किसान फल और सब्जी कौड़ियों के भाव बेच रहे, फिर हम दोगुनी कीमत में क्यों खरीद रहे?

देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की वजह से देश के सब्जी और फल किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है। किसान मंडियों तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं, जिस कारण कहीं किसान फसल सड़कों पर फेंक रहे तो कहीं मवेशियों को खिला रहे। इन सबके बीच सब्जी और फलों की कीमत भी खूब बढ़ी है, लेकिन जब किसान फल और सब्जी कौड़ियों के भाव बेच रहा तो फिर हम दोगुनी कीमत में क्यों खरीद रहे हैं ?

Mithilesh DharMithilesh Dhar   31 March 2020 2:30 PM GMT

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किसान फल और सब्जी कौड़ियों के भाव बेच रहे, फिर हम दोगुनी कीमत में क्यों खरीद रहे?

देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद सब्जी और फलों की कीमतों में सबसे ज्यादा उतार-चढ़ाव आया है। शहरों में जिन सब्जियों, फलों की कीमत पिछले 10 दिनों में दोगुनी तक पहुंच गई है, किसानों से वही सब्जी, फल कौड़ियों के भाव में खरीदे जा रहे हैं। कई जगह तो फसल खरीदने वाला कोई नहीं मिल रहा। इससे नाराज किसान कहीं अपनी उपज मवेशियों को खिला दे रहे हैं तो कहीं सड़कों पर फेंक रहें, लेकिन सवाल तो यह है कि जब किसानों को सब्जी और फलों की कीमत ही नहीं मिल रही है तो शहरों में उनके भाव इतने ज्यादा क्यों हैं ?

मिनी मुंबई के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश के इंदौर से लगभग 126 किमी दूर जिला खरगोन, तहसील बिखनगांव, गांव अंदड़ के रहने वाले किसान गजानंद यादव ने लगभग 5 कुंतल भिंडी को खुला गांव वालों को खाने के लिए छोड़ दिया है।

उन्होंने ऐसा क्यों किया, यह पूछने पर बताते हैं, "खरगोन की मंडी मेरे यहां से लगभग 40 किमी और इंदौर की मंडी 120 किमी दूर है। दोनों जगहों पर मैं नहीं जा पा रहा। गांव की लोकल मंडी में भीड़ इतनी ज्यादा है कि सब्जियों की कीमत ही नहीं मिल रही। मेरे पास कल की डेट में (30 मार्च) खेत से लगभग पांच कुंतल भिंडी निकलनी थी, लेकिन उन्हें निकालकर करता ही क्या। पास की मंडी में भिंडी का भाव दो रुपए प्रति किलो है, दिनभर लगकर तोड़ने के बाद इस भाव में कौन बेचेगा। इसलिए मैंने अपना खेत फ्री छोड़ दिया है गांव वालों के लिए, जिसको ले जाना हो ले जाये।"

पिछले साल सब्जी की खेती से बढ़िया मुनाफा कमाने वाले गजानंद अब पछता रहे हैं। वे आगे बताते हैं, "मेरी सब्जियां दिल्ली की मंडियों तक जाती थीं। बड़े व्यापारी इंदौर से खरीदते थे, लेकिन मेरी गाड़ी इंदौर मंडी नहीं जा पा रही। पुलिस वाले रोक दे रहे हैं। दूसरे जिले में जाने ही नहीं दे रहे हैं। पिछले साल इस समय भिंडी की कीमत 20 से 25 रुपए प्रति किलो थी। ककड़ी भी एक रुपए किलो में बिक रही है। कुल मिलाकर इस साल नहीं कुछ तो तीन से चार लाख रुपए का नुकसान हो रहा है।"

गजानंद ने इस साल तीन एकड़ में भिंडी और एक एकड़ में ककड़ी की खेती की है। उनके खेत से हर दूसरे दिन लगभग पांच कुंतल भिंडी निकल रही है जिसे पिछले दो बार से खेत में ही छोड़ दे रहे हैं। अब अगर पिछले साल के भाव 20 रुपए प्रति किलो का भी हिसाब लाएंगे तो उन्हें हर दूसरे दिन 10,000 रुपए का नुकसान हो रहा है।

खरगोन से लगभग 350 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के ही छिंदवाड़ा जिले के सौंसर तहसील में रहने वाले किसान राजेश मोकदम वैसे तो संतरे की खेती करते हैं लेकिन उनकी स्थिति सब्जी किसान गजानंद जैसी ही है।

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"वैसे तो हमारे यहां संतरे दिसंबर तक ही बिक जाते हैं लेकिन मेरे पेड़ों में संतरे देर से आये। यह समय पैसे कमाने का था, लेकिन मंडी में संतरा कोई पूछने वाला ही नहीं है। मेरे यहां से पांढुर्ना की मंडी लगभग 45 किलोमीटर है। यहां व्यापारी आते हैं, दूसरे प्रदेश में संतरा ले जाते हैं, लेकिन जब से कोरोना आया तब से गाड़ी ही नहीं आ रही। यहां लोकल में एक संतरा 50 पैसे से लेकर एक रुपए तक मिल रहा है जबकि एक डेढ़ महीने पहले यही कीमत चार रुपए प्रति संतरे थी।"

ये तस्वीर मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले ही है। बागों में गिरे संतरे, नहीं मिल रहे खरीदार।

देश की राजधानी में नई दिल्ली के न्यू अशोकनगर में रहने वाले सौरभ दुबे ने 31 मार्च को दो रुपए वाली भिंडी को 40 रुपए किलो के हिसाब से खरीदा जबकि उन्हें संतरा 100 रुपए किलो मिला जिसमें आठ पीस थे। वे कहते हैं, "लॉकडाउन के एक दो दिन बाद तो कुछ मिला ही नहीं, और अब मिल भी रहा है तो कीमत दोगुनी तक हो गई है। 20 वाला आलू 40 में मिल रहा है। 20-25 वाली भिंडी की कीमत 40 रुपए हो गई है। फलों की कीमत में भी मनमानी बढ़ोतरी हुई है।"

देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा की थी। इस लॉकडाउन की वजह से किसानों को बहुत नुसकान उठाना पड़ रहा है। किसान मंडियों तक फल और सब्जी लेकर नहीं पहुंच पा रहे हैं जिस कारण उनकी फसल बर्बाद हो रही है, जबकि स्थानीय मंडियों में आवक ज्यादा होने की वजह से उन्हें कीमत बहुत कम मिल रही है। देश की बड़ी मंडियों में आने वाली सप्लाई घट गई है जिस कारण शहरों में सब्जी और फलों की कीमत 40 से 50 फीसदी तक बढ़ गई है।

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के बड़े सब्जी कारोबारी दीप वेजिटेबज कंपनी के मालिक अमन कुमार बताते हैं, "मंडी में कुछ पहुंच ही नहीं पा रहा है। मेरे यहां दूर-दूर से किसान आते थे सब्जियां लेकर, जब से लॉकडाउन शुरू हुआ आवक न के बराबर हो गई है। किसान पता नहीं उन सब्जियों का क्या कर रहे हैं।"

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर दो वीडियो खूब वायरल हुए थे, जिसमें राजस्थान के एक किसान ने जहां दो ट्रॉली खीरे को पशुओं को खिला दिया तो वहीं कर्नाटक के एक किसान ने एक ट्रॉली अंगूर को जमीन में गाड़ दिया।

राजस्थान के झालावाड़ जिले में रहने वाले किसान बालमुंकुंद डांगी बताते हैं, "25 मार्च को हमने खीरा तुड़वाया था जो करीब 40 कुंलत था। अगर वो जयपुर मंडी पहुंचता तो कम से कम 60 हजार रुपए मिलते, लेकिन पुलिस ने गाड़ियों को आगे नहीं जाने दिया। मजबूरी में मुझे पास की एक गोशाला में खीरा गायों के सामने फेंकना पड़ा।" बालमुकुंद का गांव बाड़ोन, पिड़ावा तहसील में है, जो जयपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर है।

मंडी तक पहुंचने में आ रही दिक्कतों के बारे में पूछने पर बालमुंकुंद कहते हैं, "हमने सुना है कि सरकार ने कहा है मंडियां खुली रहेंगी, किसान अपना काम कर सकेंगे लेकिन पुलिस का इतना खौफ है कि ट्रांसपोर्टर गाड़ी नहीं चलवा रहे।" अपनी बात खत्म करते हुए बालमुकुंद मायूसी से भर जाते हैं, वो कहते हैं, "हमने किराये पर ग्रीन हाउस लिया है, पैसा कहां से भरेंगे। अब आप देखिए शहर में लोग इतनी महंगी सब्जी खरीद रहे, किसान का लाखों का नुकसान हो रहा। सरकार को चाहिए किसानों के लिए पास जारी वर्ना किसान बहुत घाटे में चला जाएगा।"

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कर्नाटक के जिला चिक्कबल्लापुर के अंगूर किसान मुनीशाम अप्पा के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। उनके बेटे वेंकट कृष्णप्पा गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हम मंडी लगभग 15 टन (150 कुंतल) अंगूर लेकर गये थे, लेकिन गाड़ियों की कमी के कारण किसी ने अंगूर खरीदा ही नहीं। ऐसे में हमने सोचा कि क्यों ना इसे अपने खेत में ही गाड़ देते हैं, कम से कम यह खाद का काम तो करेगा।"

कृषि मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक देश में अंगूर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। चिक्कबल्लापुर और कोलार जिलेअंगूर की खेती के ममले में कर्नाटक के सबसे बड़े जिले हैं।

कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर में किसान अंगूर को खेत की मिट्टी में दबाया।

"अकेले चिक्कबल्लापुर में लगभग 2,000 एकड़ में किसान अंगूर की खेती करते हैं। लगभग 30,000 टन (तीन लाख कुंतल) अंगूर बाजार में बिकने को तैयार हैं, लेकिन खरीददार आ ही नहीं पा रहे। एक एकड़ में किसानों के तीन से चार लाख रुपए तक खर्च हो जाते हैं। चिक्कबल्लापुर और कोलार के अंगूर किसानों का इस साल कम से कम 500 से 600 करोड़ रुपए का नुकसान होने वाला है। लॉकडाउन से बहुत नुकसान हो रहा है। हम तो चाहते हैं कि सरकार इतनी व्यवस्था कर दे कि 70-80 में बिकने वाला अंगूर कम से कम हमें 30-40 रुपए किलो में ही बिक जाये।" रायेता किसान संघ, कर्नाटक के नेता कोट्टूर श्रीनवासन कहते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अंगूर का खुदरा भाव 100 से 120 रुपए प्रति किलो है। इसी तरह दूसरे फलों की कीमतें भी बढ़ रही हैं। सेब की कीमतों में भी 20 से 25 फीसदी की तेजी आई है।

नई दिल्ली में रहने वाले मनोज दुबे फलों के बड़े व्यापारी और निर्यातक हैं। वे कहते हैं, "फलों में अभी सेब की कीमतों में 25 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मैंने कोल्डस्टोरेज में जो सेब रखे थे वही बेच रहा हूं। बाजार में मांग तो हैं लेकिन आवक नहीं है। इस कारण कीमतों में तेजी आई है। कश्मीर से आने वाला सेब एक दम रुका हुआ है।"

देश के कई हिस्सों में किसानों ने सब्जियां मवेशियों को खिलाईं।

भारत में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में सेब की पैदावार होती है। यह सीजन तो नवंबर में ही खत्म हो जाता है लेकिन किसान कोल्ड स्टोरेज में सेब रख देते हैं और अच्छी कीमत की आस में मार्च के आखिरी दिनों से निकालना शुरू कर देते हैं, लेकिन लॉकडाउन होने की वजह से वे देश के दूसरे हिस्सों में माल नहीं भेज पा रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर के रहने वाले सेब किसान इम्तियाज यारू कहते हैं, "हम तो पहले से नुकसान में हैं। इतने दिनों तक सब कुछ बंद रहा, मौसम की मार भी पड़ी और लॉकडाउन हो गया। मैं 25 मार्च को 1,193 पेटी सेब लेकर सिलीगुड़ी जा रहा था लेकिन मुझे लखन में रोक दिया गया। वापस आके मैंने सेब को दोबारा से कोल्ड स्टोरेज में रख दिया। हमारे कमाने का सीजन यही होता है, लेकिन कोरोना वायरस फायदा नहीं होने देगा।"

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इम्तिआज कुपवाड़ा के तहसील लंगेत गांव कोहारू के रहने वाले हैं और उनके पास 15 केनाल के क्षेत्र में सेब के पेड़ हैं। एक केनाल में औसतन 13 से 14 पेड़ होते हैं। देश के दूसरे हिस्सों के हिसाब से एक एकड़ में आठ केनाल होते हैं।

फलों के अलावा दूसरी जल्दी खराब होने वाली सब्जियों की खेती करने वाले किसान इस समय सबसे ज्यादा परेशान हैं। लौकी, टमाटर, धनिया और बैंगन की खेती करने वाले किसान उपज जानवरों को खिला दे रहे हैं या खेतों से तोड़ ही नहीं रहे हैं।

"मैंने लगभग डेढ़ बीघे ( लगभग आधा एकड़) में हरी मिर्च की खेती की है। अब उसे बेचने का समय आ गया है लेकिन कछवां मंडी में मिर्च की कीमत 10-12 रुपए किलो है। इससे ज्यादा खर्च तो उसे तोड़कर मंडी ले जाने में हो जायेगा। इसलिए मैंने मिर्च को खेत में ही छोड़ दिया है, बेचने से भी कोई फायदा नहीं होने वाला है। 25-30 कुंतल पैदावार होगी, पिछले साल 80 हजार रुपए में आसपास मुनाफा हुआ था। इस साल तो नुकसान ही दिख रहा।" उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के ब्लॉक कछवां के गांव विदापुर के रहने वाले किसान राहुल पांडेय कहते हैं।

मिर्जापुर का कछवां क्षेत्र पूर्वांचल में मिर्च की खेती के लिए प्रसिद्ध है, और कंछवा मंडी पूर्वांचल की सबसे बड़ी सब्जी मंडियों में एक एक है। यहां से पूर्वाचंल के लगभग सभी 17 जिलों में सब्जियों की सप्लाई होती है।

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भारत में फल और सब्जियों की खेती में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2004-05 में भारत में 101.2 मिलियन टन सब्जी की पैदावार हुई थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 184.40 मिलियन टन हो जाता है। इसी तरह वर्ष 2004-05 में फलों की कुल पैदावार 50.9 टन हुई थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 97.35 मिलियटन टन तक पहुंच जाता है।


बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री चंद्र सेन कहते हैं, "नकदी फसल होने के नाते देश के लाखों किसान फल और सब्जियों की खेती कर रहे हैं, लेकिन यह उनके लिए मुश्किल घड़ी है। मौसम की मार के बाद यह सब किसानों को नुकसान और बढ़ाने वाला है। इस पर सरकार को तुरंत सोचना चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि सब्जी की खेती से छोटे किसान ज्यादा जुड़े हैं जो इतना नुकसान झेल नहीं पाएंगे। आने वाले समय में इन किसानों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सरकार को जल्द से जल्द इस ओर ध्यान देना चाहिए।"

  

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