बेहमई कांड: 39 सालों से न्याय की आस लगाए दुनिया छोड़ गए बेहमई कांड के वादी राजाराम, क्या इससे केस पर असर पड़ेगा?
बेहमई हत्याकांड में राजाराम सिंह ही वे व्यक्ति थे जिन्होंने घटना के बाद इस मामले की एफआईआर थाने में दर्ज कराई थी। इस हत्याकांड में इनके परिवार के सात लोगों की हत्या हुई थी।
Neetu Singh 15 Dec 2020 5:20 PM GMT
बेहमई केस के मुख्य वादी 72 वर्षीय राजाराम सिंह ही वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बेहमई हत्याकांड की एफआईआर थाने में दर्ज कराई थी। पिछले 39 वर्षों से वो इस केस को लड़ रहे थे। इस हत्याकांड में इनके परिवार के सात लोगों की हत्या हुई थी। तब उन्होंने घटनास्थल के समय महज 100 मीटर की दूरी पर झाड़ियों के पीछे छिपकर अपनी जान बचाई थी। एक लंबे संघर्ष के बाद 13 दिसंबर 2020 को उनकी मौत हो गई।
इसी साल चार जनवरी 2020 को फैसला आने से पहले गाँव कनेक्शन ने बेहमई में मुख्य वादी राजाराम सिंह से मुलाक़ात की थी। उस समय राजाराम सिंह अपने 39 वर्षों का संघर्ष बता रहे थे, "केस लड़ते-लड़ते हमारी उमर गुजर गयी, दुःख यही है कि इतने वर्षों में कुछ हुआ नहीं। अपनी आँखों के सामने अपनों को मरते देखा है। खुद को कैसे तसल्ली दें? बदला लेने के लिए हम तड़प रहे हैं, पर इस न्याय व्यवस्था के आगे हम क्या कर सकते हैं? सरकार का कोई आदमी हमारी गांव की विधवाओं से मिलने नहीं आया। उनसे मिलिए और देखिए कि वो किस तकलीफ में जी रही हैं। हर बार तारीख बढ़ा दी जाती है।"
न्याय के इंतजार में राजाराम सिंह की पूरी जिंदगी बीत गई, लेकिन उनकी आखिरी इच्छा अधूरी ही रह गई। इस केस में कई वादी और आरोपियों की पहले ही मौत हो चुकी है। मूल केस डायरी भी खो चुकी है।
बेहमई गाँव के लोगों ने अब इस मामले में न्याय मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी है। बीते 39 वर्षों से राजाराम सिंह मुकदमे की पैरवी कर रहे थे, ये हर तारीख पर कोर्ट जाते थे। बीते चार जनवरी को मूल केस डायरी न मिलने के बाद फैसला टल जाने से वह बहुत आहत थे।
बेहमई केस को लड़ रहे कानपुर देहात के वकील एवं ज्वाइंट सेक्रेटरी प्रशासन अहिबरन सिंह यादव ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "सभी साक्ष्य हो चुके हैं, वादी राजाराम सिंह की मौत से इस केस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। केस में काफी आरोपी थे, जिसमें केवल पांच ही बचे हैं बाकी सबकी मौत हो चुकी है, दो अभी मरणासन्वस्था में हैं। केस डायरी भी खो चुकी है, मुझे नहीं लगता है इस मामले में अब न्याय मिल पाएगा। वादी और आरोपी में से काफी लोगों की मौत हो चुकी है, अब धीरे-धीरे ऐसे ही मुकदमा बंद हो जाएगा।"
इस वीडियो में देखिए मुख्य वादी राजाराम सिंह ने जनवरी 2020 में क्या कहा था?
कानपुर देहात जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर राजपुर ब्लॉक के यमुना किनारे बसा बेहमई गाँव वर्ष 14 फरवरी 1981 को देशभर में तब चर्चा में आया जब दस्यु सुन्दरी के नाम से मशहूर फूलन देवी के गिरोह ने बेहमई गांव में 20 लोगों को गोलियों से भूना था। बेहमई गांव का यही वह हत्याकांड है जिसने देशभर में फूलन देवी की छवि खूंखार डकैत की बना दी थी। कई मीडिया रिपोर्ट और शेखर कपूर द्वारा बनाई गयी फिल्म 'बैंडिट क्वीन' के अनुसार फूलन देवी ने इस घटना को इसलिए अंजाम दिया था क्योंकि फूलन देवी के साथ उस समय के कुख्यात डाकू लालाराम और श्रीराम ने बहुत समय तक गैंगरेप किया और तमाम तरह के अत्याचार किये थे।
इन डाकुओं ने बेहमई गाँव में फूलन देवी को एक कमरे में बंद कर दिया था जिसमें गाँव के कई लोगों ने कई दिनों तक उसका गैंगरेप किया था। फूलन देवी इनके चंगुल से बमुश्किल भाग पाई थी। अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए फूलनदेवी ने डाकू बनकर इस घटना को अंजाम दिया था। वहीं इस समय इस घटना को बेहमई गाँव में कोई भी मानने को तैयार नहीं है। फूलन देवी की हत्या 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
राजाराम सिंह के भतीजे बाबू सिंह (40 वर्ष) बताते हैं, "केस लड़ते-लड़ते चाचा की मौत हो गयी। बहुत समय से केस की तारीखें टल रहीं थी इससे वो काफी निराश थे, उन्हें घबराहट हो रही थी कि 39-40 केस लड़ा, पैसा और समय दोनों बर्बाद हुआ पर नतीजा जीरो रहा। इस काण्ड में मेरे पिता और दो चचेरे भाई भी मारे गये थे, उस समय मैं अपने पिता की गोद में था। अब न्याय मिलना असंभव लग रहा है। जब सब सुबूत थे गवाह थे तब कुछ नहीं हुआ, केस डायरी ही गुम कर दी।"
बेहमई कांड के बाद पुलिस फूलन देवी को कभी गिरफ्तार नहीं कर पायी। फूलन देवी ने मध्य प्रदेश पुलिस के सामने 1983 में अपनी कुछ शर्तों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था। सरकार ने फूलन देवी की ये शर्ते मान ली थीं। फूलन देवी ने पुलिस के सामने ये शर्त रखी थी कि उनके गैंग के किसी व्यक्ति को फांसी न दी जाए, उनके पिता की जमीन वापस की जाए, उनके भाई-बहनों को सरकारी नौकरी दी जाए। फूलन देवी लगभग 12 साल जेल में रहने के बाद रिहा हुई। उन्हें 1996 में समाजवादी पार्टी से टिकट मिला जिससे वो मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव लड़ीं। दो बार सांसद बनी और सांसद के दौरान ही 25 जुलाई 2001 में उनकी हत्या कर दी गयी।
जिस जगह पर डकैतों ने ग्रामीणों को गोलियों से भूना था उस जगह पर गाँव के लोगों ने शहीद स्मारक बनाकर मरे हुए 20 लोगों का नाम, उम्र, गाँव का नाम, पिता का नाम समेत घटना की तारीख, सन और दिन का भी उल्लेख किया है। आज भी इस स्मारक की गाँव के लोग पूजा करके अपनों को याद करते हैं।
बेहमई गाँव के ग्राम प्रधान जयवीर सिंह कहते हैं, "मुझे समझ नहीं आ रहा है सरकार ने अभी तक इस केस में फैसला क्यों नहीं सुनाया? गुनाह करने पर अपराधियों को सजा मिलती है पर केस में ऐसा अबतक क्यों नहीं हुआ? लड़ाई तो हम अभी भी लड़ेंगे पर न्याय नहीं मिलेगा, क्योंकि जब 39 सालों में कुछ नहीं हुआ तो अब तो क्या होगा?"
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