स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने शुरु की थाई अमरूद की खेती, एक साल में ही होने लगा मुनाफा

पारंपरिक सब्जियों का सही दाम न मिलने से परेशान उत्तर प्रदेश के उन्नाव में महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह ने थाई अमरूद की खेती शुरू की है। विदेशी फल स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले अमरूद की कीमत से लगभग तीन गुना अधिक दाम में बेचा जाता है और ग्रामीण महिलाओं को बेहतर कमाई का मौका मिल गया है।

Sumit YadavSumit Yadav   5 Jan 2023 6:25 AM GMT

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बसनोहा (उन्नाव), उत्तर प्रदेश। चार साल पहले तक 58 वर्षीय रामकुमारी कुशवाहा अपने पति को साल भर खेती में मेहनत करते देखती, लेकिन फिर भी उनकी कमाई न होने पर वो परेशान रहती।

रामकुमारी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बसनोहा गाँव की रहने वाली हैं, वो गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "2018 में मैंने अपने गाँव में महिलाओं को संगठित करने और इस तरह से खेती करने का फैसला किया जो लाभदायक हो और जिसमें कम मेहनत की भी लगे। कुल 10 महिलाएं आगे आईं और हमने एक स्वयं सहायता समूह शुरु किया, जिसका नाम हमने चंद्रिका मां समूह रखा है।"

एसएचजी की 10 महिलाओं ने उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन [एसआरएलएम] के जिला मिशन प्रबंधक से सलाह लेने के बाद सितंबर 2021 में थाई अमरूद की खेती करने का फैसला किया और लगभग एक साल बाद, उनके प्रयासों का फल मिला और महिलाएं बिक्री से पैसा कमाना शुरू कर दिया है।


“यह पहला स्वयं सहायता समूह है जो जिले में थाई अमरूद की खेती कर रहा है। हम ऐसा करने के लिए और अधिक महिला एसएचजी को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, "एसआरएलएम के उन्नाव जिला मिशन प्रबंधक अशोक कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया। “इन महिलाओं को कुशल तरीके से अपने उत्पादन की मार्केटिंग करना भी सीखाया गया। वे जानती हैं कि अमरूद से जैम, जेली और अन्य पैकेज योग्य उत्पाद कैसे बनाए जाते हैं।

कुमार ने महिलाओं को थाई अमरूद की खेती करने की सलाह दी है, क्योंकि उनके अनुसार फलों की खेती सबसे बढ़िया मुनाफा दे सकती हैं, क्योंकि सभी महिलाएं खेती बाड़ी से जुड़ी हैं।

आज, रामकुमारी के पति के कुल तीन बीघा [एक हेक्टेयर का लगभग चौथाई] जममीन में से एक बीघा थाई अमरूद की खेती की गई है - थाई अमरूद उष्णकटिबंधीय फल की एक किस्म जो हाल ही में शहरी बाजारों में लोकप्रिय हुई है। ये फल न केवल अमरूद की देशी किस्मों की तुलना में आकार में बड़े होते हैं, बल्कि बाजार मूल्य से लगभग तीन गुना अधिक कीमत भी प्राप्त करते हैं। स्थानीय स्तर पर उगाए जाने वाले अमरूद से ज्यादा में बिक रहे हैं। स्थानीय अमरूद 10 रुपये से 15 रुपये प्रति किलोग्राम जबकि थाई अमरूद 40 रुपये से 45 रुपये प्रति किलोग्राम के थोक भाव पर बिक रहा है।


रामकुमारी कुशवाहा गाँव कनेक्शन को बताती हैं कि थाई अमरूद के एक पौधे की कीमत 280 रुपये प्रति पौधा है और अकेले रोपण पर कुल 80 हजार रुपये खर्च किए गए हैं। साथ ही, पौधों की सिंचाई में 40,000 रुपये का खर्च आता है, जो कुशवाहा के अनुसार किफायती है।

“हमने टपक तकनीक [ड्रिप इरिगेशन] से पौधों की सिंचाई की। यह न केवल पानी बचाता है इससे हर एक पौधे में पानी पहुंचता है, "राजकुमारी ने आगे कहा।

एसएचजी के 60 वर्षीय सदस्य भगवान देई ने गर्व से गाँव कनेक्शन को बताया कि थाई अमरूद की खेती में 'रासायनिक खाद' का इस्तेमाल नहीं किया जाता था।

“मैंने, नौ महिलाओं के साथ, एक बीघे ज़मीन पर काम किया है। सितंबर 2021 में बरसात के बाद हमने पौधे लगाए थे। शुरू में हमने एक दूसरे से आठ फीट की दूरी पर गड्ढा खोदा और उन गड्ढों में गाय का गोबर डाला। यूरिया या रसायनों का कोई उपयोग नहीं किया गया था, ”देई ने कहा।

“सरकार ने हमें मध्य प्रदेश से पौधे दिलवाए। ये पेड़ अभी भी बहुत ज्यादा बड़े नहीं हुए हैं और अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं लेकिन पिछले दो महीनों से इनमें फल देना शुरू हो गया है। एक अमरूद का पेड़ लगभग 20 वर्षों तक फल देता है और एक पेड़ एक ही मौसम में 30 किलोग्राम से 40 किलोग्राम फल पैदा करता है और यह साल में दो बार फल देता है।

किसान के अनुसार, थाई अमरूद की एक एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जिससे एक फसल के मौसम में 100,000 रुपये तक और एक साल में 200,000 रुपये तक की कमाई की जा सकती है, क्योंकि पेड़ दो बार फल देता है।

खेती करना आसान और बाजार में मिलता है बढ़िया दाम

उन्नाव के धौरा प्रखंड के कृषि विज्ञान केंद्र में वैज्ञानिक के तौर पर काम करने वाले बागवानी विशेषज्ञ धीरज तिवारी गाँव कनेक्शन को बताते हैं कि थाई अमरूद की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है।


"यह एक बहुत ही लाभदायक फसल है। किसान हाल के वर्षों में थाई अमरूद की खेती में काफी रुचि ले रहे हैं। इसके अलावा, यह प्रधान फसलों की तरह इसमें बहुत ज्यादा मेहनत नहीं है और इसके लिए बहुत कम लागत की जरूरत होती है। इन विशेषताओं के साथ, आने वाले वर्षों में इसका रकबा कई गुना बढ़ने के लिए तैयार है, ”तिवारी ने कहा।

इस बीच, स्वयं सहायता समूह के सदस्य भगवान देई भी धीरज तिवारी की बातों से सहमत हैं। “हम धान और गेहूं जैसी फसलों की खेती में कड़ी मेहनत करते-करते थक गए हैं। किसान अब थाई अमरूद जैसी फसलों के महत्व को महसूस कर रहे हैं।”

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