ट्रिपल तलाक़ बिल को मोदी कैबिनेट की मंजूरी, जानिए क्या है इसमें ख़ास

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ट्रिपल तलाक़ बिल को मोदी कैबिनेट की मंजूरी, जानिए क्या है इसमें ख़ासतीन तलाक़

नई दिल्ली। तीन तलाक के बिल पर नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने मुहर लगा दी है। ट्रिपल तलाक विधेयक के मुताबिक मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक किसी भी तरह के तलाक को गैर कानूनी माना जाएगा। और तीन साल तक सजा का प्रावधान किया गया है।

मोदी कैबिनेट ने मुस्लिम महिला बिल (विवाह अधिकारों का संरक्षण) यानि ट्रिपल तलाक विधेयक के ड्राफ्ट को हरी झंडी दिखा दी है। इसमें ट्रिपल तलाक को संज्ञेय और गैरजमानती अपराध का दर्जा दिया गया है, जिसमें अधिकतम तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। यह कानून मुस्लिम महिलाओं को तुरंत तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) से राहत दिलाएगा। इसमें मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक किसी भी तरह के तलाक को गैर कानूनी माना जाएगा।

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बिल की संसद के शीतकालीन में ही सदन में रखा जा सकता है। जानकारों के मुताबिक संसद चाहे तो इसे पीछे की तारीख से भी लागू कर सकती है, जिससे उन महिलाओं को न्याय मिल सके जो पहले से ट्रिपल तलाक की परेशानी से जूझ रही हैं। यह कानून मुस्लिम महिलाओं को तुरंत तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) से राहत दिलाएगा।

सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुकी है अवैध

अपने 22 अगस्त के फैसले में सुप्रीम कोर्ट तुरंत तीन तलाक को अवैध ठहरा चुकी है। लेकिन इस फैसले के बाद भी देश के अलग-अलग हिस्सों से तलाक-ए-बिद्दत की घटनाओं की खबरें आ रही थीं। यह देखते हुए इस कानून का खाका तैयार किया गया था।

पहले इस मसौदे को राज्यों का रूख जानने के लिए 1 दिसंबर को राज्यों को भेजा गया और उनसे 10 दिसंबर तक अपना जवाब देने को कहा गया था।

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इन राज्यों ने किया विधेयक का समर्थन

असम, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने अपने जवाब में इस विधेयक का समर्थन करने की बात कही थी।

क्या है मसौदे में

इस विधेयक में प्रावधान है कि अगर किसी महिला को ट्रिपल तलाक दिया जाता है तो वह महिला खुद अपने और अपने नाबालिग बच्चों के लिए मजिस्ट्रेट से भरण-पोषण व गुजारा-भत्ते की मांग कर सकती है। मजिस्ट्रेट तय करेगा कि कितना गुजारा-भत्ता देना है। नाबालिग बच्चों की कस्टडी के लिए भी पीड़ित महिला कानून से गुहार लगा सकती है।

फैसले का स्वागत, सरकार का धन्यवाद- शाइस्ता अंबर


गांव कनेक्शन से बात करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम विमिन पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रमुख शाइस्ता अंबर ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं की इस लड़ाई में साथ देने के लिए सुप्रीम कोर्ट, सरकार और मीडिया को धन्यवाद दिया। आगे उन्होंने कहा, “ कैबिनेट के फैसले का स्वागत है। जो कानून बने वह कुरान शरीफ की रोशनी में बने। जिस तरह से हिंदू मैरिज एक्ट है उसी तरह मुस्लिम मैरिज एक्ट बने। लेकिन अकेले कानून बनाने से बात नहीं बनेगी, समाज में जागरूकता आनी चाहिए। मैं हमेशा कहती आई हूं कि इसका बेहतर तरीका यह है कि हर जुमे की नमाज में इमाम लोगों को इसकी तालीम दें।

तलाक से जुड़ा जो कानून बने उसमें काउंसिलिंग पर ज्यादा जोर हो, क्योंकि घर नहीं टूटने चाहिए। बच्चों से उनके मां और बाप अलग नहीं होने चाहिए। कोशिश यह होनी चाहिए कि तीन महीने के अंदर तलाक के मसले हल हो जाएं वरना बरसों माएं अपने बच्चों के साथ कोर्ट के चक्कर लगाती रहेंगी।

“ट्रिपल तलाक मजहब का हिस्सा है, यह कानून मजहब में दखलंदाजी है”

इस मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर और मुस्लिम धर्मगुरू मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का कहना था, “ट्रिपल तलाक हमारे मजहब का हिस्सा है, यह कानून सीधे-सीधे हमारे मजहब में दखलंदाजी है। ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूरे देश से इस तरह का कोई मामला नहीं आया फिर इस तरह का कानून लाने की क्या जरूरत। संसद को चाहिए कि इस सत्र में इस बात पर कोई कानून बनाए कि देश भर में जिन मुस्लिम महिलाओं के पतियों को गो-हत्या या लव जिहाद के नाम पर मारा जा रहा है उन्हें इंसाफ मिले। ऐसा कानून बनाया जाए जिससे ऐसी हत्याएं रुकें।

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यूंही नहीं देशभर की मुस्लिम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जश्न मना रही है... उन महिलाओं को सुनिए जिन्होंने तीन तलाक का दर्द झेला है। #TripleTalaq

Posted by Gaon Connection on Tuesday, August 22, 2017

  

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