यादों में सिमटती गोमती

उत्तर प्रदेश के आठ जिलों से होकर बहने वाली गोमती का अस्तित्व संकट में क्यों है, इसे जानने के लिए गांव कनेक्शन की टीम ने नदी के उद्गम स्थल (माधवपुर टांडा, पीलीभीत) से लेकर लखनऊ तक करीब 425 किमी की बाइक यात्रा की।

Daya SagarDaya Sagar   16 March 2019 1:11 PM GMT

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यादों में सिमटती गोमती

रणविजय सिंह/दया सागर

मुख्तार और अब्बास बचपन के दोस्त हैं। मुख्तार, नाई तो अब्बास, जरदोजी का काम करते हैं। पुरानी लखनऊ में गोमती नदी के किनारे ही इनका मुहल्ला है। मुख्तार और अब्बास शौकिया शिकारी भी हैं और बचपन से ही गोमती में मछलियों का शिकार करते हैं। वे बताते हैं, 'अब नदी में मछलियां ना के बराबर हैं और शिकार के लिए 20 से 30 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। गोमती में मछली नहीं मिलती तो पास के जिलों सीतापुर और गोंडा में बहने वाली घाघरा नदी तक चले जाते हैं।'

मुख्तार और अब्बास, अब मछलियों का शिकार करने के लिए दूसरी नदियों की तरफ जाते हैं। वे बताते हैं कि गोमती में मछलियां एकदम से कम हो गई हैं।

पीलीभीत जिले के माधोपुर टांडा गांव के फूलहार झील (गोमत ताल) से निकली गोमती नदी के बारे में ऐसी कई स्मृतियां हैं, जिसे नदी के किनारे रहने वाले लोग साझा करने से नहीं चूकते। इन स्मृतियों में बचपन की यादें भी हैं, पौराणिक मान्यताएं भी और इसके खत्म हो रहे अस्तित्व का दर्द भी। गांव कनेक्शन की टीम ने नदी के किनारे बसे लोगों से जानने की कोशिश की कि वह नदी को किस तरह से देखते आ रहे हैं? उनकी यादों में यह नदी पहले कैसी थी और अब कैसी हो गई है?


गोमती के उद्गम स्थल माधवपुर टांडा के पूर्व प्रधान धनीराम कश्यप (50) गोमती से जुड़ी एक पौराणिक कहानी हम से साझा करते हैं। वह बताते हैं, "जहां अभी गोमत ताल है, वह पहले घना जंगल हुआ करता था। यहां पर दुर्गा नाथ नाम के एक तपस्वी तपस्या किया करते थे। वह स्नान करने के लिए गोमुख, गंगोत्री तक जाया करते थे। जब दुर्गा नाथ बाब वृद्ध हो गए तब 'गोमती माता' ने उनसे कहा कि वह अब इतना दूर ना आया करें, वह स्वयं उनके पास आएंगी। दुर्गा नाथ ने गोमती माता को अपना खड़ाऊ और सोटा दिया और कहा कि आप अगर आएंगी तो अपनी पहचान के लिए खड़ाऊ और सोटा छोड़ दिजिएगा। अगले दिन दुर्गा नाथ को जंगल के पास एक तालाब दिखा, जिनमें उनका सोटा और खड़ाऊ तैर रहा था। इस तरह गोमती नदी का उद्गम हुआ।"

धनीराम बताते हैं कि गोमती को ऋषि वशिष्ठ की पुत्री और आदिगंगा भी कहा जाता है। ऐसी तमाम पौराणिक-सांस्कृतिक मान्यताएं गोमती नदी से जुड़ी हुई हैं और इसी तरीके से आम लोग खुद को गोमती नदी से जोड़ते हैं। गोमती नदी के किनारे गांव कनेक्शन की टीम ने जितने गांवों, कस्बों और शहरों का दौरा किया लोगों की गोमती नदी के प्रति आस्था दिखी। गोमती को 'गोमती माता' कहकर संबोधित करने वाले ये लोग नदी के किनारे मुण्डन, शादी से लेकर अंतिम संस्कार कराते दिखे।

ऐसे ही एक श्रद्धालु कुंदन सिंह कुशवाहा हमें लखीमपुर जिले के अमरी घाट पर मिले। 65 साल के कुंदन सिंह पुवायां में रहते हैं। उनके घर से अमरी घाट की दूरी करीब 30 किलोमीटर है लेकिन वह हर महीने अमावस्या के दिन 'नहान' करने अमरी घाट पर आते हैं। नदी और घाट की पौराणिक महत्ता को बताते हुए वह कहते हैं कि इस जगह पर पांडवों ने अपने एकांतवास के कुछ वर्ष बिताये थे। वह गंगा के बाद गोमती को उत्तर भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी बताते हैं और कहते हैं कि इसमें स्नान करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


पुवायां के कुंदन सिंह, नदी के प्रति उनकी आस्था इतनी अधिक है कि वह गंदे पानी का भी आचमन करते हैं। कुंदन हर अमावस्या पर गोमती में स्नान करते हैं।

'जब हम लोग छोटे थे तब नदी काफी चौड़ी होती थी। नदी की एक निश्चित धारा थी और इसके साफ पानी में लोग स्नान किया करते थे। लेकिन अब इस नदी का हाल काफी बुरा हो गया है। अब इसमें बहुत कम लोग नहाते हैं। चूंकि मेरी इस नदी से आस्था जुड़ी है और मेरी कई मनोकामनाएं पूरी हुई हैं इसलिए गंदा होने के बावजूद मैं हर अमावस्या को इस नदी में स्नान करता हूं।' कुंदन सिंह नदी के पानी का आचमन करते हुए बताते है।


इसी घाट पर हमें 24 साल के विपिन वाल्मिकी मिले। उन्होंने बताया कि तीन साल पहले इस नदी की धारा जहां-तहां रूकी हुई थी। हालांकि अभी कुछ सरकारी अफसरों ने इस नदी को फिर से जिंदा करने में रूचि दिखाई है, जिसकी वजह से इस नदी में थोड़ा ही सही पर पानी दिख रहा है। विपिन कहते हैं कि अगर इस नदी पर सरकारों और आम लोगों द्वारा ध्यान नहीं दिया गया तो इस नदी की धार भविष्य में फिर से रूक सकती है।

विपिन प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सरकार गंगा की सफाई की बात तो कर रही है। गोमती के लिए भी लखनऊ में रिवर फ्रंट बना है। लेकिन गोमती जहां से गुजरकर लखनऊ तक पहुंची है, वहां पर अभी तक कोई भी सरकार नहीं पहुंची है। सरकारों के ना पहुंचने की बात विपिन जब बता रहे थे, ठीक उसी समय नदी के पुल पर 'फिर एक बार, मोदी सरकार' का नारा लगाते हुए एक चुनाव प्रचार गाड़ी गुजर रही थी।

एकोत्तर नाथ (पीलीभीत) में नदी के घाट के किनारे हमें 72 साल के सुरानाथ मिश्रा और उनके दोस्त रामेश्वर मिले। वे हमें गोमती की दुर्दशा को दिखाने के लिए घाट से कुछ देर आगे तक ले गए। उन्होंने जो गोमती हमें दिखाई, वह पूरी तरह से जलकुंभियों से भरी हुई थी। पानी की एक बूंद भी दिखाई नहीं दे रही थी। बचपन की यादों को ताजा करते हुए सुरानाथ बताते हैं कि वह और उनके साथियों के पास तब सौ से अधिक गायें और भैंसें हुआ करती थी। सभी जानवर गोमती के आस-पास चरते और गोमती में पानी पीते, नहाते। जबकि सुरानाथ और उनके दोस्त बेफिक्र होकर नदी के किनारे 'भौरीया' (मोटी रोटी) सेंक कर उसे भुने हुए आलू से खाते थे। सुरानाथ और रामेश्वर को दुःख है कि अब 'गोमती माता' पहले जैसी नहीं रहीं।

सुरानाथ और रामेश्वर बहुत भावुक होकर गोमती से जुड़ी यादों को साझा करते हैं। उनकी आवाज में भावुकता के साथ-साथ गोमती के खत्म होते अस्तित्व का रोष भी झलकता है।

पीलीभीत में रसायन विज्ञान विभाग के अध्यापक और पर्यावरण प्रेमी टी.एच. खान गोमती के बारे में बड़े गर्व से बताते हैं, 'गोमती, जो लखनऊ की शान है, वह पीलीभीत ही से निकलती है।' खान अपने 85 साल के बुजुर्ग चाचा डाक्टर ए.एच. खान की कहानी सुनाने लगते हैं। वह कहते हैं कि उनके चाचा एक शौकिया शिकारी थे, जो पीलीभीत के मशहूर शिकारी भरत सिंह के साथ शिकार करते थे। इसके अलावा वह अपने पूरे परिवार के साथ इस नदी के किनारे ही पिकनिक मनाते थे, खाना खाते थे और क्वालिटी समय बीताते थे।

टी.एच.खान, गोमती से जुड़ी अपने चाचा की कहानियां बहुत ही रूमानी ढंग से सुनाते हैं। वह गोमती को पहले जैसा ही बहते हुए देखना चाहते हैं

खान गोमती के प्रति लोगों की आस्था और सम्मान को इस तरह समझाते हैं, 'हमारे चाचा बताते हैं कि फूलर झील में लोग मल-मूत्र विसर्जन नहीं करते थे, जबकि अन्य ताल-तलैय्यो में वह ऐसा करने से कतई गुरेज नहीं करते थे।' टी.एच. खान कहते हैं कि वह उस गोमती को देखना चाहते हैं जो उनके चाचा अपनी कहानियों में सुनाते थे।

पीलीभीत के वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता अमिताभ अग्निहोत्री भी कुछ ऐसी ही इच्छा रखते हैं। अमिताभ अग्निहोत्री गोमती के प्रति एक जागरूक और समर्पित व्यक्ति हैं और वह गोमती के पुनर्उत्थान के लिए बनाई गई कई समितियों का हिस्सा रह चुके हैं।

अमिताभ दिमाग पर जोर देते हुए याद करते हैं और कहते हैं, 'मैंने तो कभी भी इस नदी को जिंदा नहीं देखा। माधव टांडा से उद्गम के बाद यह एकदम से ही खत्म हो जाता है। कई जगहों पर यह छोटे-छोटे तालों के रूप में जरूर दिखाई देता है लेकिन सीतापुर से पहले इसे शायद ही कोई नदी कहेगा। लोग नदी से नहर निकालते हैं लेकिन इस नदी को जिंदा रखने के लिए नहरों का सहारा लिया जा रहा है।' गौरतलब है कि कुछ साल पहले गोमती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए इसे नहरों से जोड़ा गया। गोमती के उद्गम स्थल पर भी एक नहर हमें दिखा जो सूखा हुआ था। स्थानीय निवासी इसे शारदा नहर कहते हैं।

गोमत ताल से जुड़ी हुई शारदा नहर जो सूखी नजर आई। यह नदी जगह-जगह पर नहरों से जुड़ी हुई है। जब नहरों में पानी आता है तब नदी भी बहने लगती है।

गोमती गुरूद्वारा, हमरिया पट्टी (पीलीभीत) के निवासी कीरथ प्रसाद (54) कहते हैं कि यह नदी तभी सूखती है, जब नहरों से पानी आना बंद हो जाता है। बचपन को याद करते हुए वह कहते है पहले इस नदी के किनारे बडे़-बड़े जंगल हुआ करते थे। इन जंगलों में तरह-तरह के जीव-जन्तु हुआ करते थे। लेकिन लोगों ने एक-एक करके जंगल और नदी दोनों पर अतिक्रमण कर लिया।

गांव कनेक्शन की टीम जब पीलीभीत जिले के माधवपुर टांडा से गोमती को ट्रैक करते हुए निकली तो यह नदी नैमिषारण्य (सीतापुर) से पहले कहीं भी एक अविरल नदी की तरह बहती हुई नहीं दिखी। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर नदी के किनारे कई जगहों पर घाट और मंदिर बनाए गए थे। इन घाटों पर ही नदी की कुछ चौड़ाई दिखी लेकिन इन घाटों पर भी पानी 'रूका हुआ' और गंदा दिखा। इन क्षेत्रों में इस नदी को लेकर एक और नई बात निकलकर सामने आई।

गोमत ताल पर ही सूखी नजर आई गोमती, यहां पर नदी का रास्ता तो दिखा लेकिन नदी पूरी तरह से सूखी नजर आई

दरअसल इस क्षेत्र (पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर) लोग गोमती को एक नदी नहीं बल्कि तालों के एक समूह के रूप में जानते हैं। इस बारे में एक दंतकथा भी काफी प्रचलित है। त्रिवेणी घाट, पीलीभीत में खोआ-पनीर की दुकान चलाने वाले सुनील कुमार बताते हैं, 'इस तराई इलाके में कभी भी पानी की कमी नहीं रही। यहां पर पांच-दस फीट पर पानी आ जाता था। इसलिए क्षेत्र में नदी के उद्गम से बाढ़ का खतरा बन गया था। इस खतरे को देखते हुए गोमती माता ने खुद कहा कि वह एक अविरल नदी के रूप में नहीं बहेंगी। बल्कि वह अलग-अलग जगहों पर उद्गमित होकर अपना रूप दिखाती रहेंगी। यही वजह है कि गोमती एक अविरल नदी के रूप में नही बल्कि अलग-अलग जगहों पर ताल के रूप में दिखाई देती है।'


नदी के पास ही मछली मार रहे कुछ मछुआरों ने बताया कि सिर्फ नदी का अस्तित्व खतरे में नहीं है बल्कि नदी में रह रहे जीवों पर भी प्रभाव पड़ रहा है। पहले नदी में अलग-अलग किस्म की बड़ी मछलियां रहती थी लेकिन अब इसमें मछलियां और अन्य जीव नहीं के बराबर हैं। इससे मछुआरों के जीवन यापन में भी काफी दिक्कतें आ रही हैं। लखनऊ के एक मछुआरे अनिल प्रसाद बताते हैं कि पहले वह मछलियों को बाजार में बेच कर कम से कम 200-300 रूपए कमा लेते थे लेकिन अब यह आमदनी घटकर 100 रूपए प्रतिदिन हो गई है।

अनिल प्रसाद पहले गोमती से मछलियां मारकर अपना पेट पालते थे। अब जब मछलियां नहीं रहीं तो उन्हें फल भी बेचना पड़ता है

लखनऊ के अकरड़िया कलां निवासी अश्विनी द्विवेदी बचपन की यादों में खोते हुए हमें बताते हैं, '2005 तक गोमती इतनी साफ थी कि सिक्का डाल देने पर वह नीचे से चमकता था। नदी में सीपियां भी होती थी जो साफ दिखाई देती थीं। मैं अपने बचपन के साथियों के साथ नदी में लुका-छिपी, कलैया जैसे खेल खेला करता था। लेकिन 2005 में वैशाख का कोई दिन था जब हम नदी में खेलने के लिए उतरे तो लेकिन शरीर खुजलाते हुए बाहर निकलें।' अश्विनी बताते हैं कि उस दिन नदी मैली नहीं बल्कि काली हो गई थी। पूरे शरीर के साथ-साथ आंख में भी जलन हो रहा था।

अश्विनी कहते हैं कि इसके बाद से लोग धीरे-धीरे गोमती से विमुख होते चले गए। उन्होंने बताया, 'उस साल कुल 3 बार नदी में हजारों मछलियां एक ही दिन मर गई थीं। अब गांव में शायद ही कोई बच्चा या युवा होगा जो गोमती में नहाता होगा या उसमें कलैया खेलता होगा।'

लखनऊ में डालीगंज के पार्षद रणजीत सिंह तो गोमती को अपने 'बचपन का साथी' बताते हैं। वह कहते हैं कि गोमती के किनारे उन्होंने बचपन और जवानी गुजारी है। उन्होंने इसका पानी पिया है, नहाया है। वह कहते हैं, 'बचपन की यारी कभी खत्म नहीं होती। जिस तरह हर सुख-दुःख में हम दोस्तों के साथ होते हैं उसी तरह हम गोमती के साथ हैं। गोमती सबके लिए माता हैं लेकिन मेरे लिए मेरी दोस्त हैं। हम इसे इस हाल में नहीं छोड़ सकते।' रणजीत सिंह ने गोमती को बचाने के लिए एक 'पर्यावरण सेना' भी बनाई है। इसमें आम आदमी से लेकर कई अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और नेता शामिल हैं, जो हर रविवार मिलकर गोमती की सफाई करते हैं।

गोमती के किनारे कई घाटों पर लोग विभिन्न तरह के संस्कार और समारोह करते हुए दिखे। यह एक विवाह समारोह की तस्वीर है, जिसमें महिलाएं लोकगीत गा रही हैं।

गोमती से जुड़े इलाकों के बुजुर्गों के पास नदी को लेकर अपनी यादें और कहानियां तो थी लेकिन नई पीढ़ी में गोमती को लेकर यह रूमानियत खत्म होती दिखी। शाहजहांपुर के पुवाया में चाय की दुकान चलाने वाले आशीष (35) सामने की सड़क की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, 'पहले नदी इस सड़क से भी चौड़ी हुआ करती थी। नदी हमारे कस्बे से थोड़ी दूर थी लेकिन हमें जब भी मौका मिलता तब हम गोमती के किनारे जाते, उसमें नहाते थे। लेकिन अब नदी की तरफ जाना ही बंद हो गया है। जब नदी ही नहीं बची, तब उधर जाने का क्या ही फायदा!' आशीष अपने छोटे चचेरे भाई शिवम (15) की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि इसे तो पता भी नहीं होगा कि आस-पास कोई नदी बहती भी है। शिवम भी हां कहते हुए अपना सिर हिला देता है।

(यह स्टोरी गांव कनेक्शन की सीरीज 'एक थी गोमती' के तहत की गई है। गोमती नदी को लेकर हमारी टीम ने एक पूरी सीरीज प्लान की थी। इसके तहत हमने गोमती नदी के उद्गम स्थल (पीलीभीत की ग्राम पंचायत माधवटांडा) से लेकर लखनऊ तक नदी को बाइक से ट्रैक किया। चार दिन में गोमती को ट्रैक करते हुए गांव कनेक्शन की टीम ने पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और लखनऊ में करीब 425 किमी बाइक से यात्रा की। इस बाइक यात्रा में हमने नदी के जीवन को जानने, उसकी हाल की स्थिति देखने के साथ ही इसके आस पास बसने वाले लोगों से समझा कि गोमती नदी उनके लिए क्या मायने रखती है। gaonconnection.com पर आप इस सीरीज की खबरें पढ़ सकते हैं।)

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