लखनऊ के अमरूद बढ़ाएंगे अरुणाचल प्रदेश के किसानों की आमदनी 

Divendra SinghDivendra Singh   14 March 2018 11:57 AM GMT

लखनऊ के अमरूद बढ़ाएंगे अरुणाचल प्रदेश के किसानों की आमदनी डॉ. शैलेन्द्र राजन अरुणाचल प्रदेश के किसान माज के साथ

अपने लाल गूदे की वजह से मशहूर अमरूद की ललित किस्म अब अरुणाचल प्रदेश के किसानों की अामदनी बढ़ाएगी, केन्द्रीय उपोष्ण एवं बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) के प्रयासों से संभव हो सका है।

पिछले साल वहां के किसानों ने केन्द्रीय उपोष्ण एवं बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) से गुलाबी अमरूद के एक लाख पौधे खरीदे थे, पौध देने के साथ ही यहां के विशेषज्ञों ने उन्हें प्रशिक्षण भी दिया था, ये पौधे वहां के वातावरण के लिए इतने सही साबित हुए कि कम समय ही उनमें फूल आ गए।

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सीआईएसएच के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन बताते हैं, "अरुणाचल प्रदेश के किसान लिखा माज ने आठ किसानों के साथ मिल करीब 105 हेक्टेयर जमीन में एक लाख पौधे लगाए, वहां की जमीन बहुत उबड-खाबड़ और पथरीली है, लेकिन किसानों के प्रयास से पौधे तैयार हो गए और उसमें फूल-फल भी आ गए, मैंने वहां जाकर भी देखा अच्छी बागवानी तैयार हो रही है।"

डॉ. शैलेन्द्र राजन किसानों के साथ

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अरुणाचल प्रदेश में अनानास, संतरा, सेब, अनार, आलू बुखारा सहित अन्य पहाड़ी फलों की बागवानी होती है। बारिश के मौसम में वे ट्रकों के जरिए लाखों रुपये खर्च करके पौधे ले गए। वहां उन्होंने खुद पौधे लगाने के साथ दूसरे किसानों को भी इसके लिए तैयार किया। शुरुआत में लिंगा माज और उनकी पत्नी लिखा अजा लोलेन ने मिलकर आठ किसानों की टीम बनाई। फिर 100 किसानों को तैयार किया। उसके बाद 105 हेक्टेयर में ये पौधे लगाए।

अरुणाचल प्रदेश के किसान लिखा माज ने किसानों के साथ मिलकर करीब 105 हेक्टेयर जमीन में एक लाख पौधे लगाए, वहां की जमीन बहुत उबड-खाबड़ और पथरीली है, लेकिन किसानों के प्रयास से पौधे तैयार हो गए।
डॉ. शैलेन्द्र राजन, निदेशक, केन्द्रीय उपोष्ण एवं बागवानी संस्थान

माज वहां पर खुद खेती करने के साथ ही नए प्रयोग करके किसानों को प्रोत्साहित भी करते हैं। वहां के लोगों को रबर की खेती का रास्ता दिखाकर उनकी हिमाचल में पहचान बनी। उन्हें रबर टाइकून के नाम से भी जाना जाता है। अब वह अमरूद की खेती को बढ़ावा देकर वहां मेगा पार्क बनाने की योजना तैयार कर रहे हैं। साथ ही किसानों को खाद्य प्रसंस्करण से जोड़कर पल्प बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

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डॉ. शैलेन्द्र राजन आगे बताते हैं, "पौधे देने के साथ ही हमारी टीम वहां गई। अभी दिसम्बर मैं खुद पूरी टीम के साथ गया। वहां सर्दी ज्यादा पड़ने के कारण पत्ते लाल हो गए थे। इससे किसान कुछ घबरा गए थे। उन्हें हमने बताया कि सर्दी से सोडियम की कमी हो जाती है लेकिन रंग लाल होने से पौधों या फल को कोई नुकसान नहीं है।"

माज प्रसंस्करण इकाई लगाने की तैयारी में भी हैं, जिससे इस प्रदेश से फलों के जैविक उत्पाद बनाए जा सकेंगे। प्रसंस्करण इकाई स्थापित होने से अमरूद की किस्म ललित इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि यहां की जलवायु गूदे में गुलाबी रंग को विकसित करने में सहायक है। लखनऊ की यह गुलाबी गूदे वाली किस्म पूरे भारत में प्रसंस्करण द्वारा बनाए गए विभिन्न उत्पादों के लिए जानी जाती है।

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अभी तक ललित के ज्यादातर बगीचे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में लगाए गए हैं लेकिन पहली बार यह प्रयास बहुत पूर्वोत्तर स्थितियों में किया गया है।

जल्द ही अरुणाचल में ही अमरूद की नर्सरी भी तैयार की जाएगी, डॉ. शैलेन्द्र राजन बताते हैं, "ललित किस्म की अमरूद के लिए वहां का मौसम और जलवायू बेहतर है। नर्सरी लगाने से किसानों को इतनी दूर से अमरूद खरीदने की मेहनत और खर्च नहीं करना पड़ेगा। पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के राज्यों को वहीं से पौधे उपलब्ध हो सकेंगे।

ये भी देखिए:

‪Arunachal Pradesh‬‬ सीआईएसएच अमरूद की बागवानी cish Central Institute for Subtropical Horticulture केन्द्रीय उपोष्ण एवं बागवानी संस्थान 

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