बिजनौर: जान हथेली पर रखकर रोज गंगा पार करते हैं हजारों ग्रामीण, कब बनेगा खादर में पक्का पुल?

पश्चिमी यूपी के बिजनौर में 14 फरवरी को चुनाव हैं। बिजनौर में गंगा के खादर में सैकड़ों गांव बसे हैं। इनमें से दर्जनों गांव ऐसे हैं, जिनकी जमीनें गंगा पार हैं। ये लोग रोज जान जोखिम में डालकर अपने काम करते हैं। कई बार हादसे हुए हैं, जिनमें लोगों की जान गई, कई बार तो शव तक नहीं मिले हैं। क्या कहता है गांव सीरीज में इसी इलाके से ग्राउंड रिपोर्ट

Arvind ShuklaArvind Shukla   10 Feb 2022 1:07 PM GMT

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डेवलगढ़ (बिजनौर)। शुक्रवार का दिन था, तारीख थी 24 अगस्त साल 2018, दो दिन बाद रक्षाबंधन था, तो गांव की महिलाएं जल्दी-जल्दी काम निपाटने में जुटी थीं, जिसमे एक काम चारे का इंतजाम भी था। गांव की दर्जनों महिलाएं और कुछ पुरुष नाव से गंगा को पार करके खादर (गंगा रेतीला इलाका) के खेतों में गई थीं। लेकिन एक घंटे बाद गंगा में सैलाब आ गया। खेतों से आनन-फानन में लोग नाव पर बैठे और भगवान का नाम लेते हुए गांव की तरफ चल पड़े। लेकिन तभी एक लहर आ गई और नाव में पानी भर गया। नाव में उस वक्त एक दुधमुही बच्चे समेत 27 लोग सवार थे।

"जब हम लोग चारा लेने गए थे तो पानी कम था लेकिन लौटने लगे तो बहुत पानी हो गया था। नाव लेकर चले एक झाल (लहर) नाव में आई नाव डूब गई। हमने चारे (गन्ने का अगौरा) की गठरी पकड़कर जान बचाई। बाकी औरतें मर गईं। एक तो 4-5 महीने की बच्ची थी।" इस नाव हादसे में बचने वाली 37 साल की रामवती गांव कनेक्शन को बताती हैं।

रामवती का गांव डेवलगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में आता है। लखनऊ से उनके गांव डेवलगढ़ राजारामपुर की दूरी 450 किलोमीटर और दिल्ली से करीब 180 किलोमीटर है। ये इलाका मुजफ्फरनगर में शुक्रताल तीर्थ के नजदीक है। 24 अगस्त 2018 को एक नाव हादसे में 27 लोग डूब गए थे, जिनमें 17 की जान बच गई। बाकी 10 महिलाएं और लड़कियां थी, जिनमें से 5 के शव मिल गए थे, 5 का सुराग नहीं लगा। पुरुष किसी तरह तैर कर कई किलोमीटर दूर निकल पाए थे, कुछ महिलाएं भी चारे के सहारे बच गई थीं। चारे के हल्के गठ्टर के सहारे कई महिलाएं और पुरुष उससे पकड़े-पकड़े 5-15 किलोमीटर तक बह गए थे। कुछ लोगों को गांवों के लोगों ने जान जोखिम मं डालकर बचाया था।

बिजनौर के मंडावर थाना इलाके का डेवलगढ़ गांव में 2018 में हुए दर्दनाक हादसे के बाद ये पैंटून पुल बना था। फोटो- मो. आरिफ

"मरने वाली सभी महिलाएं मेरे घर और परिवार की थीं, ऐसे हादसे यहां होते ही रहे हैं। क्योंकि गांव के लोगों की गंगा पार करना मजबूरी है। हमारे लोगों के घर गंगा के इस तरफ तो खेत दूसरी तरफ हैं इसलिए रोज ही ये जोखिम लेना होता है। इस साल तो पैंटून पुल बन गया। वर्ना नाव ही एक मात्र सहारा थी। यही हाल यहां के करीब 30 गांवों का है।" गांव के बृजपाल चौहान (35वर्ष) कहते हैं।

बृजपाल और दूसरे ग्रामीण जब गांव कनेक्शऩ की टीम को गंगा के हादसों और अपना दर्द बता रहे थे, उसी वक्त लोहे की एक राड और अपनी दो बेटियों के साथ आते एक शख्स से बात हुई। 37 साल के रामवीर के 6 बच्चे हैं। एक हादसे में पैर टूटने के बाद 3 साल चल नहीं पाए। साल 2018 में हुए हादसे में उनकी पत्नी और एक भतीजी गंगा में डूब गई थी।

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रामवीर जिनकी पत्नी और भतीजी नाव हादसे में डूब गई थी। फोटो- मो. आरिफ

वो बताते हैं, "पैर टूटा होने की वजह से हम चल नहीं पाते थे, पत्नी डांगरों (पशुओँ) के लिए चारा लेने गए थी। नाव पलट गई। भतीजी की लाश नहीं मिली थी। उस वक्त मेरी एक बेटी 22 महीने की थी। इन बच्चियों को लेकर गंगा पार करता हूं डर लगता है लेकिन जाएंगे तो इन 6 बच्चों को खिलाएंगे।"

गंगा कटान करते हुए बृजपाल के गांव के करीब तक आ गई। साल 2018 के हादसे और 2019 में ग्रामीणों के लंबे जलसत्याग्रह के बाद बिजनौर-मुजफ्फनगर को जोड़ने के लिए लोहे के पीपे (पैंटून पुल) बना दिया गया है। जबकि ग्रामीण चाहते हैं यहां एक पक्का पुल बना दिया जाए। बृजपाल के मुताबिक ये पैंटून पुल भी गांव के लोगों के करीब 30-40 दिन के गंगा में जल सत्याग्रह के बाद बना था।

बृजपाल आगे बताते हैं, "बिजनौर के 35 से ज्यादा गांव ऐसे होंगे जिनकी हजारों हेक्टेयर जमीनें हमारे गांव के लोगों की तरह गंगा के उस पार हैं। इनकी आबादी करीब 1 लाख होगी, 50 हजार तो यहां जरुर मतदाता होंगे।"

डेवलगढ़ के आसपास के लोगों की समस्या और मांगों के बारे में बात करने पर बिजनौर के उपजिलाधिकारी विक्रमादित्य सिंह ने गांव कनेक्शन से फोन पर कहा, "लोगों की जरुरत के लिए वहां पैंटून पुल बनाया जाता है। जब पानी ज्यादा आ जाता है, या बारिश होती है तो मरम्मत करानी पड़ती है।"

उन्होंने चुनाव में ड्यूटी का हवाला देते उन्होंने इस संबंध में विस्तार से बाद में बात करने को कहा और पक्के पुल के बावत लोक निर्माण के अधिकारियों से बात करने की बात कही। चुनावी व्यस्तताओं के चलते दूसरे अधिकारियों से बात नहीं हो सकी है। उनका पक्ष मिलते ही जोड़ दिया जाएगा।

उत्तराखंड की तराई में बसे बिजनौर जिले की सीमा मुजफ्फरनगर से सटी है। खेती ही रोजगार का मुख्य जरिया है। गन्ने की बंपर पैदावार होती है। जिले में 9 चीनी मिलें है। गंगा की तलहटी इस जिले में मिट्टी उपजाऊ भी है लेकिन गंगा की बाढ़ हर साल हजारों हेक्टेयर जमीन को निकल रही है। कई गांव पिछले कुछ वर्षों में कट गए हैं तो कटने के कगार पर हैं।

ग्रामीणों के मुताबिक लोहे वाले पुल के दूसरी तरफ करीब 6 किलोमीटर दूर पौराणिक शुक्रतीर्त है। अगर पुल के आगे सड़क बन जाए तो हजारों किसानों के साथ तीर्थयात्रियों को बहुत फायदा होगा। मुजफ्फरनगर की दूरी भी 30 किलोमीटर कम हो जाएगी।

2020 में बना ये पैंटून पुल साल के कुछ महीने रहता है। जनवरी-फरवरी में गन्ने के पीक सीजन में यहां से रोजाना करीब 500 ट्रैक्टर-ट्राली गुजरते हैं। फोटो- मो. आऱिफ

राजारामपुर देवलगढ़, राजारामपुर, बादशाहपुर, बीरूवाला, चाहड़वाला जैसे दर्जनों गांवों की समस्या ये है कि इनके पास घर से एक दो किलोमीटर दूर खेतों पर जाने के लिए दो रास्ते हैं। उत्तराखंड की साइड में बालावाली के पास जो यहां करीब 20-25 किलोमीटर दूर है, मध्य गंगा बैराज, जिसे बिजनौर बैराज के नाम से जाना जाता है। वो भी करीब 20-25 किलोमीटर दूर है। जिसका मतलब मतलब है कि बीच में 35-40 किलोमीटर की दूरी में कोई पुल नहीं है। खादर इलाके के गांव के लोग 2 नावों को जोड़कर उस पर ट्रैक्टर, बैलगाड़ी आदि दूसरी तरफ ले जाते हैं खेती के लिए और अपनी फसल लाने के लिए। कुछ गांवों के लोग नदी के इस पार से उस पार तक एक तार बांध देते हैं और उसके सहारे मजधार में नाव पार करते हैं। जिससे अक्सर हादसे होते हैं।

55 साल के बीरबल का पूरा जीवन गंगा की लहरों से लड़ते हुए कटा है। वो कहते हैं, "आए दिन हमारे साथ हादसे होते रहते हैं। कभी नाव हादसा तो कभी ट्रैक्टर हादसा। कई बार हमारे लोग इस गंगा के मुंह में समा गए हैं। हमारी जिंदगी गंगा से जूझते बीती है। पैंटून पुल आज बन गया वर्ना किस्ती (नाव) ही सहारा थी। आज भी दूसरे गांव के लोग नाव से ही जाते हैं।"

वो आगे कहते हैं, "इस पुल के लिए हमने संघर्ष किया है। इस बार भी नवंबर की जगह जनवरी में तैयार हुआ। फिर बारिश आई को आधा टूट गया। गांव के लोगों ने ठेकेदार के साथ मिलकर फिर जोड़ा है। बालावाली से मध्य गंगा बैराज तक गांव के लोगों को फायदा तभी होगा जब यहां एक पक्का पुल बन जाए।"

खादर में कुछ इस तरह से चलते हैं ट्रैक्टर. मो. आरिफ

डेवलगढ़ गांव के पास गंगा की पाट (दायरा) करीब 900 मीटर का है। लेकिन गांव के लोगों के मुताबिक गंगा का ये एक किलोमीटर करीब का चक्कर उन्हें काफी भारी पड़ता है। पुल न होने के नुकसान गिनाते हुए

स्थानीय निवासी और पूर्व प्रधान अनिल केरनवाल कहते हैं, "हमारा लोगों का गन्ना नजीबाबाद मिल में जाता है। जो यहां से करीब 25 किलोमीटर दूर है। एक ट्राली गन्ने अगर यहां से सीधे जाए तो 500 का खर्च है और बैराज से जाए तो 4000-5000 का खर्च आता है। दूसरी बात है। पूरे इलाके का गन्ना 50-60 फीसदी पहुंच गया होगा लेकिन हमारे इलाके का सिर्फ 20 फीसदी गया है। नवंबर में प्लांटून पुल बनना था लेकिन बना जनवरी में वो भी बारिश में एक बार टूट गया। जो पक्का पुल न होने से जान के जोखिम के साथ बहुत आर्थिक नुकसान भी हैं। बरसात में पूरा गांव टापू बन जाता है। जो ऊपर की जमीनें हैं वहां धान की फसल नहीं ले सकते।"

अनिल केरनवाल के मुताबिक इसवक्त 29-30 गांवों को लोग और ट्रैक्टर इस पुल से गुजरते हैं। लेकिन ये पुल अप्रैल-मई तक ही रहता है गंगा में पानी बढ़ने के बाद इसे हटा दिया जाता है। पुल पर तैनात ठेका कर्मचारियों के मुताबिक पैंटूल पुल से कई गांवों के रोजाना करीब 500 ट्रैक्टर गुजरते हैं। गांव के लोगों से पैसे नहीं मिले जाते लेकिन बाहरी वाहनी से उतराई का पैसा लिया जाता है।

बृजपाल कहते हैं, "गंगा का पानी बढ़ने, पहाड़ों पर बर्फ पिघलने या डैम से पानी छोड़े जाने पर ये पुल हटा दिया जाता है। मानसून में हमारे पास फिर सिर्फ नाव का सहारा बचता है। अगर अप्रैल तक गन्ना नहीं पहुंचा पाए तो समझिए या तो नाव से उतरेगा या मुजफ्फनगर साइड औने-पौने दाम में जाएगा।"

ग्रामीणों के मुताबिक लोहे का पुल उनकी समस्या पूर्ण समाधान नहीं है। गंगा के दूसरी तरफ बलुई जमीन है, सड़क न होने से उधर खेतों से गन्ना लाने के दौरान, लोहे का पुल पार करने के दौरान अक्सर हादसा होता है। कई बार ट्रैक्टर, बुग्गी समेत लोग नदी में गिर चुके हैं।

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गांव कनेक्शऩ की टीम जब पुल पार के पास स्टोरी कर रही थी, शाम के वक्त दर्जनों में महिलाएं खेतों से गांव को लौटती मिलीं। 60 साल की राजकली को जल्द से घर पहुंचना था क्योंकि उऩ्हें भी भूख लगी थी और घर पहुंचकर पशुओं को भी चारा देना था। उनके पांच बेटे हैं जो खेती पर ही निर्भर हैं।

राजकली कहती हैं, जब तक शाम को बालक (लड़के) लोग घर नहीं लौट आते डर लगा रहता है। जाने कब ट्रैक्टर पलट जाए, नाव डूब जाए। रोज डरते हैं। लेकिन क्या करें मजबूरी भी है। क्योंकि जमीने हमारी उधर हैं, अगर गंगा नहीं पार करेंगे, खेत नहीं जाएंगे तो खाएंगे क्या?"

राजकली को हिलते लोहे के पीपों से डर लगता है लेकिन वो पार करती हैं। इस दौरान वो अधिकारियों से लेकर नेताओं तक खूब गुस्सा करती हैं, " चुनाव आएँगे तो नेता आएँगे कहंगे यूं कर देंगे नू कर देंगे। (पुल- रोड बनवा देंगे) लेकिन वोट लेकर गायब हो जाते हैं फिर इधर नजर नहीं आते। हमारी सरकार से एक ही विनती है, यहां एक पुल बनवा दो ताकि हमारे बच्चों से खतरा टल जाए।" ग्रामीणों के मुताबिक जो किसान एक बार सुबह खादर चला गया उसे शाम ही घर लौटना होता है।

ग्रामीणों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि गंगा गांव के करीब आती जा रही है लेकिन तटबंध या स्टड लाने का काम वादों के बावजूद भी नहीं हुआ। ग्रामीणों को उम्मीद है इस चुनाव के बाद बनी सरकार शायद उनकी समस्याओं पर ध्यान देगी।

अक्सर होते रहे हैं हादसे

बृजपाल चौहान, जिनका नाम इलाके के गोताखोरों में भी दर्ज बताते हैं, "हादसों की बात न करो। 2008 में हुए एक हादसे में 5 लोगों की जान गई थी। 2018 में 10 लोगों की मौत हुई। 2020 में एक तार के सहारे नाव ला रहा था वो डूब गया। 2020 में ही एक और लड़का पशुओं को नहलाते वक्त डूब चुका है। हादसे तो होते ही रहते हैं।"

शव नहीं मिला तो मुआवजा नहीं मिला

साल 2018 के नाव हादसे में 10 महिलाओं की जान गई थी, जिसमें 5 के शव नहीं मिले थे। जिन पांच के शव मिले थे उनके परिवारों को प्रशासन की तरफ से 4-4 लाख रुपए की मदद गई थी। लेकिन बाकी को इंतजार है। 15 साल की स्वाती की मां का शव नहीं मिला था। उऩके पिता की पहले ही मौत हो गई थी। 2 बहने और एक भाई है। स्वाती बताती हैं, "बिना मां बाप के बच्चे कैसे जिए हैं हम ही जानते हैं। हमें तो कोई मदद भी नहीं मिली। अधिकारी कहते हैं, जब सात साल हो जाएंगे तो मदद मिलेगी।"

स्वाती के बगल में बैठी रीता की मां भी हादसे में नहीं रहीं। वो कहती हैं, सुबह जब सब लोग गए थे पानी कम था, अगर पानी छोड़ना (उत्तराखंड बैराज) से छोड़ना था तो पहले खबर कर देते। एक घंटे में पानी बढ़ गया। पता होता तो कोई थोड़े गंगा पार जाता?"

मां को याद कर उदास हुई स्वाती कहती हैं, "हम ही नहीं सब लोग बस यही चाहते हैं, सरकार यहां पक्का पुल बना दे, ताकि फिर कोई ऐसा हादसा न हो।"

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