स्टीविया की खेती : एक बार लगाकर 5 साल तक काटिए मुनाफे की फसल.. पढ़िए पूरी जानकारी
Mithilesh Dhar | Mar 13, 2018, 18:51 IST
स्टीविया की मांग तेजी से बढ़ी है। इसकी पत्तियों की थोक में कीमत करीब 250 रुपए किलो जबकि फुटव में यह 400-500 रुपए प्रति किलो तक होती है। मधुमेह पीड़ितों के लिए बेकरी उत्पाद, सॉफ्ट ड्रिंक और मिठाइयों में भी मधुपत्र की सूखी हुई पत्तियों का उपयोग होता है।
2022 तक स्टीविया के बाजार में लगभग 1000 करोड़ रुपए की और बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसे देखते हुए नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड (एनएमपीबी) ने किसानों को स्टीविया की खेती पर 20 फीसदी सब्सिडी देने की घोषणा की है।
भारतीय कृषि-विश्वविद्यालय के शोध में ये बात सामने आयी है कि मधुपत्र की पत्तियों में प्रोटीन व फाइबर अधिक मात्रा में होता है। कैल्शियम व फास्फोरस से भरपूर होने के साथ इन पत्तियों में कई तरह के खनिज भी होते हैं। इसलिए इनका उपयोग मधुमेह रोगियों के लिए किया जाता है। इसके अलावा मछलियों के भोजन तथा सौंदर्य प्रसाधन व दवा कंपनियों में बड़े पैमाने पर इन पत्तियों की मांग होती है।
सरकार स्टीविया की खेती को बढ़ावा देने के लिए 20 फीसदी सब्सिडी दे रही है। किसानों को इसके लिए जागरूक भी किया जा रहा है। ये स्वास्थ्य के अलावा आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है।
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नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड (राष्ट्रीय औषधीय पौधा बोर्ड) के सलाहकार डॉ सुनील सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं "बोर्ड स्टीविया की खेती को बढ़ावा देने के लिए 20 फीसदी सब्सिडी दे रही है। किसानों को इसके लिए जागरूक भी किया जा रहा है। ये स्वास्थ्य के अलावा आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है।"
पहले मैं रिक्शा चलाता है। लेकिन स्टीविया ने मेरी किस्मत बदल दी। 2000 से 2005 तक मैंने स्टीविया की खेती और खूब कमाई की।
स्टीविया की खेती के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हरियाणा के धर्मबीर कंबोज बताते हैं "पहले मैं रिक्शा चलाता है। लेकिन स्टीविया ने मेरी किस्मत बदल दी। 2000 से 2005 तक मैंने स्टीविया की खेती और खूब कमाई की। 2005 के बाद इसकी खेती थोड़ी कम कर दी, लेकिन अपने खेत के एक हिस्से में मैं इसकी खेती करता हूं, इसके अलावा मैंने तुलसी और एलोवेरा की भी खेती शुरू कर दी है। स्टीविया की खेती के लिए मैंने कहीं से ट्रेनिंग नहीं ली।"
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भारतीय किसानों द्वारा स्टीविया को मीठी तुलसी कहा जाता है। इसकी मिठास चीनी से 300 गुना अधिक होती है। ये स्टेवियोल ग्लाइकोसाइड नामक यौगिकों के एक वर्ग से होती है। चीनी की तरह यह कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से मिश्रित है। हमारा शरीर इसे पचा नहीं सकता लेकिन जब इसे खाने के रूप में जोड़ा जाता है तो यह कैलोरी में नहीं जोड़ता है, बस स्वाद देता है।
अब इसके अर्थशास्त्र पर नजर डालते हैं। इसके बारे में धर्मबीर कंबोज बताते हैं "इसकी खेती में अच्छी बात ये है कि इसके पौधे को गन्ने की अपेक्षा 5 फीसदी कम पानी की जरूरत पड़ती है। लेकिन बुरी बात ये है कि एक एकड़ की खेती के लिए आपको कम से कम 40000 पौधे लगाने होंगे। इसमें लगभग एक लाख रुपए का खर्च आएगा। गन्ने की अपेक्षा एक किसान स्टीविया की खेती से 40 गुना ज्यादा कमा सकता है। एक पौधे से आप 2 डॉलर या कहें 125 रुपए तक की कमाई एक बार में आसानी से हो सकती है। एक बार लगाने के बाद कम से कम पांच साल आप इसकी खेती से बढ़िया लाभ कमा सकते हैं।"
कंबोज आगे बताते हैं कि उन्होंने स्टीविया के बारे में नौनी विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश में सुना था। ये बात 1998 की है। इसके 10 साल बाद अमेरिका फूड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने स्टीविया को मंजूरी दी। इसके दो साल बाद मैंने केरला के नर्सरी से पौधा लाए और इसकी खेती शुरू की।"
बढ़ रही मांग
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इलाहाबाद के युवा किसान हिमांशु शुक्ला कई वर्षों से स्टीविया की खेती कर रहे हैं और देश के अग्रणी स्टीविया उत्पादक हैं। वे इसके बारे में बताते हैं "इस फसल की सबसे अच्छी बात यै है कि इसमें कोई रोग नहीं लगता। किसान एक एकड़ में पांच से छह लाख रुपए की कमाई आराम से कर सकते हैं। स्टीविया का रोपन कलमों से किया जाता है जिसके लिए 15 सेंटीमीटर लम्बी कलमों को काटकर पोलिथिन की थैलियों में तैयार कर लिया जाता है। टीस्यू कल्चर से भी पौधों को बनाया जाता है जो सामान्यत: 5-6 रुपए प्रति पौधे मिलते हैं। इसके पौधे से जो पाउडर तैयार किया जाता है वो चीनी के मुकाबले 300 गुना ज्यादा मीठी है।"
हिमांशु आगे कहते हैं "इसमे कैलरी की मात्रा शून्य है जो मधुमेह के रोगियों और अपने स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रखनेवालों के लिए वरदान है। इसकी खेती में एक और फायदा ये है कि इसमे सिर्फ देसी खाद से ही काम चल जाता है। सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसकी बुवाई सिर्फ एक बार की जाती है और सिर्फ जून और दिसंबर महीने को छोड़कर दसों महीनों में इसकी बुवाई होती है। एक बार फसल की बुवाई के बाद पांच साल तक इससे फसल हासिल कर सकते हैं। साल में हर तीन महीने पर इससे फसल प्राप्त कर सकते हैं। एक साल में कम से कम चार बार कटाई की जा सकती है।"
स्टीविया का रोपन मेड़ों पर किया जाता है जिसके लिए लगभग 9 इंच ऊंचे बेड्स पर पौधे पंक्ति से पंक्ति 40 सेंटीमीटर तथा पौधों से पौधे 15 सें.मी. की दूरी पर लगाते हैं। लगाने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च है। स्टीविया एसोसिएशन के एमडी और सीईओ सौरभ अग्रवाल बताते हैं "कम जानकारी होने के कारण किसान अभी इसको अपना नहीं रहे हैं। जबकि इसकी खेती से लाभ ही लाभ है। इसमें नुकसान की गुंजाइश बहुत कम है। ये मुनाफ वाली फसल है, किसानों को इसे अपनाना चाहिए।"