किसानों के सारथी बैलों को धन्यवाद देने का त्योहार है पोला

पोला त्योहार महाराष्ट्र का अनोखा त्योहार जिसमें बैलों की पूजा की जाती है। ये त्योहार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में भी मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इसका अलग ही महत्व है, जानिए क्या है पोला त्योहार

Arvind ShuklaArvind Shukla   17 Aug 2020 1:44 PM GMT

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किसानों के सारथी बैलों को धन्यवाद देने का त्योहार है पोला

भारत त्योहार और उत्सवों का देश का है। ये त्योहार ना सिर्फ लोगों को अपनी परंपराओं से जोड़ते हैं बल्कि ये अहसास भी कराते हैं इस धरती पर किसी एक चीज के होने के मायने क्या हैं। और जब कोई हमारे लिए कुछ करता है तो हम भी उसके लिए कुछ करने को आतुर रहते हैं, कई बार ये शुक्रिया, धन्यवाद, एहसानमंदी उत्सव के रुप में मनाई भी जाती है। ऐसा ही एक त्योहार है बैल पोला।

बैल पोला या बैलों की पूजा, खेती में किसानों के साथी, सारथी और उसके साथ कंधे से कंधामिलकर चलने वाले बैलों का त्योहार। अपनी संस्कृति और रीति रिवाजों के लिए विख्यात महाराष्ट्र में ये त्योहार किसान धूमधाम से मनाते हैं। किसानों के लिए ये गणेश उत्सव से कम नहीं होता।

बैल पोला के दौरान अपने बैलों की पूजा करते मराठी किसान। फोटो साभार अशोक पवार

महाराष्ट्र के ज्यादातर किसानों के घरों में आज भी आपको बैल मिलेंगे। वो भले नाशिक में अंगूर, अनार और प्याज की खेती करने वाला किसान हों, मराठवाड़ा के उस्मानाबाद में सोयाबीन-ज्वार, लातूर की मशहूर अरहर उगाता हो या फिर विदर्भ के नागपुर में संतरे और यवतमाल में कपास, बड़े छोटे ट्रैक्टर होने के बावजूद उनके घरों में बैल मिलेंगे, ये बैल न सिर्फ उनकी जरुरत हैं बल्कि उनके वृहद परिवार का हिस्सा भी हैं। ये किसान बैल पोला के दिन अपने परिवार के इन्हीं पशुओं को धन्यवाद देने के लिए मनाते हैं।

मराठी कैलेंडर के बैल पोला श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो इस बार (2020) 18 अगस्त को पड़ रही है। इसे श्रावणी पोला भी कहते हैं। बैल पोला के दौरान बैलों को नहलाकर तेल और हल्दी की मालिश की जाती है। उन्हें नए नए आभूषण (जैसे नाक, गले की रस्ती, घुघरू आदि) पहनाए जाते हैं, उनकी सींधों को गेरुए रंग से रंगा जाता है। बैलों को पूजा अर्चना की जाती है, उन्हें मीठा खिलाया जाता है ये त्योहार उन्हें पूरन पोली (एक विशेष खाद्य पदार्थ) खिलाकर पूरा किया जाता है।

लेकिन ये सिर्फ बैलों को संजाने संवारने तक सीमित नहीं है, बैल पोला, जिस तरह से महाराष्ट्र के किसान मनाते हैं वो बताता है कि सच में उन्हें न सिर्फ बैलों की कद्र है बल्कि सालभर तक खेती में किए गए काम के लिए वो उनका शुक्रिया, उन्हें धन्यवाद कहते हैं।

महाराष्ट्र के नाशिक जिले में एक किसान के घर में बंधे बैल। महाराष्ट्र में जिन घरों में ट्रैक्टर हैं वहां भी ज्यादातर किसान बैल पालते हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

मराठवाड़ा में उस्मानाबाद जिले के उमरगा के किसान अशोक पवार कहते हैं, ये त्योहार मनाया अमावस्या को जाता है लेकिन उसके लिए तैयारी एक दिन पहले शुरु हो जाती है, जो दूसरे दिन दिनभर चलेगा।" बैल पोला की तैयारियों को लेकर महाराष्ट्र के दूसरे किसान और अशोक जो बताते हैं, वो काफी रोचक है।

बैल पोला के एक दिन पहले से बैलों को अच्छी तरह नहलाया जाता है। शाम को एक पूजा की थाली खेत पर जाती है, जिसमें जवार का सूखा भुट्टा समेत कई चीजें रखी होती हैं, फिर बैलों के कानों में कहा जाता है कि कल आप खाने पर आमंत्रित हैं।

त्योहार के एक दिन पहले बैलों के काँधों पर हल्दी और मक्खन लगाया जाता है। हल और बैलगाड़ी समेत दूसरे खेती के काम करते हुए बैलों के कांधों की खाल अक्सर सख्त हो जाती है, इस मालिश के जरिए उस खाल और अनजाने में लगे जख्म पर मरहम लगाया जाता है।

बैल पोला के दिन बैलों को फिर नहलाया जाता है। उनके पूरे शरीर पर हल्दी का लेप किया जाता है। उनके नाक में पड़ी रस्सी खोल दी जाती है। उसकी जगह गले और नाक की नई रस्सी डाली जाती है। सीघों को रंगा जाता है। उन्हें पशु आभूषणों से सजाया जाता है। बैलों के गलों के घुंघरू की माला पहनाई जाती है, कुछ किसान पैरों के लिए भी घुंघरु बनवाते हैं।

इस दिन किसान के घर का एक व्यक्ति व्रत रखता है। घर में तांबे के लोटे में कलश रखा जाता है। अशोक पवार बताते हैं, जिस हल से हम लोग बुवाई करते हैं, उसके नीचे जो लोहे का फाल लगा होता है उसे निकालकर उपर रख देते हैं, इसका मतलब है आज काम की छुट्टी है। बैलों की आरती होती है, उन्हें पोली नैवेद्य (चावल और दाल से बना विशेष व्यजंन) और फिर गुडवनी (गुड़ से बना व्यंजन) खिलाया जाता है, बैल पोली खिलाई जाती है, घर के लोग मिलकर बैलों को खेती में साथ देने के लिए धन्यवाद कहते हैं। कई लोग घर में पूजा करने के बाद गांव के मंदिर आदि में जाकर नारियल भी फोड़ते हैं। कई जगहों पर गांव के लोग अपने अपने बैलों को लेकर आते हैं, और एक अघोषित प्रतियोगिता होती है, कि किसके बैल ज्यादा अच्छे से सजाए संवारे गए हैं।


इस प्रतियोगिता के लिए किसानों और कई बार उनके घरों में हल जोतने वाले कई महीनों और या दिन पहले से बैलों की अच्छे से सेवा शुरु कर देते हैं।

वैसे तो ज्यादातर महाराष्ट्रीेयन परिवारों में भादप्रद अमावश्या को ये त्योहार मनाया जाता है लेकिन बैलों से जुड़े वहां कई और त्योहार हैं। लेकिन एक बड़ी आबादी बैल पोला ही मनाती है। बैलों की पूजा से जुड़ा एक त्योहार बेंदुर होता है जो जून के महीने में बुआई के दौरान मनाया जाता है। इस त्योहार में भी ऐसे ही बैलों को हल्दी लगाई जाती है उनकी उनकी पूजा होती है।

तीसरा त्योहार है करहुन्नी ये त्योहार महाराष्ट्र में कर्नाटक की सीमा से जुड़े ज्यादातर जिलों लातूर, उस्मानाबाद, सोलापुर में मनाया जाता है, जहां लिंगायत समुदाय बाहूल्य वाले गांव हैं।

नाशिक में पारनेर गांव के किसान कृष्णा देवरे कहते हैं, "ये बैलों का त्योहार है तो उन्हें सब कुछ नया मिलता है, जैसे हम लोगों को होली में नए कपड़े मिलते हैं, वैसे ही उनके लिए भी उनसे जुड़ा सब कुछ नया आता है, किसान का घर बैलों से चलता है, उसके खेत बैलों से जोते जाते हैं तो हमारे लिए बैल सबकुछ हैं। ये घर के सदस्य जैसे हैं। हमारे यहां इसे पोला सन कहते हैं।"

हालांकि ये त्योहार पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ जिलों जैसे पुणे, सांगली और सतारा में ये त्योहार अगले महीने (इस साल 16 सितंबर) को मनाया जाएगा। पुणे में रहने वाले अभिजीत मुरलीधर देवरे ने हमें पिछले साल की ढेर सारी फोटो भेजते हुए कहा, "आप इस दिन महाराष्ट्र के किसी गांव में जाएंगे तो समझ पाएंगे मराठी लोग अपने पशुओं से कितना प्रेम करते हैं।"

बैल पोला बैलों का त्योहार है लेकिन इस दिन किसान अपने घर हर पशु को ऐसे ही सजाते संवारते और उसकी सेवा करते हैं।

महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में भी ये त्योहार अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में बैलों ऊपर उठी सीधों वाले बैलों की मूर्तियां का भी एक त्योहार होता है। पिछले दिनों जब मैं नाशिक गया था.. एक जोड़ी मूर्तियां अपने साथ लाया था.. बैलों की ये जोड़ियां मुझे अभी अहसास कराती हैं कि पशुओं का किसान के लिए कितना महत्व है।

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