सूखे की मार से बेहाल बुंदेलखंड का ये गाँव कैसे जलग्राम बन गया?

उत्तर प्रदेश के महोबा में बनियातला अब आम गाँव नहीं है। कभी बूंद बूंद को तरसते यहाँ के लोगों ने खुद बारिश के पानी को खास तरकीब से जमा कर ऐसा कमाल कर दिखाया है कि दूसरे गाँव के लोग अब देखने आ रहे हैं। बांध बनने के बावजूद गाँव में अब भीषण गर्मी में भी हैंडपंपों से इतना पानी निकलता है कि यहाँ की औरतों को पानी के लिए अब मीलों दूर नहीं जाना पड़ता है।

Aishwarya TripathiAishwarya Tripathi   5 May 2023 6:30 AM GMT

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सूखे की मार से बेहाल बुंदेलखंड का ये गाँव कैसे जलग्राम बन गया?

जल संरक्षण को और बढ़ाने और पानी को बहने से रोकने के लिए, गैर-सरकारी संस्था ने मेड़ के किनारे पेड़ पौधे लगाए हैं। सभी फोटो: ऐश्वर्या त्रिपाठी

बनियातला (महोबा), उत्तर प्रदेश। 35 साल की प्रेम विश्वकर्मा के लिए कुछ महीने पहले तक अपने घर के बरामदे में इतने सुकून से बैठना किसी सपने से कम नहीं था।

कल तक उन्हें पानी की तलाश में किसी हैंडपम्प तक पहुंचना और लम्बी जद्दोजहद के बाद अपनी बारी आने पर मटके में पानी भर कर घर लाना, ये रोज का काम था। वो भी एक दिन में कम से कम छह या सात बार।

"हर वक़्त पानी ही भरते रहते थे, "प्रेम गुजरे दिनों को याद करते हुए कहती हैं। वे सूबे के उस गाँव से हैं जो महोबा ज़िले में पड़ता हैं। मध्य भारत के बुंदेलखंड का सबसे सूखा-ग्रस्त इलाका।

सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के इस गाँव में चार कुएँ और नौ हैंडपंप हैं जहां से गाँव के लोगों को पीने लायक पानी मिलता है।

लेकिन इस बार की गर्मी इस गाँव के लिए अलग है। उनके घर से चंद कदम की दूरी पर स्थित हैंडपंप से अभी भी पानी निकाल रहा है।

“आम तौर पर, यह मार्च के अंत तक सूख जाता था, लेकिन अब मई के महीने में भी इससे पानी मिलता है, "प्रेम ने गाँव कनेक्शन को बताया।

सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के इस गाँव में चार कुएँ और नौ हैंडपंप हैं जहां से गाँव के लोगों को पीने लायक पानी मिलता है। इस साल, इन सभी 13 स्रोतों में भीषण गर्मी में भी पानी मौजूद है, जो पहले कभी नहीं सुना गया था।

“पहले, सभी कुएँ सूख गए थे और कम से कम चार हैंडपंपों ने पानी देना बंद कर दिया था। लेकिन इस साल ऐसा नहीं है। जब से हमने अपने खेतों में मेड़बंदी शुरू की है, पानी भरपूर मात्रा में है, ” प्रेम ने कहा।

35 साल की प्रेम विश्वकर्मा को अब पानी की तलाश में भटकना नहीं पड़ता है।

मेड़बंदी का अर्थ बारिश के पानी को इकट्ठा कर जमीन के नीचे का जल स्तर बढ़ाना है। मिट्टी की नमी को बढ़ाने में भी मेढ़ बंदी काफी कारगर है।

तीन साल पहले, 2020 में महोबा स्थित एक गैर सरकारी संस्था, ग्रामोन्नति, ने गाँव में जल संचयन कार्यक्रम शुरू किया, जो राज्य की राजधानी लखनऊ से 235 किलोमीटर दूर है। इस परियोजना को प्रदेश सरकार की तरफ से बुंदेलखंड क्षेत्र में किसानों की आय दोगुनी करने की पहल के तहत वित्त पोषित किया गया था।

ग्रामोन्नति ने यहाँ के लोगों को बारिश के पानी को जमा करने के लिए मेड़-बंदी अपनाने या खेतों में मेड़ बनाने की सलाह दी।

“मेड़ बारिश के पानी को फैलने से रोकता है और वो पानी जमीन में जमा हो जाता है। यह भूजल को रिचार्ज करता है और खेतों से उपजाऊ ऊपरी मिट्टी के नुकसान को भी रोकता है, "आरपी मिश्रा, गैर-लाभकारी संस्था के कार्यकर्ता ने समझाया।


महोबा लंबे समय से सूखा रहा है। जमीन में यहाँ पानी का भण्डार होना किसी सपने से कम नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के मुताबिक, 2022 में महोबा के कबरई ब्लॉक, जिसमें बनियाताला गाँव पड़ता है, को भूमिगत जल भंडार के मामले में 'कुछ गंभीर' की श्रेणी में रखा गया था।

जल जीवन मिशन के तहत, उत्तर प्रदेश और पड़ोसी मध्य प्रदेश में फैले बुंदेलखंड और विंध्याचल क्षेत्रों की पहचान 'प्राथमिकता' के रूप में की गई थी। सरकार की तरफ से तय किया गया कि यहाँ के गाँवोँ में 2022 तक नलों के ज़रिये घर घर पानी पहुँचा दिया जायेगा।

लेकिन, प्रेम और उसके जैसे कई लोगों के घरों में अब भी पानी की पाइपलाइन का कनेक्शन नहीं है, ऐसे में आसपास के हैंडपंप उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

33 साल के किसान राजेश तिवारी भी पानी की स्थिति से खुश हैं।

“एक दशक से मेरे घर के पास के इस हैंडपंप में होली (मार्च) तक ही पानी रहता था। उसके बाद पम्प से एक या दो बाल्टी पानी से अधिक मिला। छह लोगों के परिवार के लिए दो बाल्टी पानी कैसे पर्याप्त होगा? लेकिन, यह मई है और पानी अभी भी मौजूद है, "उन्होंने खुशी से कहा।

जागरूकता प्रयासों के कारण बनियाताला के 370 हेक्टेयर खेती योग्य जमीन में से 293 एकड़ जमीन में अब मेड़-बंदी है।

वे कहते हैं, “इस साल मेड़-बंदी का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। यह एक आशीर्वाद है।”

राजेश के लिए यह वास्तव में ये एक वरदान है। उन्हें अपने कपड़े बोरवेल के पानी से धोने के लिए खेतों में ले जाना पड़ता था। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं डिब्बे में पानी भरकर अपनी ट्रॉली में घर ले जाता था।"

बांधों का निर्माण

ग्रामोन्नती ने एक जल समिति बनाने के लिए गाँव के पांच सक्रिय किसानों की पहचान की, जो बनियाताला के साथी किसानों को उनकी कृषि उपज के साथ-साथ भूजल भंडार पर मेड़-बंदी के प्रभाव के बारे में शिक्षित करेंगे।

“हमने गाँव में साप्ताहिक बैठकें कीं और किसानों को उनके खेतों में मेड़ अपनाने के लिए मनाने की कोशिश की। कभी-कभी चार घंटे तक बैठकें चलती थीं। कई लोग पहले तैयार नहीं थे, "जल समिति के सदस्य कृष्ण कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया।


लेकिन, बार-बार जागरूकता प्रयासों के कारण बनियाताला के 370 हेक्टेयर खेती योग्य जमीन में से 293 एकड़ जमीन में अब मेड़-बंदी है। किसानों के बोर्ड से जुड़ने के बाद जल समिति अब सुनिश्चित करती है की सभी इस तरीके को अपनाएँ।

"जमीन के झुकाव को ध्यान में रखते हुए मेड़ बनाए गए थे।" जल समिति के सदस्य कृष्ण कुमार कहते हैं कि किसानों के खेतों की मिट्टी का इस्तेमाल ऐसे किया गया कि बारिश के पानी को वो बनाए रखे और मिट्टी का कटाव भी रुके।

2020 और 2021 में अप्रैल और जून के बीच बांधों का निर्माण किया गया था। कैश-फॉर-वर्क मॉडल के तहत, प्रेम जैसे किसानों ने रोज 300 रुपये कमाने के लिए दो महीने से अधिक समय तक काम किया।

भूजल स्तर में वृद्धि

मेड़-बंदी से जमीन के पानी को बढ़ाने में काफी मदद मिली हैं। मनोज मिश्रा की माने तो मार्च, 2020 और मार्च, 2021 में कुओं के जलस्तर में औसतन 0.16 मीटर की वृद्धि हुई है।

कुएँ का जल स्तर (कुएँ के रिम से उस बिंदु तक का माप जहां पानी उपलब्ध है) 6.35 मीटर से घटकर 6.19 मीटर था।


मार्च 2020 में जिन तीन कुओं को 'सूखे' के रूप में दर्ज किया गया था, उनमें 2021 के इसी महीने में पानी था। मानसून के बाद के आंकड़ों के अनुसार, कुओं में औसतन 1.17 मीटर पानी की वृद्धि दर्ज की गई। यह 2020 और 2021 के सितंबर में था।

जल संरक्षण को और बढ़ाने और पानी को बहने से रोकने के लिए, गैर-सरकारी संस्था ने मेड़ के किनारे पेड़ पौधे लगाए हैं। मवेशियों के चारे के रूप में इस्तेमाल होने वाली घास लगाई है और सिंचाई के लिए बारिश के पानी को जमा करने के लिए खेत तालाब बनाए हैं।

फसल की उपज और आय में वृद्धि

बनियातला के किसानों को बांधों के अभाव में ऊपरी मिट्टी को बहने से रोकने के लिए मदद की जरुरत थी, जिससे फसल का उत्पादन बढ़ सके।

ग्रामोन्नति के अधिकारी, मनोज मिश्रा ने इस समस्या पर चर्चा करने के लिए गाँव में हर रोज किसान गोष्ठी या किसान बैठकें कीं।

किसान चिड्डू विश्वकर्मा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "मेरे खेत में मेड़ बंदी के कारण फसल उत्पादन बढ़ गया है। गेहूं तीन क्विंटल प्रति बीघा (0.16 हेक्टेयर) से बढ़कर आठ क्विंटल प्रति बीघा हो गया है।"


45 वर्षीय विश्वकर्मा, जिनके पास चार बीघा (0.64 हेक्टेयर) ज़मीन है, रबी की फ़सल के रूप में गेहूँ उगाते हैं, पिछले साल तक प्रति बीघा तीन क्विंटल गेहूँ का उत्पादन करते थे।

बेशक पहले की उपज उनके परिवार को खिलाने के लिए पर्याप्त थी, लेकिन इस साल विश्वकर्मा ने अलग से पांच क्विंटल गेहूं 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा। 10,000 रुपये की आय सीमांत किसान के लिए काफी कीमत रखती है, खास कर जिसके पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन हो।

"मैं घर बनाने के लिए इस पैसे को बचा रहा हूं, "उन्होंने कहा।

चार बीघा ज़मीन (0.64 हेक्टेयर) वाले राजू यादव ने भी इस तरकीब से अनाज की पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की है।

"मुझे प्रति बीघा (0.16 हेक्टेयर) में केवल पांच क्विंटल गेहूं मिलता था, लेकिन अब मुझे उसी जमीन से आठ क्विंटल मिलता है, "उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।

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