जानिए क्या है एनएमसी विधेयक, डॉक्टर क्यों हैं इसके खिलाफ ?

राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक 2019 राज्यसभा में पास हो गया, सरकार ने इस बिल को मेडिकल चिकित्सा की दिशा में सुधार बताया है, वहीं इस विधेयक के विरोध में देशभर के हजारों रेजिडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   2 Aug 2019 12:36 PM GMT

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जानिए क्या है एनएमसी विधेयक, डॉक्टर क्यों हैं इसके खिलाफ ?

लखनऊ। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक 2019 को गुरुवार को राज्यसभा में पास कर दिया गया। सरकार ने इस बिल को मेडिकल चिकित्सा की दिशा में बहुत बड़ा सुधार बताया है। वहीं इस विधेयक में संशोधन करने के लिए देशभर के हजारों रेजिडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. हर्षवर्धन ने बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक 2019 को राज्यसभा में पेश किया। उन्होंने कहा कि इस आयोग के गठन का प्रावधान करने वाला यह विधेयक चिकित्सा क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार के मार्ग को प्रशस्त करेगा। यह विधेयक इस सप्ताह सोमवार को लोकसभा से पारित किया जा चुका है।

उच्च सदन में विधेयक पेश करते हुये डा. हर्षवर्धन ने कहा, " इस विधेयक का मकसद चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना और शुल्क संबंधी अनियमितताओं को दूर करते हुये चिकित्सा सेवाओं को स्तरीय बनाना है। एनएमसी, भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं करने की मोदी सरकार की नीति के तहत लाया गया है। इसे चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया जायेगा। उन्होंने कहा कि सरकार सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है।"

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" भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) में लंबे समय से भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही थीं। इस मामले में सीबीआई जांच भी हुई। ऐसे में इस संस्था के कायाकल्प की जरूरत हुई। डा. हर्षवर्धन ने कहा एमसीआई में सुधार के लिये गठित रंजीत राय चौधरी समिति और विभाग संबंधी संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर एनएमसी के गठन के लिये यह विधेयक पेश किया गया है। विधेयक में समितियों के 56 में से 40 सुझावों को शामिल किया गया है। जबकि नौ सुझावों को आंशिक रूप से शामिल किया गया है।" उन्होंने आगे कहा।

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जानें इस राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में आखिर क्या है

- इस विधेयक में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग ( राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग) के गठन का प्रस्ताव किया गया है। यह आयोग मेडिकल (आयुर्विज्ञान) शिक्षा की उच्च गुणवत्ता और उच्च स्तर को बनाए रखने के लिए नीतियां बनाएगा। इसके अलावा मेडिकल संस्थाओं, अनुसंधानों और चिकित्सा पेशेवरों के नियमन के लिए नीतियां निर्धारित करेगा।

- इसके अलावा यह स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबंधी देखभाल से संबंधित बुनियादी ढांचे समेत स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की अपेक्षाओं और जरुरतों तक पहुंच बनाना सुनिश्चित करेगा तथा ऐसी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए एक रुपरेखा तैयार करना।

- इसमें कहा गया है कि सभी मेडिकल संस्थाओं में स्नातक आयुर्विज्ञान शिक्षा के लिए प्रवेश के लिहाज से एक सामान्य राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा होगी। आयोग अंग्रेजी और ऐसी अन्य भाषाओं में परीक्षा का संचालन करेगा।

- आयोग सामान्य काउंसलिंग की नीतियां भी निर्धारित करेगा। इसके तहत स्नातक आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड, स्नातकोत्र आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड और चिकित्सा निर्धारण और रेटिंग बोर्ड तथा शिष्टाचार और चिकित्सक पंजीकरण बोर्ड का गठन करेगी।


- स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान शिक्षा बोर्ड का काम पीजी स्तर पर और अति विशिष्ट (सुपर-स्पेशलिटी) स्तर पर मेडिकल शिक्षा के स्तर बनाए रखना और उससे संबंधित पहलुओं की निगरानी करना है।

- इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार, उस राज्य में यदि वहां कोई चिकित्सा परिषद नहीं है तो इस कानून के प्रभाव में आने के तीन वर्ष के भीतर उस राज्य में चिकित्सा परिषद स्थापित करने के लिए आवश्यक उपाय करेगी।

- विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि किसी भी देश में अच्छी स्वास्थ्य देखरेख के लिए मेडिकल शिक्षा का भलीभांति क्रियाशील विधायी ढांचा जरूरी है। इसमें कहा गया कि 1956 में लागू भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) अधिनियम समय के साथ तालमेल नहीं रख सका। इस पद्धति में विभिन्न अड़चनें पैदा हो गई हैं जिनका मेडिकल शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

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आईएमए क्यों कर रहा है एनएमसी का विरोध?

आईएमए लखनऊ के प्रेसिडेंट डा. जीपी सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, " इस बिल के लागू होने से देश में मेडिकल शिक्षा महंगी हो जाएगी क्योंकि इस बिल में कॉलेज की 50 फीसदी से अधिक सीटों पर प्रवेश का अधिकार कॉलेज प्रबंधन को दे दिया जाएगा। इसके तहत गैर-चिकित्सा शिक्षा प्राप्त लोगों को अंग्रेजी चिकित्सा का लाइसेंस मिलेगा। यानी गैर- प्रोफेशनल लोग जो नीम-हकीमी करते हैं, उन्हें सर्टिफिकेट मिल जाएगा। इससे लोगों की जान खतरे में पड़ जाएगी।"

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के रेजिडेंट डॉक्टर राहुल कुमार का कहना है," इस विधेयक के आने से झोला छाप डॉक्टरों को भी डॉक्टर बनने का मौका मिल सकता है जो नहीं होना चाहिए। सरकार को इन पर फिर से गौर करने की आवश्यकता है। एमसीआई में भ्रष्टाचार होने की बात कह कर चिकित्सा शिक्षा का केन्द्रीयकरण किया जा रहा है।"

फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) के महासचिव डॉ. सुनील अरोड़ा का कहना है, " देश में डॉक्टरों की भारी कमी है और सरकार चिकित्सा शिक्षा में विस्तार की राह में एमसीआई पर रोड़ा अटकाने की बात कह रही है। सरकार एमसीआई में भ्रष्टाचार होने की बात कह रही है, ऐसे में सरकार को इस विधेयक को लाने के बजाय एमसीआई को भ्रष्टाचार से मुक्त करने पर ध्यान देना चाहिये था। एमसीआई को खत्म करना कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं है। योग्य एवं प्रशिक्षत चिकित्सकों को ही चिकित्सा सेवा करने देना चाहिये।"

चिकित्सा जगत ने यह कहते हुए विधेयक का विरोध किया कि विधेयक ''गरीब विरोधी, छात्र विरोधी और अलोकतांत्रिक'' है। भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) ने भी विधेयक की कई धाराओं पर आपत्ति जताई है। आईएमए ने बुधवार को 24 घंटे के लिए गैर जरूरी सेवाओं को बंद करने का आह्वान किया था। एम्स आरडीए, फोर्डा और यूनाइटेड आरडीए ने संयुक्त बयान में कहा था कि इस विधेयक के प्रावधान कठोर हैं।

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