चम्बल के डकैतों का दौर खत्म हो चुका है, समय अब साइबर डाकुओं का है, कहीं आप भी शिकार न हा जाएं

उत्तर प्रदेश में बढ़ते जा रहे है साइबर अपराध के मामलें, कैसे लगेगा इन पर अंकुश ?

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   14 March 2020 6:45 AM GMT

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चम्बल के डकैतों का दौर खत्म हो चुका है, समय अब साइबर डाकुओं का है, कहीं आप भी शिकार न हा जाएं

लखनऊ। सत्तर-अस्सी के दशक में घोड़े पर बैठकर, पीठ पर दो नाली बन्दूक, मुंह पर काला कपड़ा लपेटे डकैती, हत्या, रंगदारी वसूलने वाले चम्बल के डकैतों की कहानियाँ आप ने सुनी होंगी या फिल्मों में देखी होंगी, लेकिन अब बदलते समय के साथ अपराधियों ने खुद को अपडेट कर लिया है। ऐसे अत्याधुनिक अपराधियों से कानून व्यवस्था को कड़ी चुनौती मिल रही है।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ जनपद के बसंत बिहार, थाना इन्द्रा नगर निवासी वर्षा सिंह (32 वर्ष) कहते हैं, "पिछले महीने की 28 फरवरी को मैंने ऑनलाइन सामान खरीदा। सामान सही नहीं था। इसके बाद मैंने उसी कंपनी के कस्टमर केयर नंबर फोन पर किया और शिकायत दर्ज कराई, लेकिन फोन कट गया। कुछ देर बाद दूसरे नंबर से फोन आया। उसने कहा कि आप अपने मोबाइल में ऐनी डेस्क ऐप डाउनलोड करिये,पूरी डिटेल भरिये, आपके पैसे वासप आ जायेंगे। मैंने में ऐप में पूरी जानकारी भर दी और कुछ देर बाद तीन बार में मेरे खाते से 17,700 रुपए निकाल गये। मैंने तुरंत उसी नंबर पर फोन किया तो उधर से बताया गया कि गलती से आपका पैसा दूसरे खाते में चला गया, कोई और बैंक खाता हो तो दीजिये, उसमें आपके पैसे वापय चले जाएंगे। मैंने दूसरे खाते की डिटेल दी और उससे 4,900 रुपए निकाल गये।"

"तब मुझे पता चला कि मैं तो ठगी का शिकार हो गया हूं। मामले की शिकायत मैंने इंद्रा नगर थाने में की है।" वर्षा सिंह आगे बताती हैं।

देश में ऑनलाइन ठगी के मामले बहुत तेजी से पैर पसार रहे हैं।

नई दिल्ली के करोलबाग में रहने वाले सोनू पांडेय (23) मोटर पार्ट बनाने वाली कंपनी में काम करते हैं। 12 जनवरी 2020 को उनके साथ भी ऑनलाइन धोखाधड़ी हुई। सोनू फोन पर बताते हैं, "मैं जॉब बदलना चाह रहा था, इसके लिए मैंने कई जगह अपना बायोडाटा भेज रखा था। 11 जनवरी को एक कंपनी से फोन आया कि आपका टेलिफोनिक इंटरव्यू होगा। सामने से सवाल-जवाब हुआ, फिर बताया गया कि अगले दिन यानी कि 12 जनवरी को आपका वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इंटरव्यू होगा।"

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सोनू आगे कहते हैं, " अगले दिन दोपहर में करीब 12 बजे के आसपास मेरे पास फोन आता है। फोन पर सामने से कहा गया कि आपको एक लिंक भेजा है, उस ऐप डाउनलोड कर लीजिये, फिर मुझे उसमें ऐड करिये। मैंने ऐसा ही किया। ऐप डाउनलोड किया, फिर ऐड किया। तुरंत मेरे नंबर पर ओटीपी आता है, देखा तो वह बैंक के ऐप का ओटीपी था, जब तक कुछ समझ पाता, खाते से 10,000 रुपए कट गये। थाने में रिपोर्ट दर्ज है, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं।"

ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार हर तबके के लोग हो रहे हैं, फिर चाहे वे पढ़े लिखे हों अनपढ़। नाम न लिखने की शर्त पर पुलिस विभाग के एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी ने बताया कि कुछ दिन पहले उनका फेसबुक अकाउंट हैक हो गया था, जिससे लोगों से पैसे मांगे गये।

बतौर मेडिकल प्रतिनिधि काम करने वाले लखनऊ निवासी अनुराग मिश्र कहते हैं, " पता नही कैसे मेरा फेसबुक अकाउंट हैक हो गया। हैकर ने मैसेंजर के माध्यम से मेरे फेसबुक दोस्तों से ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करने की मांग की, समय से पता चल गया जिस कारण किसी का नुकसान नही हुआ।"

साइबर क्राइम के मामलों में यूपी अव्वल

साइबर क्राइम देश के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। साइबर क्राइम के सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गये हैं। प्रदेश में औसतन हर दिन 17 लोग साइबर क्राइम का शिकार हो रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में साल 2016 में 2639, 2017 में 4971 मामले दर्ज किये गये। वहीं वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में साइबर क्राइम के सबसे ज्यादा 6280 मामले दर्ज किये गये हैं, जिनमें से 2,609 घटनाएं ऐसी थी जिन्हें पुलिस ने सही माना लेकिन उनमें कोई सुराग न मिलने के कारण कार्रवाई नहीं हो पायी।

देश में उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा मामलें देश के दक्षिणी हिस्सें कर्णाटक जहाँ साल 2018 में 5839 लोग साइबर लुटेरों का शिकार हुए है, वही महाराष्ट्र में 3511 आसाम में 2022 और पांचवे नम्बर पर तेलंगाना में 1205 लोग साइबर अपराध का शिकार हुए है।

साइबर अपराधी आये दिन अपराध करने के नए नए तरीके भी इजाद कर रहे हैं। नाम न लिखने की शर्त पर लखनऊ के एक प्राथमिक विद्यालय में तैनात एक शिक्षक बताते हैं, "कुछ महीने पहले मेरे फेसबुक पर एक यूनाइटेड स्टेट (अमेरिका) की लड़की की फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट आई, जिसे मैंने स्वीकार कर लिया। कुछ टाइम तक फेसबुक पर चैटिंग के बाद व्हाटसएप पर भी बातचीत शुरू हो गयी। फिर उसने इंडिया घूमने की इच्छा जाहिर की और मेरे द्वारा हाँ कहने पर दूसरे दिन उसने यूनाइटेड स्टेट टू शिवाजी टर्मिनल मुंबई का एयर टिकट मुझे व्हाट्सएप किया।"

"फ्लाइट के मुंबई पहुँचने की जो टाइमिंग थी, उस टाइम पर मेरे पास फोन आया कि आप की दोस्त बाहर से आई हुई हैं और इनके पास 60 हजार पाउंड का चेक है। इन्हें यहाँ इमिग्रेशन में 4 हजार भारतीय रुपए की जरूरत है। मैंने फोन पर उससे बात की और चार हजार रुपए अपने एक मित्र के माध्यम से ऑनलाइन ट्रांसफर करवा दिए। बाद में वो गायब हो गयी, बदनामी होगी ये सोचकर इस मामले की पुलिस में शिकायत नहीं की।" वे आगे कहते हैं।

नए नए तरीके से साइबर लूट

साइबर अपराध सलाहकार रक्षित टंडन का कहना है, इस समय साइबर हैकर ज्यादातर तीन तरीकों का प्रयोग कर रहे है। जिनमें पहला... साइबर अपराधियों ने गूगल पर विभिन्न कंपनियों के नाम से नकली वेवसाइट बना रखी है और वेबसाइट पर "इम्पोर्टेन्ट" कीवर्ड से नम्बर दिए हुए है। उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति ऑनलाइन खाना आर्डर करता है और खाना खराब आ गया तो शिकायत करने के लिए वो कंपनी का कस्टमर केयर नम्बर गूगल पर सर्च करता है। गूगल पर नकली वेबसाइट पर नकली नम्बर दिखता है। यूजर फोन करते है और फंस जाते है। फोन करने वाला आपको "एनी डेस्क एप" डाउनलोड करके शिकायत करने को बोलता है, जैसे ही एनी डेस्क पर पैसे वापस लेने के लिए आप अकाउंट डिटेल डालते है साइबर अपराधी की पहुँच आपके खाते तक हो जाती है और साइबर अपराधी पूरा बैंक खाता साफ़ कर जाते हैं।

दूसरा तरीका चल रहा है जो कंपनी से सर्वर/अलर्ट मैसेज आते है, जो हुबहू कंपनी के मैसेज की तरह होते है, जैसे PD-ALERT के नाम से फोन पर मैसेज आया कि आप के पेटीएम् की केवाईसी सस्पेंड हो गयी है, आपकी सेवा बंद की जाती है, अधिक जानकारी के लिए काल करें।

जैसे ही यूजर दिए गये नम्बर पर फोन करता है उधर से आवाज आएगी, मोदी जी के डिजिटल इंडिया में आपका स्वागत है। अपनी केवाईसी ऑनलाइन अपडेट करें। ऑनलाइन केवाईसी अपडेट करवाने के लिए साइबर अपराधी भरोसे में लेकर "रिपोर्ट स्क्रीन शेयर एप " डाउनलोड करवाते है। इसमें एक एप "एनी डेस्क " ज्यादातर साइबर अपराधियों द्वारा प्रयोग किया जा रहा है और दूसरा एप्प है "क्विक सपोर्ट" जैसे ही यूजर ये एप डाउनलोड करता है। साइबर अपराधी को स्क्रीन दिखना शुरू हो जाती है। यूजर जब एप पर अपनी डिटेल भरते है उसके कुछ ही देर में साइबर अपराधी की पहुँच यूजर के बैंक खाते तक हो जाती है और बैंक बैलेंस साफ़ हो जाता हैं।

यह भी पढ़ें- सोशल मीडिया में बार-बार फ्रेंड रिक्वेस्ट और मैसेज भेजना भी साइबर क्राइम, हो सकती है ये सज़ा

रक्षित आगे बताते है, "तीसरा तरीका जिसमें लोग साइबर अपराधियों का शिकार हो रहे है। जैसे किसी ने ओएलएक्स या किसी वेबसाइट पर कोई सामान बेचने के लिए डाला तो विज्ञापन देखकर साइबर फ्राड का फोन आता है, वो शिकार को समझाता है कि पहली बार ऑनलाइन कोई सामान खरीद रहा है पहले एक रुपया ऑनलाइन भेज कर चेक करता हूँ अगर पैसा पहुच गया तो फिर आपके सामन का पैसा ट्रांसफर करूँगा। सामान बेचनें वाले के खाते में एक रुपया आने के बाद वो हैकर कन्फर्म करता है की एक रुपया पहुंचा की नहीं।

कन्फर्म करने के बाद हैकर सामान के पूरे पैसे भेजने का लालच देता है और दुबारा रिक्वेस्ट भेजतें समय हैकर पेमेंट की डाइरेक्शन बदल देता है जो पहले "पेइंग" दिखता है और बाद में "रिक्वेस्टिंग" दिखता है । आम तौर पर लोग इसे समझ नही पाते और रिक्वेस्ट को ओके कर देते है और ओके करते ही पैसे खाते से कट जाते हैं।

आजकल डाटा थेफ़्ट भी बहुत चल रहा है, जैसे किसी ने किसी स्टोर या माल से कोई सामान लिया हैकर उनका डाटा चोरी करके स्टोर के कस्टमर को फोन करके सामान खरीदने पर लकी ड्रा या इनाम का लालच देकर बैंक डिटेल हासिल करते है और पैसे निकाल लेते है।

रक्षित बताते है कि ऑनलाइन बहुत से फ्रेंडशिप एप चल रहे है इनमे समलैंगिंग एप भी शामिल है। इनमे भी साइबर लुटेरे शामिल है इनका उपयोग भी संभलकर करें।

इन बातों का रखे ख्याल

साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन बताते है, "साइबर अपराध का शिकार होने से बचने के लिए कभी ऑनलाइन केवाईसी न भरें, कोई भी कंपनी ऑनलाइन केवाईसी नहीं मांगती। किसी के कहने पर कोई भी एप डाउनलोड न करें। जितने भी ऑनलाइन सर्विस एप है उनके अंदर ही कस्टमर केयर का नम्बर होता है ऑनलाइन सर्विस प्रयोग करने पर एप के बाहर से नम्बर न ले। एटीएम में पासवर्ड भरते समय हाथ से ढककर पासवर्ड डालें अपना एटीएम कभी किसी को न दे।

रक्षित बताते है कि ज्यादातर लोग एटीएम कार्ड को लेदर के पर्स में रखते है ऐसे में एटीएम में साइबर हैकर लाइन में पीछे खड़े होकर अपने कपड़ों में मशीन छिपाकर कार्ड की डिटेल पता कर लेते है और खाते से पैसे निकाल लेते है। अभी बैंकों ने "वीजा कार्ड" शुरू किया है जिसमें बिना पिन और पासवर्ड के दो हजार रुपए तक निकाल सकते है। इसे "टैप एंड पे" कार्ड कहते है। एटीएम कार्ड रखने के लिए सामान्य वायलेट की जगह एंटी आरएसआई वालेट जो की मेटल के बने होते है उनका उपयोग करें और कार्ड को आगे वाली जेब में रखे।

इस पूरे मामले पर उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) सत्य नारायण साबत कहते हैं, " साइबर अपराधों पर नियंत्रण के लिए पूरे प्रदेश में जनपद और जोन स्तर पर साइबर सेल का गठन किया जा चुका हैं। बड़े थानों में भी साइबर सेल का गठन का किया गया है। बड़े स्तर पर तकनीक की मदद से जो क्राइम हो रहे हैं उनके लिए एडवांस साफ्टवेयर और संसाधनों की जरूरत है। साइबर सेल के विवेचकों को समय-समय पर प्रशिक्षण विभाग द्वारा कराया जाता है,साथ ही विभिन्न संस्थाओं जैसे सीबीआई अकेडमी गाजियाबाद या अलग-अलग संस्थानों में भी प्रशिक्षण कराया जा रहा है ताकि साइबर चुनौतियों से निपटा जा सके।"



  

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