ग्राउंड रिपोर्ट: 'रायबरेली चुनाव कर चुकी है, सिर्फ मतदान बाकी है'

रायबरेली का नाम आने पर कांग्रेस परिवार का ही नाम जुबान पे आ ही जाता है, लेकिन इस बार मामला थोड़ा दिलचस्प हो गया है। लोगों की निगाहें इस पर हैं कि एक समय उनके सिपहसालार रहे दिनेश सिंह, सोनिया गांधी की कितनी वोट काट सकते हैं।

मनीष मिश्रामनीष मिश्रा   24 April 2019 12:04 PM GMT

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दिनेश सिंह ने कभी सोनिया के लिए वोट मांगे, आज सोनिया से लड़ाई

रायबरेली। कांग्रेस का गढ़ और नेहरू-गांधी परिवार की विरासत रायबरेली लोकसभा के नतीजे भले ही चौंकाने वाले न होते रहे हों, लेकिन इस बार मुकाबला काफी दिलचस्प है। कभी सोनिया गांधी के लिए वोट मांगने वाले एमएलसी दिनेश सिंह लोकसभा इलेक्शन 2019 में उनके खिलाफ खड़े हैं।

रायबरेली का नाम आने पर कांग्रेस परिवार का ही नाम जुबान पे आ ही जाता है, लेकिन इस बार मामला थोड़ा दिलचस्प हो गया है। लोगों की निगाहें इस पर हैं कि एक समय उनके सिपहसालार रहे दिनेश सिंह, सोनिया गांधी की कितनी वोट काट सकते हैं।

बछरावां से लालगंज जाते समय नत्थूखेड़ा गाँव में चाय की दुकान पर बैठे एक बुजुर्ग कहते हैं, "इस बार रायबरेली बदलाव चाहती है, सोनिया जी तो यहां आती ही नहीं।" लेकिन तभी पीछे से एक युवा की आवाज आती है, "यहां पचास की उम्र के ऊपर के जो भी लोग हैं उनके दिमाग में सिर्फ कांग्रेस ही है, इसलिए रायबरेली का मामला तो एकतरफा ही समझिए।"

पुराने लोग अभी भी इंदिरागांधी की कार्यशैली को याद करते हैं। एक खाट पर बैठे बुजुर्ग शमशेर बहादुर सिंह ने कहा, "इंदिरा जी की बात अलग थी, वो और राजीव गांधी गाँव-गाँव जाते थे, लेकिन सोनिया जी तो आती ही नहीं। इससे ज्यादा तो उनके प्रतिनिधि केएल शर्मा लापता रहते हैं। उन्हें तो हमने देखा ही नहीं। सोनिया जी को वोट काम पे नहीं, सिर्फ कांग्रेस के नाम पर मिलेगा।"

रायबरेली में इंडस्ट्रीज और कल कारखाने जरूर हैं लेकिन सड़कों का हाल काफी बुरा है, शहर में भी जाम के हालात बने रहते हैं, लेकिन यहां के पुराने लोगों का दिल कांग्रेस के लिए ही धड़कता है। एक सज्जन पहचान छिपाते हुए कहते हैं, "राजबरेली में चुनाव हो गया है, सिर्फ मतदान बाकी है।"


सोनिया गांधी के खिलाफ ताल ठोक रहे एमएलसी दिनेश सिंह इससे पहले कांग्रेस का चेहरा थे, और लोगों पर काफी अच्छा प्रभाव रखने के चलते सोनिया गांधी के लिए वोट मांगते थे, लेकिन राजनीति की विसात देखिए कि आज विरोध में खड़े हैं।

रायबरेली लोकसभा सीट पर अभी तक कुल 16 बार लोकसभा आम चुनाव और दो बार लोकसभा उपचुनाव हुए हैं। इनमें से 15 बार कांग्रेस को जीत मिली है, जबकि एक बार भारतीय लोकदल और दो बार बीजेपी यहां से जीत चुकी है। 1957 में पहली बार हुए चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उतरे और जीतकर सांसद बने।

लालगंज में मस्जिद के पीछे बस्ती में रहने वाले रजा मोहम्मद रैलियों में हो रही भाषणबाजी और हिन्दू-मुस्लिम के मसलों से खफा दिखते हैं। उन्होंने कहा, "हम लोगों को सिर्फ लड़ाया जाता है। यह सब नेताओं की चाल है। मरती तो जनता है, ऊपर से बहकाते हैं तो नीचे तक आता है। सिर्फ एक दूसरे को भड़काने वाली राजनीति हो रही है। पहले हम प्यार मोहब्बत से रहते थे, आज सिर्फ नफरत पैदा करते हैं।"

वहीं, वोट के लिए रजा मोहम्म्द आगे बोलते हैं, "जिसे वोट देना होगा आखिर समय में डिसाइड हो जाएगा।" हालांकि पास में ही खड़े दूसरे बुजुर्ग लाला सोनिया गांधी को अपना नेता जरूर बताते हैं।


लालगंज से रायबरेली के रास्ते में एक बड़ी सी रेल कोच फैक्ट्री बरबस ही अपना ध्यान खींचती ही। सड़क के दोनों ओर चहल-पहल एक सुखद तस्वीर दिखाती है लेकिन वहीं रायबरेली के मिल एरिया में बंद पड़ी पेपर मिल व अन्य मिलें राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाती हैं।

पुराने समय से रायबरेली में इंडस्ट्रीज लगाई गईं उनमें से कई धीरे-धीरे कई बंद हो गईं या बंदी की कगार पर हैं। "सरकारों ने ध्यान नहीं दिया, और मालिकों की आपसी खींचतान से कई फैक्ट्रियों में तालाबंदी हो गई," शाम करीब आठ बजे बछरावां में एक रेस्टोरेंट के बाहर बैठे चंद्र किशोर आजाद बताते हैं। देश की वीआईपी सीट होने के बावजूद अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है।


पुराने समय से लेकर आज के दौर में रायबरेली की राजनीति का खाका खीचते हुए चंद्र किशोर आजाद कहते हैं, "यहां स्थानीय लोगों को कार्य नहीं मिल रहा, बाहर से लोग आ रहे हैं, यहां से पलायन बढ़ता ही जा रहा है। समस्याएं कितनी भी हों लेकिन अगर आप रायबरेली के लोगों से बात करेंगे तो यही कह देंगे कि 1977 वाली गलती दोहराएंगे नहीं।" वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी को राजनरायण ने हरा दिया था।


पहली बार 1967 में इंदिरा गांधी यहां से चुनावी मैदान में उतरीं और 1967 में यहां से सांसद बनीं। इसके बाद वो लगातार दो बार जीतीं, लेकिन 1977 में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार राज नारायण के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा। यह वो समय था जब आपातकाल के बाद चुनाव हुए थे।

आगे समझाते हैं, "संसदीय सीट तो कांग्रेस से पाले में ही रहती है, बाकी नीचे के इधर-उधर जाती रहती हैं। वोटर एक तो खुद को कांग्रेस से दूर नहीं होने देना चाहता, दूसरे पुराने समय में हुए विकास कार्यों की छवि अभी भी उसके दिमाग में हैं।

वोटरों की कुल संख्या, इसमें महिला और पुरुष

2014 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा सीट में कुल 15,94,954 वोटर थें। 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 51.73 फीसदी लोगों ने वोट किया था। कुल 8,25,142 लोगों ने वोट किया जिसमें 4,37,762 पुरुष और 3,87,368 महिला मतदाता थीं।

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