धान की खेती और भूजल के गिरते स्‍तर से सूख रही गोमती

रणविजय स‍िंह/दया सागर

''लोगों को लग रहा है जमीन में बहुत पानी है तो साठा धान की खेती के लिए अंधाधुन निकालते जा रहे हैं। ऐसा ही रहा तो यहां बुंदेलखंड से हालात हो जाएंगे।'' यह बात पीलीभीत के पंचखेड़ा गांव के रहने वाले मंजीत सिंह (45 साल) कहते हैं। मंजीत के गांव से होकर गोमती नदी गुजरी है। वो याद करते हुए कहते हैं, ''मेरे बचपन में कभी गोमती खूब चौड़ी हुआ करती थी, लेकिन आज एक पत्‍ली सी धारा में नजर आती है।'' नदी के इस बुरे हाल के लिए मंजीत साठा धान की खेती को एक वजह मानते हैं।

क्‍या है साठा धान?

मंजीत की बात से सवाल उठता है कि आखिर साठा धान है क्‍या और इससे गोमती को कैसे खतरा है? इन सवालों का जवाब कृषि विज्ञान केंद्र पीलीभीत के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस ढाका देते हैं। वो बताते हैं, ''साठा धान के दो-तीन नाम हैं। पहला तो इसे गर्मी वाला धान कहते हैं, कुछ लोग इसे चैनी धान कहते हैं यानी चाइनीज, कुछ लोग इसे साठा धान कहते हैं, क्‍योंकि इसकी कुछ वैरायटी 60 दिन में तैयार होती है। इसके अलावा यह धान दो तरह का होता है, एक तो लॉन्‍ग डोरेशन (लंबे वक्‍त) वाला, दूसरा शॉर्ट डोरेशन (कम वक्‍त) वाला। लॉन्‍ग डोरेशन वाला फरवरी-मार्च में लगता है। दूसरा गेहूं काटने के बाद अप्रैल में लगता है।

कृषि विज्ञान केंद्र पीलीभीत के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस ढाका।

डॉ. एसएस ढाका कहते हैं, ''धान की खेती को जाना जाता है कि इसमें पानी की खपत बहुत होती है। इसका जो मेन सीजन है वो खरीफ है। जून-जुलाई में लगाया जाता है और अक्‍टूबर में कटता है। वो सीजन मानसून का होता है, ऐसे में सिंचाई की इतनी जरूरत नहीं होती। लेकिन जब साठा धान फरवरी-मार्च में लगाया जाता है तो यह बिल्‍कुल सूखा मौसम होता है, बारिश की एक भी बूंद नहीं होती, लेकिन धान को पानी तो चाहिए।''


''पीलीभीत तराई इलाका है ऐसे में यहां भूजल अच्‍छा है। किसान क्‍या करता है कि साठा धान की खेती के लिए पूरा का पूरा पानी भूजल से लेता है, क्‍योंकि यही उनके पास उपलब्‍ध है। अब इतनी ज्‍यादा मात्रा में पानी जमीन से निकाला जाता है तो इसका असर तो होगा ही। क्‍योंकि भूगर्भ जल रिचार्ज नहीं हो रहा, कोई बारिश नहीं हो रही, कुछ नहीं है जो पानी अंदर जाए। ऐसे में भूजल का स्‍तर गिरता है।''- डॉ. एसएस ढाका कहते हैं

भूजल से कैसे जुड़ी है गोमती?

भूजल का स्‍तर गिरने से गोमती को कैसे खतरा है यह बात समझाते हुए भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) के पूर्व निदेशक वीके जोशी कहते हैं, ''गंगा-जमुना जैसी नदियां बर्फ के पिघलने से बनती हैं, लेकिन गोमती नदी भूजल द्वारा पोषित नदी है। पीलीभीत में जहां से इसका उद्गम (गोमत ताल, माधवटांडा) हुआ है उसके आगे जाने पर आप देखेंग कि छोटे-छोटे ताल हैं, जिससे पानी जमीन में जाता है और फिर उसी से नदी का उद्गम होता है। ऐसे में नदी भूजल से सीधे तौर पर जुड़ी है। भूजल का स्‍तर गिरेगा तो नदी पर भी असर होगा।''

मंजीत स‍ि‍ंह।

पीलीभीत के पंचखेड़ा गांव के रहने वाले मंजीत सिंह भी साठा धान की खेती से गोमती नदी पर हो रहे इसी असर की ओर इशारा करते हैं। वो चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, ''साठा धान लगता रहा तो आने वाले समय में बहुत मुश्‍किल हो सकती है। पीलीभीत में तो साठा धान का बहुत क्रेज हैं। किसान भी क्‍या करे, वो कर्ज में दबा हुआ है तो सबकी देखा देखी गर्मियों में तीसरी फसल के तौर पर साठा धान लगा रहा है। उसे लगता है इसी से कुछ कमाई हो जाएगी, लेकिन वो किस कीमत पर यह कमाई कर रहा है इसका अंदाजा अभी उसे नहीं है।''

''1980-85 में नदी में खूब पानी था। उस वक्‍त नदी चौड़ी होती थी। हम अपने जानवरों को नदी के किनारे चराने ले जाते थे। लेकिन फिर 90 के दशक में साठा धान की खेती होना शुरू हुई। इसके बाद से नदी सिकुड़ती ही जा रही है।'' - मंजीत बताते हैं

मंजीत कहते हैं, ''ग्राउंड वॉटर किस तेजी से नीचे जा रहा है यह आप ऐसे समझ सकते हैं कि 1990 में 3-4 फीट पर पानी आ जाता था, अब यही 14-15 फीट पर आता है। पहले किसान 15 फीट पर बोरिंग कराता तो अच्‍छा पानी मिलता था, अब 25 और उससे भी ज्‍यादा गहरे बोरवेल लग रहे हैं। इससे पता चलता है कि पानी कितनी तेजी से नीचे जा रहा है। साठा धान की खेती को तो अपराध की श्रेणी में रखना चाहिए।''

पीलीभीत के खेतों में साठा धान लगने शुरू हो गए हैं।

मंजीत बताते हैं, ''साठा धान पंजाब में बैन है। यूपी में यह पीलीभीत, शाहजहांपुर, रामपुर और लखीमपुर में ज्‍यादा लगाया जाता है। 2016 में तो शाहजहांपुर के डीएम ने इसकी खेती पर रोक भी लगाई थी। इसके बाद मैंने भी मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री तक को इस बारे में पत्र लिखा। साथ ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में भी याचिका लगाई, लेकिन इस ओर किसी का ध्‍यान नहीं गया।''

मंजीत के साथी पुष्‍पजीत सिंह भी क्षेत्र में साठा धान की खेती पर रोक लगाने के लिए काम करते रहे हैं। वो बताते हैं, ''यह अवैध फसल है और इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है। जब हमने एनजीटी में याचिका दायर की थी तो उनको लगा हम धान की खेती करने से मना कर रहे हैं, बल्‍कि ऐसा नहीं है, हम बस यह चाह रहे थे कि गर्मी के सीजन में ऐसी फसल न लगे जिसमें भूजल का इतना अधिक दोहन होता हो।'' मंजीत निराश होकर कहते हैं, ''यहां इस फसल पर रोक नहीं लग सकती, क्‍योंकि यह फायदे का सौदा है। किसी को नहीं पड़ी कि पर्यावरण को क्‍या नुकसान हो रहा है, गोमती नदी को क्‍या नुकसान हो रहा है। सब अपने फायदे की सोच रहे हैं। साठा धान की वजह से ही क्षेत्र में राइस मिल की चेन है, पेस्‍टीसाइड की चेन है और किसानों को भी फौरी मुनाफा हो रहा है तो दूर के नुकसान के बारे में कोई सोच ही नहीं पा रहा।''


मंजीत कहते हैं, ''भूजल दोहन की वजह नदी सिकुड़ती गई और इसके किनारों पर अतिक्रमण बढ़ता गया। अब तो बहुत बड़े स्‍तर पर अतिक्रमण हो गया है। लोगों ने नदी को पाट दिया है। अभी हाल ही में लौहकाई गांव (पीलीभीत) में नदी भी चकबंदी में आ गई। यह सीधे-सीधे नदी के अस्‍तित्‍व को खत्‍म करने जैसा है।'' मंजीत बताते हैं, ''कुछ महीने पहले लखनऊ से एक टीम आई थी नदी को देखने, उसे नदी मिल ही नहीं रही थी, यह तो हाल है। भूजल दोहन से नदी को बहुत नुकसान हुआ है।''

भूजल के गिरते स्‍तर से गोमती को क्‍या हुआ नुकसान?

भूजल के गिरते स्‍तर का नदी पर कैसे असर हो रहा है इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि गोमत ताल में पांच जल स्रोत हैं। इन जल स्रोत की वजह से ही गोमत ताल में पानी रहता है, लेकिन बीते वर्षों में यह जल स्रोत निष्‍क्रिय हो गए हैं। हमारी टीम जब गोमत ताल पर पहुंची तो वहां देखा कि ताल के पास ही एक सोलर पंप लगा था, जिसकी मदद से भूजल को निकालकर ताल में छोड़ा जा रहा था। ताल के पास ही हमें माधवटांडा के पूर्व प्रधान धनिराम कश्‍यप मिले। वो बताते हैं कि ''जब गोमत ताल के जल स्रोत बंद हुए तो यहां पानी सूखने लगा, ऐसे में प्रशासन ने यह सोलर पंप लगाए जिसकी मदद से ताल में पानी भरता है। कुछ ऐसा ही हाल सीतापुर के नैमिष तीर्थ के चक्रतीर्थ जल स्रोत का भी है। चक्रतीर्थ का जल स्रोत भी जब सूख गया तो प्रशासन ने इसके लिए एक टैंक बनाया और फिर उससे जल स्रोत में पानी छोड़ा जाने लगा।

नैमिष का चक्रतीर्थ जिसके सूखने पर पास ही पानी का टैंक बनाया गया, जिससे इसमें पानी रखा जा सके।

भूजल के गिरते स्‍तर से गोमती पर हो रहे असर को लेकर 'गोमती सेवा समाज' से जुड़े सतपाल सिंह बताते हैं, ''भूजल का लेवल लगातार कम हो रहा है। इसका असर नदी पर भी दिखने लगा है। पिछले साल (2018) मई-जून में पहली बार मैंने देखा कि गोमती की धार टूट गई थी। मेरी तो आयू 30 साल की है, लेकिन जिनकी उम्र 60 से 70 साल तक थी उन लोगों ने भी यह पहली बार देखा। जबतक बरसात शुरू नहीं हुई तबतक वो सूखी हुई थी। लखीमपुर खीरी के जंगलीनाथ, पुरैनाघाट और इस जैसे कई घाट पर धारा टूट गई थी। नदी पूरी तरह सूख गयी था। हमने इससे पहले गोमती को सूखते नहीं देखा था।''

सतपाल कहते हैं, ''इससे पहले नदी में कितना भी पानी कम हो जाए, फिर भी तीन चार फीट पानी रहता ही था। नदी का सूखना इशारा है कि संकट कितना बड़ा है। इससे समझा जा सकता है कि भूजल का स्‍तर कितना तेजी से नीचे जा रहा है। साथ ही जिस हिसाब से भूजल को रिचार्ज होना चाहिए वो हो नहीं रहा। बरसात भी दिन पर दिन कम होती जा रही है।'' सतपाल की इस बात को भारत सरकार के पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रायल और मौसम विभाग की 2013 की रिपोर्ट भी बल देती है। रिपोर्ट ''STATE LEVEL CLIMATE CHANGE TRENDS IN INDIA'' के मुताबिक, उत्‍तर प्रदेश भारत का एक मात्र राज्‍य है जहां 1951 से 2010 के बीच बारिश कम होती जा रही है।

बारिश को लेकर भारत सरकार के पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रायल की रिपोर्ट। इसमें देखा जा सकता है कि उत्‍तर प्रदेश एक मात्र राज्‍य है जहां 1051 से 2010 तक बरसात कम होने का ट्रेंड देखा गया।

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) के पूर्व निदेशक वीके जोशी पीलीभीत में ट्युबवेल के सहारे खेती करने के ट्रेंड पर कहते हैं, ''गोमती का अस्‍तित्‍व ही भूगर्भ जल पर है। किसानों को समझना होगा कि गोमती नहीं रहेगी तो उनके खेत भी नहीं रहेंगे। आज के वक्‍त में इतना आसान हो गया है ट्युबवेल लगाना कि जिसकी मर्जी आई उसने जमीन में छेद किया और पानी निकाल लिया। भूजल एक बैंक एकाउंट की तरह है। यह बारिश के पानी से रिचार्ज होता है। आप बैंक अकाउंट में पैसा न डालें और एटीएम से निकालते रहें तो एक दिन नोटिस आ जाएगा। भूजल का एक नोटिस आ चुका है, लेकिन हम इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।''

वीके जोशी आगे कहते हैं, ''भूजल का हम अंधाधुन दोहन कर रहे हैं। ट्युबवेल का एक रूल होता है कि अगर 300 फीट का ट्युबवेल एक जगह लगा तो उसके एक हजार मीटर के दायरे में दूसरा ट्युबवेल नहीं लगता, लेकिन कायदे कानून को मानता कौन है। अब और ज्‍यादा और गहरे ट्युबवेल लगवाए जा रहे हैं। हालात ये हैं कि अब पानी की माइनिंग हो रही है। अभी तक तो यह होता था कि पानी निकाला और बरसात में रिचार्ज हो गया, लेकिन अब स्‍थ‍िति उलट है। बरसात उस हिसाब की हो नहीं रही कि वॉटर रिचार्ज हो सके। ऐसे में यह खतरे की घंटी है।''

क्‍या है उपाय?

अब सवाल उठता है कि साठा धान और भूजल दोहन से हो रहे नुकसान से उबरने के लिए क्‍या किया जाए? इस बारे में कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस ढाका कहते हैं, ''सबसे पहले तो किसानों को समझना होगा कि पर्यावरण क्‍यों जरूरी है। इसके लिए हमने कई कैंपने भी चलाए हैं। लोगों को बताया कि साठा धान की खेती कच्‍चा लालच है। इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान है। गोमती नदी को नुकसान है। कुछ किसान समझे भी हैं, लेकिन ज्‍यादातर नहीं समझना चाहते। इसलिए कानूनी तौर पर कुछ करने की जरूरत है, तब जाकर साठा धान पर रोक लग सकती है।''

डॉ. एसएस ढाका कहते हैं, ''किसानों के पास और भी फसलें हैं जो इस वक्‍त में लगाई जा सकती हैं। दलहनी फसलें लगाई जा सकती हैं। इससे पर्यावरण पर बुरा असर भी नहीं होगा। किसान अगर समझ जाए तो सब सही हो सकता है।''

वहीं, गोमती सेवा समाज से जुड़े सतपाल सिंह कहते हैं, ''नदी के आसपास अगर वनीकरण किया जाए तो इससे ग्राउंड वॉटर अच्‍छे से रिचार्ज हो सकेगा। साथ ही नदी को अतिक्रमण से भी मुक्‍त‍ि मिलेगी। गोमती की स्‍थ‍िति बेहतर हो सकती है अगर साझा प्रयास किया जाए। अभी भी देर नहीं हुई है।''


(यह स्‍टोरी गांव कनेक्‍शन की सीरिज 'एक थी गोमती' के तहत की गई है। गोमती नदी को लेकर हमारी टीम ने एक पूरी सीरीज प्‍लान की थी। इसके तहत हमने गोमती नदी के उद्गम स्‍थल (पीलीभीत की ग्राम पंचायत माधवटांडा) से लेकर लखनऊ तक नदी को बाइक से ट्रैक किया। चार दिन में गोमती को ट्रैक करते हुए गांव कनेक्‍शन की टीम ने पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और लखनऊ में करीब 425 किमी बाइक से यात्रा की। इस बाइक यात्रा में हमने नदी के जीवन को जानने, उसकी हाल की स्‍थ‍िति देखने के साथ ही इसके आस पास बसने वाले लोगों से समझा कि गोमती नदी उनके लिए क्‍या मायने रखती है। gaonconnection.com पर आप इस सीरीज की खबरें पढ़ सकते हैं।)

सीरीज की अन्‍य स्‍टोरी पढ़ें-

1. जहां गोमती का हुआ जन्‍म, वहीं मारने की हुई शुरुआत

2. पीलीभीत से लेकर लखनऊ तक गोमती को मारने की कहानी

3. यादों में गुम होती आदिगंगा गोमती

   

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