15 साल में 2 लाख पौधे लगाकर तैयार कर दिया जंगल, पौधे लगाने वाली सरकारों को इनसे सीखना चाहिए

झारखंड के 65 वर्षीय रामेश्वर सिंह खरवार ने वो कर दिखाया जो सरकारें लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं कर पाती हैं। इन्होंने बंजर भूमि पर गांव वालों के साथ मिलकर न सिर्फ लगभग दो लाख पेड़ पौधे लगाये, बल्की उनकी देखभाल भी की।

Md. Asghar khanMd. Asghar khan   9 Aug 2020 5:00 PM GMT

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15 साल में 2 लाख पौधे लगाकर तैयार कर दिया जंगल, पौधे लगाने वाली सरकारों को इनसे सीखना चाहिए

वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 24 घंटे के भीतर पांच करोड़ पेड़ लगाये गये, लेकिन देखरेख के अभाव में अधिकतर पौधें नष्ट हो गये। पर्यवारण पर काम करने वाले राजस्थान के पद्मश्री हिम्मताराम भाम्भू की मानें तो उनके राज्य में सरकार ने पौधरोपण पर करोड़ों रुपए खर्च किये लेकिन उनकी देखरेख नहीं की। जिसका नतीजा यह हुआ कि पौधे नष्ट होते गये। दूसरे कई राज्यों में भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन झारखंड के आदिवासी समाज ने इस ढर्रे को बदला है।

झारखंड के लातेहार जिला के रहने वाले 65 वर्षीय रामेश्वर सिंह खरवार ने वो कर दिखाया जो सरकारें लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं कर पाईं। वे अपने गांव में पिछले 15 वर्षों से जल, जंगल के संरक्षण पर काम कर रहे हैं। उन्होंने बंजर भूमि पर गांव वालों के साथ मिलकर न सिर्फ लगभग दो लाख पेड़ पौधे लगाये, बल्की उनकी देखभाल भी की।

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इस सामूहिक प्रयास के लिए जिला प्रशासन भी उन्हें कई बार सम्मानित कर चुका है। लातेहार जिला के सदर प्रखंड में आने वाला हेठपोचरा पंचायत का ललगढ़ी गांव दूसरे कई गांवों के लिए मिसाल बन चुका है। जंगल से लगे इस आदिवासी बाहुल करीबन दो सौ घरों की आबादी वाले गांव में ग्रामीणों ने अब तक वनभूमि पर लगभग दो लाख पेड़-पौधे लगाए हैं, जो अब वृक्ष हो चुके हैं।

इस बारे में ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह बताते हैं, "मैं तब वन सुरक्षा समिति का अध्यक्ष था। वर्ष 2004 में हम लोगों ने वन विभाग की मदद से एक सीजन में वनभूमि पर 83 हजार 300 पौधे लगवाये। 60-70 लोग की तीन पाली (शिफ्ट) बनाकर सुबह, दोपहर, रात पेड़ों की पहरेदारी की। दो साल बाद जांच हुआ तो हमारे लगाए गए 85 प्रतिशत पेड़ स्वस्थ पाये गये। इसके लिए गांव को मुख्यमंत्री मधु कोड़ा (2006 तत्कालीन सीएम) ने 15 हजार का इनाम भी दिया। अब तक हम लोग दो लाख पेड़ लगा चुके है।"

रामेश्वर सिंह खरवार के मुताबिक उनके गांव का अनुकरण कर लातेहार के कई गांव में पेड़, पौधे लगाने का अभियान शुरू हुआ। यह बात जिला के डीसी (उपायुक्त) जिशान कमर भी मानते हैं कि लातेहार के कई गांवों में पेड़-पौधे लगाने का अभियान चल रहा है।

वे आगे कहते हैं, "लालगढ़ी गांव का काम काफी सराहनीय है। वर्ष 2004 में वहां पौधरोपण हुआ था। तब ललगढ़ी गांव की इस मुहिम की जिला प्रशासन और यहां के तत्कालीन डीसी ने ग्रामीणों की मदद भी की थी।"

लातेहार में जगंल का प्रतिशत काफी बढ़ा है और झारखंड में सबसे अधिक जंगल लातेहार में ही है। ललगढ़ी गांव के लोग इसे अब अपनी उपलब्धि बताते हैं और बढ़े जंगल के प्रतिशत को अपनी मेहनत से जोड़कर देखते हैं। झारखंड को जंगलों का राज्य कहा जाता है।

झारखंड के कुल क्षेत्रफल 79,716 वर्ग किलोमीटर का 29.62 फीसदी हिस्सा वनों से आच्छादित यानी जंगलों से ढका हुआ है। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 की मानें तो झारखंड में 177 पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के लातेहार में सर्वाधिक जंगल है। लातेहार के कुल क्षेत्रफल का 56.08 फीसदी जंगल है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि पिछले दस साल में वनों का कवरेज एक फीसदी से अधिक बढ़ा है। वर्ष 2011 में राज्य में कुल भूमि का 28.02 फीसदी भूमि पर जंगल था जो 2019 में बढ़कर 29.62 फीसदी हो गया है।

रामेश्वर सिंह खरवार का कहना हैं, "आज उनका गांव हरियाली से भरा है, जहां कभी बंजर जमीन हुआ करती थी। जंगल का घनत्व बढ़ा है, जिसका लोगों को फायदा भी हो रहा है। पेड़, पौधों ने जब वृक्ष का रूप लिया तो उससे गांव और आसपास के इलाके को बहुत लाभ मिल रहा है। पहले वर्षा समय पर नहीं होती, अब इसमें काफी सुधार आया है। जल स्तर का स्त्रोत काफी बढ़ गया है। गांव में लगभग हर घर में कुआं है और कुएं में हमेशा पानी रहता है। खेती-बाड़ी में अच्छी हो गई है।"

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