पानी जीवन नहीं  मौत दे रहा , दूषित जल से पनप रही बीमारियां

पानी जीवन नहीं मौत दे रहा , दूषित जल से पनप रही बीमारियां

भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा बढ़ी, दूषित पानी पीने से कैंसर, मधुमेह, लीवर और त्वचा जैसी बीमारियों का शिकार हो रहे लोग

Chandrakant Mishra

Chandrakant Mishra   17 Aug 2019 12:40 PM GMT

लखनऊ। " हमारे गाँव के लोगों को कैंसर की बीमारी हो रही है। कैंसर से अभी तक करीब 56 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, करीब दर्जन भर पीड़ित हैं। हमारे रिश्तेदार गाँव आने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि गाँव का पानी पीने से वे भी कैंसर की चपेट में आ सकते हैं। यही नहीं, दूसरे गाँव के लोग न तो हमारे गाँव की बेटियों से शादी करना चाहते हैं और न ही अपनी बेटियों को हमारे गाँव में भेजना चाहते हैं।"

ये दर्द है उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद के बहरौली गाँव के रहने वाले प्रमोद कुमार शर्मा(35वर्ष) का। रामगंगा नदी के किनारे बसे इस गाँव में इंडिया मार्का हैंडपंपों से आर्सेनिक युक्त पानी निकल रहा है। इस गाँव की तरह देश के सैकड़ों गाँव में दूषित पानी लोगों को समय से पहले बूढ़ा, कैंसर, मधुमेह और लीवर संबंधित बीमारियां दे रहा है।

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वर्ल्ड वॉटर डे पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत की करीब 5 फीसदी जनसंख्या (7.6 करोड़ लोग) के लिए पीने का पानी उपलब्ध नहीं है और करीब 1.4 लाख बच्चे हर साल गंदे पानी की वजह से होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते हैं। जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के 639 में से 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है।

वाइल्ड वॉटर रिपोर्ट के अनुसार देश में तेजी से बढ़ती आबादी पानी की जरूरत में दिनों दिन हो रही बेतहाशा बढ़ोत्तरी, भूजल स्तर में कमी लाने वाली कृषि पद्धतियां और सरकारी योजनाओं के अभाव के कारण पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है। हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तकरीब 6.3 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। इसके कारण हैजा, मलेरिया, डेंगू, ट्रेकोमा जैसी बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले भी बढ़ रहे हैं।

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वरिष्ठ भूजलविद और जल एवं भूमि प्रबन्ध संस्थान, मध्य प्रदेश के पूर्व निदेशक कृष्णगोपाल व्यास ने गाँव कनेक्शन को बताया, " औद्योगीकरण के कारण आज कारखानों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है। इनसे निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को नदियों, नहरों, तालाबों आदि किसी अन्य स्रोतों में बहा दिया जाता है, जिससे जल में रहने, वाले जीव-जन्तुओं व पौधों पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही जल पीने योग्य नहीं रहता और प्रदूषित हो जाता है।"


" सबसे पहले कारखानों व औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्पादन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। नदी या अन्य किसी जल स्रोत में अवशिष्ट बहाना या डालना गैरकानूनी घोषित कर प्रभावी कानून कदम उठाने चाहिए। इसके साथ ही समाज व जन साधारण में जल प्रदूषण के खतरे के प्रति चेतना उत्पन्न करनी चाहिए।" उन्होंने आगे बताया।

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जल शक्ति मंत्रालय के डिप्टी एडवाइजर मुरली धर ने गाँव कनेक्शन को बताया, " केंद्र सरकार हर घर तक स्वच्छ जल मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है। पेयजल और स्वच्छता विभाग ग्रामीण भारत को सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। विभाग 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में छोटे पैमाने पर रेलू पाइप जल आपूर्ति प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।"


' फाउंडेशन फॉर मिलेनियम सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट गोल्‍स' (एसडीजी) और रिसर्च फर्म थॉट आर्बिट्रेज के एक संयुक्‍त अध्‍ययन में यह खुलासा हुआ है कि जीवन के लिये अनिवार्य पानी और भोजन के दूषित होने से देश को वर्ष 2016-17 में 7,37,457 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह भारी-भरकम धनराशि देश के कुल जीडीपी का 4.8 प्रतिशत है। अगर हालात को फौरन नहीं संभाला गया तो वर्ष 2022 तक यह नुकसान 9,50,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा भी छू सकता है।


द वायर न्यूज पोर्टल में प्रकाशित एक खबर के अनुसार वर्ष 2018 में पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय एजेंसी 'एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली' (आईएमआईएस) द्वारा देश में पानी की गुणवत्ता को लेकर एक सर्वे कराया, जिसके अनुसार राजस्थान में सबसे ज्यादा 19,657 बस्तियां और यहां रहने वाले 77.70 लाख लोग दूषित जल पीने से प्रभावित हैं। आईएमआईएस द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को सौंपे गए आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं। इस पानी की उपलब्धता के दायरे में 47.41 करोड़ आबादी आ गई है।

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राम मनोहर लोहिया संस्थान, लखनऊ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीतू ने बताया, " फ्लोराइड वाला पानी हर किसी के लिए नुकसानदायक होता है। पानी में यदि तय मात्रा से ज्यादा फ्लोराइड के अंश हैं तो यह निश्चित रूप से मानव शरीर पर प्रतिकूल असर डालेगा। वहीं, अगर गर्भवती महिला लगातार फ्लोराइड युक्त पानी पी रही है तो उस महिला के साथ-साथ गर्भ में पल रहे शिशु के लिये बहुत ही हानिकारक होता है। कई बार इसके दुष्प्रभाव से बच्चा अपंग भी पैदा हो जाता है। ऐसे में साफ पानी ही पीना चाहिए।"



विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि पीने का स्वच्छ पानी और सेनिटेशन की उचित व स्तरीय सुविधाएं लोगों को मुहैया करा दी जाएं तो पूरी दुनिया में बीमारियों से पड़ने वाले बोझ को 9 फीसदी और भारत समेत दुनिया के 32 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में 15 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

पांच जुलाई 2019 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करते हुए कहा था, " देश में 'हर घर नल और हर घर जल' पहुंचाया जाएगा। 'जल जीवन मिशन' के तहत वर्ष 2022 तक सभी ग्रामीण घरों में 'हर घर जल' के लिए राज्यों के साथ मिलकर जल शक्ति मंत्रालय काम करेगा। भारत में पानी की सुरक्षा और सभी भारतीयों को साफ पेयजल उपलब्ध कराना मोदी सरकार की पहली प्राथमिकता है। इस दिशा में हमारी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है।"

पानी पर काम करने वाली संस्था वाटर एड के रीजनल मैनेजर फारुख ने बताया, " भूमिगत जल में कई तरह के तत्व पाए जाते हैं जो मानव शरीर के लिए घातक होते हैं। देश के कई राज्यों में भूजल काफी दूषित जो चुका है। सरकार हर घर को पानी मुहैया कराने की बात कर रही है, लेकिन सरकार को अभी गुणवत्ता युक्त पानी पर विशेष ध्यान देना चाहिए।"

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