एक सड़क और पुल के लिए जूझ रहा है पश्चिम बंगाल का यह गांव

मानसून के समय में नदी गांव को बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग-थलग कर देती है। यहां ना तो कोई सड़क है, और ना ही परिवहन का कोई अन्य साधन। एकमात्र जर्जर पुल है, जिसकी हालत भी ऐसी है कि कभी भी ढह जाए।

Gurvinder SinghGurvinder Singh   28 March 2021 1:30 AM GMT

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उद्धरणपुर बिधानपल्ली (पश्चिम बंगाल)। 30 साल की सोमा सरकार शादी करना चाहती हैं। इसके लिए वे बस इतना चाहती हैं कि इस विधानसभा चुनाव के बाद उनके यहाँ सड़क और पुल दुरुस्त हो जाये।

सोमा के लिए कई अच्छे रिश्ते आते हैं पर बात नहीं बन पाती। वह गुस्से से कहती हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वह जहां रहती हैं, वह बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग है और वहां परिवहन की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

सोमा पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के उद्धरणपुर बिधानपल्ली गांव में रहती हैं। यह गांव कोलकाता से उत्तर दिशा की ओर लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित है। इस इलाके को बाहरी दुनिया से जोड़ने के लिए केवल एक ही पुल है। सोमा कहती हैं कि यह भी आने वाले मानसून में ढह जाएगा और मैं कुंवारी ही रह जाऊंगी।

एक तरफ पश्चिम बंगाल का आगामी विधानसभा चुनाव सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी के भाग्य का फैसला करने जा रहा है। वहीं दूसरी ओर उद्धणपुर बिधानपल्ली के रहने वाले 2,000 लोग हैं जो अपने गांव के लिए केवल एक सड़क और पुल चाहते हैं। एक सड़क और पुल उनका जीवन बदल सकता है।

उद्धरणपुर बिधानपल्ली पश्चिम बंगाल में गांवों की हालत दर्शाने के लिए एक उदाहरण की तरह है। पश्चिम बंगाल राज्य की जनसंख्या लगभग 10 करोड़ है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार इसमें से 72 फीसदी से अधिक लोग गांवों में रहते हैं। इसी तरह इनमें से 20 फीसदी लोग ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आते हैं।

गांव के चारों ओर अजय नदी (बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बहने वाली एक नदी) की एक सहायक नदी बहती है। मानसून के समय में यह नदी गांव को बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग-थलग कर देती है। यहां ना तो कोई सड़क है और ना ही परिवहन का कोई अन्य साधन है। एकमात्र जर्जर पुल है, जिसकी हालत ऐसी है कि कभी भी ढह जाए।

पुल का निर्माण करके गांव को बाहरी दुनिया से जोड़ने के लिए कुछ कमजोर प्रयास किए गए हैं। पहले एक कमजोर पुल का निर्माण किया गया था, लेकिन यह साल 2017 के मानसून में ढह गया। इसके बाद एक अन्य पुल साल 2019 में बना, जो कि जर्जर हालत में है और मुश्किल से खड़ा है। एक ग्रामीण बिप्लब बिस्वास कहते हैं, "पुल लंबे समय तक नहीं रहेगा क्योंकि यह कमजोर है। हमें एक बार फिर इस नदी को तैर कर पार करना होगा।"

दूसरे पुल के बनने से पहले ग्रामीणों को नदी को पार करने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। उन्हें अपने कपड़ों को उल्टे छतरियों में रखना पड़ता था, ताकि उन्हें भीगने से बचाया जा सके। इसके बाद उन्हें नदी को तैरकर पार करना पड़ता था। यहां नावें कम हैं और जो हैं भी वे बहुत खराब स्थिति में हैं। 41 वर्षीय बिप्लब गाँव कनेक्शन से कहते हैं कि नदी में विषैले सांप हैं और उनके साथ तैरना कोई मज़े का काम नहीं है।

एक मजबूत पुल की मांग को लेकर चुनाव

पश्चिम बंगाल में इस वक्त चुनावों के चलते राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी अपने चरम पर है। विधानसभा चुनाव 27 मार्च से शुरू होने वाला है। यह 29 अप्रैल तक आठ चरणों में संपन्न होगा। इसके परिणाम 2 मई को घोषित किए जाएंगे। केतुग्राम विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले उद्धरणपुर बिधानपल्ली गांव के लोग 22 अप्रैल को मतदान करेंगे।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवारों का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवारों के साथ होना है।

लेकिन ऐसा लगता है कि उद्धरणपुर बिधानपल्ली के निवासियों को नेताओं के बयानबाजी से कोई फर्क नहीं पड़ता। गांव की ही रहने वाली 40 वर्षीय अन्ना मोंडल घोषणा करते हुए कहती हैं, "चुनाव के दौरान, वे (उम्मीदवार) हाथ जोड़कर हमारे पास आते हैं और फिर जीत के बाद गायब हो जाते हैं। हमने उस उम्मीदवार को वोट देने का फैसला किया है जो हमारे लिए एक मजबूत पुल और सड़क बनाएगा।"

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टीएमसी ने जनता से कई वादे किए हैं, जिनमें ग्रामीण इलाकों में सड़कों को दुरुस्त करने का एक वादा भी शामिल है। उद्धरणपुर बिधानपल्ली की महिलाएं कहती हैं, "ये सभी केवल खोखले वादे हैं। हम कई सालों से खराब सड़क और जर्जर पुल से परेशान हैं, पर हमारी कोई सुनवाई नहीं है।"

मोंडल ने कहा, "महिलाओं को निकटतम स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने के लिए आठ किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है।" फिलहाल वहां जो पुल है, वह इतना चौड़ा और मजबूत नहीं है कि कोई उससे गुज़र सके। मोंडल ने आगे कहा, "कई महिलाओं को अपनी जान से केवल इसलिए हाथ धोना पड़ा क्योंकि वे समय पर डॉक्टर के पास नहीं पहुंच सके।" मोंडल गुस्से में शिकायत करते हुए कहती हैं, "क्या यही विकास है? हमने नेताओं के सामने कई बार इम मामले को उठाया है लेकिन हमें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।"

हर रोज गुज़रना पड़ता है खतरे से

गांव तक पहुंचने के लिए आगंतुकों को नौकाओं में बैठकर नदी को पार करना पड़ता है। इतना ही नहीं, मोटरसाइकिलों को भी क्रॉसिंग के लिए नाव के ऊपर चढ़ाना पड़ता है। सांतनु चटर्जी जो हर दिन 35 किलोमीटर दूर कटवा शहर में अपनी दुकान तक जाने के लिए नाव का उपयोग करते हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया, "नदी काफी गहरी है, ऐसे में नाव पर दोपहिया वाहनों को चढ़ाना काफी डरावना है, लेकिन हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं है। सरकार को एक पुल का निर्माण करना चाहिए, ताकि हमें हर दिन जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर ना होना पड़े।"

27 साल के दीपांकर सरकार कहते हैं, "मानसून के दौरान, चप्पल पहनकर गीली मिट्टी में चलना या उसमें दोपहिया वाहन चलाना असंभव हो जाता है।" उन्होंने आगे कहा कि पैदल चलते हुए और जर्जर पुल को पार करते हुए निकटतम सड़क से गांव तक पहुंचने में लगभग आधे घंटे का समय लग जाता है।

पोद्दोरानी बिस्वास, जो कि किसान होने के साथ ही एक माँ भी हैं, अपने बेटे को लेकर चिंतित हैं। उनका बेटा पांचवी कक्षा में पढ़ता है। उसे स्कूल जाने के लिए दूसरे गाँव की यात्रा करनी पड़ती है। बिस्वास ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं मानसून के वक्त काफी डरी हुई रहती हूं। बाढ़ की स्थिति में स्कूल जाने के लिए उसे (बेटे को) नदी को पार करना पड़ता है।" उद्धरणपुर बिधानपल्ली में एक सरकारी स्कूल है, जहां केवल चौथी कक्षा तक की ही पढ़ाई होती है। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए गांव के बच्चों को दूसरे गांव जाना पड़ता है।

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उद्धरणपुर बिधानपल्ली के सरकारी स्कूल में केवल 24 छात्र हैं। यहां ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों की बेहतर पढ़ाई के लिए उन्हें कहीं बाहर भेजना पसंद करते हैं। इस स्कूल में कक्षाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। सरकारी स्कूल के शिक्षक प्रभारी संदीप कुमार बरई ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मानसून के दौरान, जहरीले सांप अक्सर कक्षाओं में प्रवेश कर जाते हैं। एक सांप ने दो छात्रों को पिछले साल काट लिया था, लेकिन सौभाग्य से उनकी जान बच गई।"

उद्धरणपुर बिधानपल्ली में सड़क और परिवहन की कमी का खामियाजा किसानों को भी भुगतना पड़ रहा है। वे शिकायत करते हैं कि उन्हें उनकी फसलों का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। अनाज खरीदार छोटे वाहनों में गाँव आते हैं, (बड़े ट्रक गाँव तक नहीं पहुँच सकते हैं) और इसलिए वे किसानों से परिवहन के लिए अतिरिक्त शुल्क लेते हैं। पोद्दोरानी ने बताया, "अगर हम अपनी उपज को बेचने के लिए खुद लेकर जाएं तो इसका भी कोई मतलब नहीं है, इस स्थिति में भी हमें परिवहन शुल्क देना ही पड़ता है। हमें अपनी उपज को खरीदारों के मन-मुताबिक कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।"

अब भी मिल रहे हैं केवल आश्वासन

तृणमूल कांग्रेस के विधायक और केतुग्राम विधानसभा से उम्मीदवार शेख शाहनवाज ने गांव कनेक्शन को आश्वासन देते हुए कहा, "हम ग्रामीणों को हो रही परिवहन संबंधी समस्याओं से अवगत हैं। हमारे पास एक योजना है और निश्चित रूप से सत्ता में आने के बाद समस्याओं का समाधान किया जाएगा।" उन्होंने स्वीकार किया कि ग्रामीणों को कई गंभीर समस्याओं से गुज़रना पड़ रहा है। जब हमने उनसे पूछा कि एक दशक से अधिक समय तक टीएमसी सत्ता में थी फिर भी ग्रामीणों की समस्या जस की तस क्यों बनी हुई है, तो वे इस सवाल को टाल गए।

जब गाँव कनेक्शन ने स्थानीय खंड विकास अधिकारी अमित कुमार शॉ से बात की, तो वे भी हमारे सवालों से बचते नज़र आए। उन्होंने कहा, "हमें पुल के संबंध में ग्रामीणों से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। मुझे उनकी समस्याओं के बारे में अधिक जानकारी नहीं है क्योंकि मैंने हाल ही नौकरी ज्वाइन की है।" उन्होंने वादा करते हुए आगे कहा, "मैं निश्चित रूप से उनके मुद्दों पर ध्यान दूंगा।"

अनुवाद- शुभम ठाकुर

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